मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

विशेष


रामलीला मंचन का इतिहास और उसका वैश्विक परिप्रेक्ष्य

सुरेश चौधरी ‘इंदु’

प्रस्तावना

कल एक विश्वप्रसिद्ध लेखकों के व्हाट्सप्प ग्रुप में डॉ. टी रवीन्द्रन ( उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं है) ने निवेदन किया कि राम लीला मंचन के इतिहास पर प्रकाश डालता लेख लिखूँ। विषय मेरी रुचि का था अतः कुछ तो जानकारी थी कुछ जानकारी गूगल और ए आई और उपलब्ध पुस्तकों से तलाशी और यह लेख तैयार हुआ।

रामकथा भारतीय सांस्कृतिक चेतना का आधारभूत आख्यान है। यह केवल धार्मिक महाकाव्य न होकर मानव जीवन के आदर्शों, नीति, धर्म और सामाजिक संगठन का प्रतीक है। इसी कथा का सार्वजनिक नाट्यरूप “रामलीला” कहलाता है। रामलीला आज केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों में भी भिन्न-भिन्न रूपों में जीवित परंपरा के रूप में प्रचलित है। प्रस्तुत आलेख में रामलीला के भारतीय इतिहास, उसके ऐतिहासिक प्रमाणों तथा थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में उसके प्रसार का विवेचन किया गया है।

1. भारत में रामलीला का इतिहास

(क) आरंभ और प्राचीनता

रामायण का काव्यात्मक रूप वाल्मीकि (500 ई.पू. से 100 ई.) द्वारा दिया गया। आगे भवभूति के उत्तररामचरित (8वीं सदी) जैसे संस्कृत नाटकों में भी रामकथा का नाट्यरूप मिलता है। लोकजीवन में यह कथा कथा-वाचकों और भागवतारों द्वारा गाई-बजाई जाती रही। धीरे-धीरे यह नाट्यरूप में विकसित हुई।

कृतवासी रामायण पर आधारित जात्रा नाटक राम कथा का उल्लेख 15 वीं सदी में मिलता है।

रामलीला के मंचन का रूप पूर्ण रूप से राधेश्याम रामायण आने से बदल गया। यह रामायण प्रख्यात राम कथा वाचक पंडित राधेश्याम कथावाचक ने की थी।  इस रामायण में श्री राम की कथा का वर्णन इतना मनोहारी ढँग से किया गया है कि समस्त राम प्रेमी जब-जब इस रचना का रसपान करते हैं और इस पर आधारित रामलीला देखते हैं तो झूम उठते हैं और तब-तब वे इसके प्रणेता के प्रति अपना आभार व्यक्त करते है।

हिन्दी, उर्दू, अवधी और ब्रजभाषा के आम शब्दों के अलावा एक विशेष गायन शैली में रचित राधेश्याम रामायण गाँव, कस्बा और शहरी क्षेत्र के धार्मिक लोगों में इतनी लोकप्रिय हुई कि राधेश्याम कथावाचक के जीवनकाल में ही इस ग्रन्थ की हिन्दी व उर्दू में पौने दो करोड़ से अधिक प्रतियाँ छपीं और बिकीं।

मुख्य रूप से भारत में ही सैकड़ों रामकथा ग्रन्थ हैं परंतु उनमें मुख्य हैं,

प्रमुख रामायणों के नाम -

वाल्मीकि रामायण

रामचरितमानस

कृत्तिबासी रामायण

कम्ब रामायण

डंडी रामायण( जगमोहन रामायण)

उत्तर रामायण

अद्भुत रामायण

आनंद रामायण

अध्यात्म रामायण

राधेश्याम रामायण

थाई की रामाकेन नामक रामायण अति प्रचलित है,

इन सभी रामकथाओं को आधार मान कर सदियों से राम कथा का मौखिक वाचन तो प्रारम्भ से हो रहा है साथ ही आरम्भ में यदा कदा अभिनीत कर प्रसंग में रोचकता दी जाती रही वही रोचकता रामलीला का रूप ले चुकी थी।

