मंगलवार, 30 सितंबर 2025

कविता

 

शहीदों की पत्नियाँ



डॉ. मुक्ति शर्मा

घुट के रह जाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

चाह के भी कुछ ना

कह पाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

आँखों में आँसू छुपा लेती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

पति की वर्दी पहन

खुद को मजबूत बना देती है

शहीदों की पत्नियाँ ।

 

सुनी माँग दुपट्टे में छुपाती है

शहीदों की पत्नियाँ।

 

तिरंगे को अलमारी में सजाती हैं शहीदों की पत्नियाँ ।

 

पहाड़-सी जिंदगी बिताती है

शहीदों की पत्नियाँ।

 

बच्चों को भी देश की

खातिर कुर्बान करने को तैयार रहती हैं ।

शहीदों की पत्नियाँ।

 

इसलिए वीरांगनाएँ

कहलाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

गम में भी मुस्कुराती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

लहू के घूँट पी जाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

खुद को मजबूत दिखाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

अपने घर को तीर्थ

स्थान बनाती हैं

शहीदों की पत्नियाँ।

 

डॉ. मुक्ति शर्मा

कश्मीर

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