(ख) तुलसीदास और संगठित रामलीला

16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस (1574–77 ई.) की रचना ने उत्तर भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना को गहन रूप से प्रभावित किया। तुलसीदास की प्रेरणा से काशी में कथा-पाठ को संवादात्मक मंचन रूप मिला। जो कि 1625 ई. से आरम्भ हुआ उसमें कहते हैं तुलसीदास जी स्वयं राम चरित मानस की चौपाइयों को पढ़ते थे और लोजी उन चौपाइयों पर मंचन करते थे।

 18वीं शताब्दी में काशी के रामनगर की रामलीला को महाराजा उदित नारायण सिंह ने संगठित एवं भव्य रूप दिया। यहाँ की रामलीला लगभग 31 दिनों तक चलती है और आज भी विश्वविख्यात है।

(ग) अन्य केंद्र

अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा, दिल्ली, राजस्थान, बिहार एवं मध्य भारत में 17वीं–18वीं शताब्दी से रामलीला का व्यापक मंचन आरंभ हुआ। स्थानीय भाषाओं—अवधी, ब्रज, भोजपुरी—में इसे लोकनाट्य शैली में प्रस्तुत किया गया।

2. प्रमाण और ऐतिहासिक साक्ष्य

रामचरितमानस (1574–77) : रामलीला का आधार-ग्रंथ।

रामनगर रामलीला (18वीं सदी) : आज भी निरंतर चल रही परंपरा।

UNESCO (2008) : “Ramlila, the traditional performance of the Ramayana” को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया।

ब्रिटिश यात्रियों के वृत्तांत : W. H. Sleeman (19वीं सदी) ने उत्तर भारत की मेलों एवं रामलीला का उल्लेख अपने संस्मरण Rambles and Recollections of an Indian Official (1844) में किया।

समकालीन समाचार-पत्र : 19वीं–20वीं शताब्दी में लाखों की भीड़ वाले रामलीला उत्सवों का विवरण।

3. दक्षिण-पूर्व एशिया में रामलीला परंपरा

भारत से समुद्री व्यापार, ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से रामायण दक्षिण-पूर्व एशिया पहुँची और वहाँ की संस्कृति में रच-बस गई।

(क) थाईलैंड

रामायण का स्थानीय नाम रामकियन (Ramakien) है।

14वीं–15वीं शताब्दी में अयुथ्या साम्राज्य के दौरान इसका प्रवेश हुआ।

राजा राम-I (1782–1809) ने इसे संकलित करवाया।

आज भी “खोन” नृत्य-नाट्य में रामलीला मंचित होती है।

(ख) वियतनाम

यहाँ रामायण का रूप फ्रा लक फ्रा लाम (Phra Lak Phra Lam) के रूप में प्रचलित है।

इसका प्रसार चम्पा साम्राज्य (12वीं–15वीं सदी) के माध्यम से हुआ।

बौद्ध और लोकनाट्य परंपराओं में आज भी यह जीवित है।

(ग) कंबोडिया

स्थानीय नाम रैमकेर (Reamker)

7वीं–8वीं सदी से ही शिलालेखों और मंदिर मूर्तियों में प्रमाण मिलते हैं।

अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर रामायण प्रसंग अंकित हैं।

(घ) इंडोनेशिया

यहाँ का ककाविन रामायण (9वीं सदी) और वायंग नाट्य परंपरा विश्वविख्यात है।

प्राम्बानन मंदिर में प्रतिवर्ष “रामायण बैले” आज भी आयोजित होता है।

(ङ) लाओस

यहाँ भी नाम फ्रा लक फ्रा लाम है।

यह लोकसंस्कृति एवं नैतिक शिक्षा का प्रमुख आधार है।

4. सांस्कृतिक महत्व

रामलीला ने धर्म, कला और समाज को जोड़ने का कार्य किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी रामलीला सभाओं ने जनजागरण में भूमिका निभाई। दक्षिण-पूर्व एशिया में रामलीला का प्रसार भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का सशक्त प्रमाण है।

निष्कर्ष

रामलीला भारतीय सांस्कृतिक विरासत की अनूठी परंपरा है। इसकी जड़ें वाल्मीकि और तुलसीदास तक जाती हैं और शाखाएँ थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया और लाओस तक फैली हैं। UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त यह धरोहर भारतीय संस्कृति की वैश्विक गूँज का प्रतीक है।

संदर्भ सूची

UNESCO. Ramlila, the traditional performance of the Ramayana, Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity, 2008.

Tulsidas. Ramcharitmanas, काशी, 1574–77 ई.

Sleeman, W. H. Rambles and Recollections of an Indian Official, London, 1844.

Encyclopaedia Britannica. Ramakien (Thai Literature), 2024 edition.

Times of India. “Ramnagar’s month-long Ramlila draws lakhs”, 2023.

Michael Aung-Thwin, The Mists of Ramayana in Southeast Asia, Journal of Asian Studies, 2010.

radheshyam kathawachak vidyavachspti.

***

2. 

भारत की आर्थिक स्थिति : ऋण, विकास और बाह्य व्यापारिक दबाव

(India’s Economic Condition: Debt, Growth, and External Trade Pressures)

1. प्रस्तावना (Introduction)

भारत की अर्थव्यवस्था (Economy) वर्तमान समय में एक ऐतिहासिक संक्रमण (Historic Transition) से गुजर रही है। वर्ष 2025 तक देश का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच चुका है, जिससे भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fourth-Largest Economy in the World) बन गया है।

यह प्रगति ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक परिदृश्य (Global Landscape) ऊर्जा संकट, आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधान (Supply Chain Disruptions) और व्यापारिक तनाव (Trade Tensions) से प्रभावित रहा है। भारत की वृद्धि के मुख्य आधार हैं — उच्च घरेलू खपत (High Domestic Consumption), सेवा क्षेत्र की मजबूती (Robust Services Sector), तथा सरकारी पूंजीगत निवेश (Capital Expenditure) में निरंतर विस्तार।

साथ ही, भारत का सार्वजनिक ऋण (Public Debt) भी बढ़ा है — 2014 में यह GDP का लगभग 64% था, जो अब 81% तक पहुँच गया है। यह वृद्धि अस्थिरता नहीं, बल्कि निवेश-प्रधान विकास (Investment-Led Growth) की ओर संकेत करती है।

2. ऋण का स्वरूप और उपयोग (Structure and Utilization of Debt)

भारत के सार्वजनिक ऋण को तीन प्रमुख वर्गों में देखा जा सकता है —

(i) पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)

पिछले दशक में सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure), परिवहन (Transport), रक्षा (Defence) और डिजिटल ढाँचे (Digital Infrastructure) पर ऐतिहासिक निवेश किया है।

–2014–15 में पूंजीगत व्यय ₹2.5 लाख करोड़ था, जो 2024–25 में बढ़कर ₹11.1 लाख करोड़ हो गया — यह कुल बजट व्यय का लगभग 22% है।

–यह राशि सड़कों, रेलमार्गों, बंदरगाहों, हरित ऊर्जा (Green Energy), रक्षा उपकरणों, और Jal Jeevan Mission जैसी परियोजनाओं में लगी है।

यह व्यय “उत्पादक ऋण” (Productive Debt) माना जाता है क्योंकि इससे दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि (Long-Term Economic Growth) और रोजगार (Employment Generation) दोनों को बल मिलता है।

(ii) राजस्व व्यय और सामाजिक सुरक्षा (Revenue Expenditure and Social Security)

ऋण का एक बड़ा भाग सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (Social Welfare Schemes) और सब्सिडी (Subsidies) में उपयोग होता है — जैसे खाद्य, उर्वरक, ऊर्जा, ग्रामीण आवास (Rural Housing), स्वास्थ्य (Healthcare), और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer – DBT)

–वित्त वर्ष 2024–25 में इन योजनाओं पर लगभग ₹5.7 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है।

 यह व्यय जनसामान्य की क्रय-शक्ति (Purchasing Power) और सामाजिक स्थिरता (Social Stability) को बनाए रखता है।

 

(iii) ब्याज भुगतान और अनिवार्य खर्च (Interest Payments and Committed Expenditure)

भारत के कुल सरकारी व्यय का लगभग 26% केवल ब्याज भुगतान (Interest Payments) में जाता है — जिसकी राशि 2024–25 में लगभग ₹11.9 लाख करोड़ है।

 रक्षा, वेतन और पेंशन को जोड़ने पर यह “अनिवार्य खर्च” (Committed Expenditure) लगभग कुल बजट का आधा हो जाता है।

3. ऋण का प्रकार : घरेलू और बाह्य (Domestic vs. External Debt)

–घरेलू ऋण (Domestic Debt) — कुल ऋण का लगभग 78–80%, जो भारतीय निवेशकों, बैंकों, बीमा कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं से लिया गया है।

–बाह्य ऋण (External Debt) — लगभग 20%, जिसमें बहुपक्षीय संस्थाओं (Multilateral Institutions) जैसे विश्व बैंक (World Bank), एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank – ADB), तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund – IMF) से प्राप्त ऋण शामिल हैं।

IMF से संबंधित दायित्व (IMF Credit Liabilities) कुल बाह्य ऋण का लगभग 3%, और बहुपक्षीय संस्थाओं का हिस्सा 11% है।

भारत का अधिकांश ऋण घरेलू मुद्रा (Domestic Currency – INR) में होने से यह विदेशी विनिमय जोखिम (Foreign Exchange Risk) से अपेक्षाकृत सुरक्षित है।

यह वाह्य ऋण जीडीपी का 19.1% ही है जो कि पूरी तरह कंट्रोल में है

4. आर्थिक वृद्धि और ऋण-संतुलन (Growth–Debt Balance)

भारत की आर्थिक वृद्धि दर (Growth Rate) पिछले कुछ वर्षों में लगातार उच्च रही है।

–वित्त वर्ष 2023–24 में वास्तविक GDP वृद्धि 7.2% रही।

IMF के अनुसार 2025 के लिए अनुमानित वृद्धि 6.5% है।

जब तक आर्थिक वृद्धि दर ब्याज दर (Interest Rate) से अधिक बनी रहती है, तब तक ऋण वृद्धि (Debt Expansion) संकट का रूप नहीं लेती। भारत फिलहाल इस “सकारात्मक ऋण-संतुलन” (Positive Debt Dynamics) की स्थिति में है।

CareEdge और IMF दोनों का अनुमान है कि 2035 तक भारत का ऋण अनुपात घटकर 70–72% के बीच स्थिर हो सकता है, बशर्ते यह वृद्धि दर बनी रहे।

5. अमेरिकी टैरिफ वृद्धि और बाह्य दबाव (US Tariff Hikes and External Pressures)

(i) स्थिति का सार (Overview)

2025 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर 25–50% तक की आयात-शुल्क वृद्धि (Tariff Increase) लागू की।

 इस निर्णय के पीछे दो प्रमुख कारण थे —

व्यापार संतुलन (Trade Balance) में असमानता, और

कुछ भू-राजनीतिक (Geopolitical) मतभेद।

प्रभावित क्षेत्र हैं — वस्त्र (Textiles), रत्न-आभूषण (Gems & Jewellery), रसायन (Chemicals), और चमड़ा उद्योग (Leather Industry)

(ii) संभावित प्रभाव (Likely Impact)

–भारत का कुल निर्यात (Exports) लगभग $770 अरब, जिसमें से अमेरिका का हिस्सा $87 अरब (लगभग 11%) है।

–नई टैरिफ दरों से लगभग 55% अमेरिकी निर्यात प्रभावित हुआ।

ING के अनुमान के अनुसार, इसका कुल GDP पर संभावित प्रभाव 0.6–0.7% तक की कमी (Reduction) के रूप में हो सकता है।

–सितंबर 2025 में भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़कर $32 अरब हो गया — जो 11 माह का उच्चतम स्तर था।

(iii) संतुलनकारी पहलू (Stabilizing Factors)

-भारत का निर्यात–GDP अनुपात (Export–GDP Ratio) लगभग 20%, जबकि घरेलू उपभोग (Domestic Consumption) 55% से अधिक है; अतः टैरिफ का प्रभाव सीमित रहेगा।

–भारत निर्यात विविधीकरण (Export Diversification) द्वारा ASEAN, यूरोप और अफ्रीका में नए बाजारों का विस्तार कर रहा है।

–सेवा-निर्यात (Service Exports) — विशेषकर IT, डिजिटल, और परामर्श क्षेत्र — $350 अरब से अधिक हैं और टैरिफ वृद्धि से अप्रभावित हैं।

6. प्रमुख आर्थिक संकेतक (Key Economic Indicators – 2025 Estimates)

संकेतक

स्थिति

टिप्पणी

GDP (नाममात्र – Nominal)

$4 ट्रिलियन

विश्व में चौथा स्थान (4th Position)

GDP वृद्धि दर (Growth Rate)

6.5–7%

विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था

सरकारी ऋण / GDP (Public Debt / GDP)

81%

नियंत्रण आवश्यक पर संकट नहीं

मुद्रास्फीति (Inflation)

5–6%

RBI के लक्ष्य दायरे में

विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves)

$640 अरब

मजबूत सुरक्षा कवच

चालू खाता घाटा (Current Account Deficit)

~1.5% GDP

प्रबंधनीय स्तर

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)

22% बजट व्यय

रिकॉर्ड स्तर

बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate)

7–8%

सुधार आवश्यक

7. निष्कर्ष (Conclusion)

भारत की अर्थव्यवस्था ऋण-आधारित संकट (Debt-Driven Crisis) नहीं, बल्कि निवेश-प्रधान विकास मॉडल (Investment-Led Growth Model) का उदाहरण है।

 सरकारी ऋण का उपयोग मुख्यतः उत्पादक अवसंरचना (Productive Infrastructure), सामाजिक सुरक्षा (Social Safety Nets), और दीर्घकालिक निवेश (Long-Term Capital Formation) में हुआ है।

अमेरिका की टैरिफ वृद्धि जैसे बाह्य दबाव (External Shocks) अस्थायी अवरोध अवश्य उत्पन्न कर सकते हैं, परंतु भारत की बहुआयामी अर्थव्यवस्था (Diversified Economy), विशाल घरेलू बाजार (Large Domestic Market), और सशक्त सेवा-क्षेत्र (Robust Service Sector) इन दबावों को संतुलित करने में सक्षम हैं।

संक्षेप में (In Summary):

 बढ़ता ऋण भारत के लिए संकट नहीं, बल्कि संसाधन (Resource) है — बशर्ते यह उत्पादक निवेश और वित्तीय अनुशासन (Fiscal Discipline) के साथ प्रयुक्त हो।

 भारत की आर्थिक नींव (Economic Fundamentals) सुदृढ़, टिकाऊ और दीर्घकालीन विकास (Sustainable Long-Term Growth) की दिशा में अग्रसर है।

📘 स्रोत (References)

IMF World Economic Outlook (2024–25)

Reserve Bank of India Annual Report (2025)

Ministry of Finance, Union Budget 2024–25

CareEdge Ratings: Debt Projections for India (2025)

ING Economics Report: Impact of US Tariffs on India (2025)

World Bank: International Debt Statistics (2024)

(लेख लिखने के बाद आधुनिक तकनीक आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की सहायता से लेख को फॉर्मेटिंग और संपादित किया है।)


सुरेश चौधरी ‘इंदु’

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

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