मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

दिन कुछ ख़ास है!

 


‘विश्व ध्यान दिवस’ : ‘मनो विजेता जगतो विजेता’

डॉ. पूर्वा शर्मा

भीतर मुड़

आत्मशांति में डूबे

मन के पार।

प्राचीन काल से ही भारतीय मनीषियों ने ‘ध्यान’ (Meditation) के महत्त्व एवं उपयोगिता को पहचाना है और आज सम्पूर्ण विश्व भी इस बात पर अपनी सहमति दे चुका है। जी हाँ! 21 दिसंबर, 2024 का दिन बहुत विशेष ही रहा क्योंकि पहली बार पूरे विश्व में इस दिन को ‘विश्व ध्यान दिवस’-World Meditation Dayके रूप में मनाया गया। इस ऐतिहासिक दिवस पर भारतीय मिशन ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (न्यूयॉर्क) में ‘वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए ध्यान’(Meditation for Global Peace and Harmony) कार्यक्रम का आयोजन किया। यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि देश-विदेश की अनेक संस्थाओं ने इस दिवस पर ‘ध्यान’ के संबंधित कई कार्यक्रमों का आयोजन कर इस दिवस को सफल बनाया।


आज के इस मशीनी युग में भौतिक सुख-सुविधाओं-संसाधनों में बढ़ोतरी होती जा रही है, फिर भी मनुष्य मानसिक तनाव, अवसाद और अकेलेपन जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। आज विज्ञान भी इस बात को स्वीकार कर चुका है कि मनुष्य जीवन की इन तकलीफों-समस्याओं को सुलझाने में ‘ध्यान’ (Meditation) सबसे उपयोगी साधन के रूप में सामने आया है। दुनिया भर के कई डॉक्टर-न्यूरोलोज़िस्ट-रिसर्चर आदि ने इस बात को साबित किया है कि ध्यान से इन सारी समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है और इन्होंने ‘स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर’ की संकल्पना पर ज़ोर दिया है। यही कारण है कि आजकल की ज़िंदगी में ‘ध्यान’ शब्द बहुत प्रचलित शब्द है। 

 ‘ध्यान’ शब्द सुनते ही महात्मा बुद्ध अथवा आँखें मूँदें किसी योगी की छवि हमारी स्मृति में छा जाती है या फिर किसी पर्वत-जंगल अथवा एकांत स्थान की कल्पना मस्तिष्क में जग उठती है। रुचिकर बात यह है हर कोई ध्यान करने को उत्सुक है भले ही वह ‘ध्यान’ अथवा उसकी पद्धति से परिचित है या नहीं। ‘Meditation’ शब्द की तुलना में भारतीय संस्कृति में ‘ध्यान’ शब्द का अर्थ एक विशेष महत्त्व रखता है।

दुनिया को योगदर्शन-योगसूत्र देने वाले पंतजलि के ‘अष्टांग योग’ का आधार ध्यान है। वेदांत ने आत्मोपासना को, मीमांसा ने याज्ञिक क्रियाओं को एवं सांख्य-योग ने यौगिक साधनाओं को ध्यान का सम्बल माना है। बौद्ध ने इसे विपश्यना एवं जैन ने सहयोग-समीक्षण के रूप में स्वीकृति दी है। ईसाइयत ने ‘Prayer’ यानी प्रार्थना के रूप में, इस्लाम में नमाज़ के रूप में ध्यान को स्वीकार किया है। ताओ धर्म(चीन) में ध्यान का उद्देश्य ‘ताओ’ (प्रकृति का मार्ग) के साथ सामंजस्य स्थापित करना है और ज़ेन धर्म (जापान) में प्रयुक्त ज़ेन शब्द चीनी शब्द ‘छान’ से लिया गया है जिसका अर्थ ही ‘ध्यान’ है। प्लेटो एवं सुकरात जैसे दार्शनिकों ने ध्यान को आत्मा की खोज और सत्य की पहचान के रूप में देखा। और आज आधुनिक मनोविज्ञान में, ध्यान को ‘मानसिक शांति और तनाव-मुक्ति का अभ्यास’ माना गया है।

वैसे हम सभी अपने दैनिक जीवन में किसी भी कार्य के करते समय जो एकाग्रता रखते हैं उसे भी ध्यान कहते हैं, जैसे – ध्यान से पढ़ाई करना, खेलना, पेंटिंग बनाना, ऑफिस-घर का कार्य करना आदि-आदि। यहाँ ध्यान से हमारा तात्पर्य एकाग्रता से है लेकिन जब हम ‘मेडिटेशन’ अथवा ‘ध्यान’ के संदर्भ में बात करते हैं तब ‘ध्यान’ शब्द से हमारा तात्पर्य चित्त की एकाग्रता से है। ध्यान शब्द को अलग-अलग दर्शन, धर्म-ग्रंथों, धर्म-गुरुओं, दार्शनिकों-विद्वानों ने भिन्न-भिन्न तरीके से परिभाषित किया है।

भगवद्गीता के अनुसार, ध्यान वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करता है। ध्यान आत्मा की शुद्धि और परमात्मा के साथ एकात्मकता प्राप्त करने का साधन है। यह मन की चंचलता को शांत करने के साथ हमें परमशांति, आत्मज्ञान और आनंद एवं  मोक्ष की ओर ले जाने का मार्ग है।

आजकल योग का प्रचलन शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के लिए बहुताधिक हो रहा है। वैसे ‘अष्टांग योग’ में ‘ध्यान’ सातवाँ चरण है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। लेकिन हम इन आगे के छह चरणों को पार किए बिना सीधे ही सातवें चरण ‘ध्यान’ पर छलाँग मारना चाहते हैं। योगदर्शन में पतंजलि ने ध्यान को इस प्रकार परिभाषित किया है –

‘तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।’ (योगसूत्र 3.2)

यहाँ ध्यान का अर्थ है मन का किसी एक वस्तु या विचार पर लगातार सहज रूप से केंद्रित होना। इस अवस्था में मन स्थिर रहता है और मन में अन्य विचारों का प्रवाह रुक जाता है । ‘धारणा’ ध्यान की प्रारम्भिक अवस्था है। ‘धारणा’ यानी चित्त को एक स्थान-समय में बाँध देना और जब धारणा एक ही प्रत्यय में लंबे समय तक स्थिर हो जाती है तब वह ध्यान कहलाता है और जब यह ध्यान लंबे समय तक होता है तब वह ‘समाधि’ अवस्था में परिवर्तित हो जाता है जो योग का उद्देश्य है। गीता की तरह ही योग में भी ‘ध्यान’ को आत्मज्ञान एवं समाधि-मोक्ष-कैवल्य तक पहुँचने का साधन बताया गया है, जो मन को शांत-शुद्ध बनाकर हमें शाश्वत शांति और आनंद की अवस्था में ले जाता है।

बुद्ध के अनुसार जिस तरह हम घर की सफाई करते हैं ठीक उसी तरह ‘ध्यान’ मन की सफाई है। ओशो ने ‘ध्यान’ को जागरूकता कहा और उनके अनुसार ध्यान एक ऐसी अवस्था है जहाँ न विचार होते हैं, न समय और ना ही मन।

अब यदि हम ‘ध्यान’ की विभिन्न पद्धतियों के बारे में बात करें तो हमारी संस्कृति-समाज, समय, साधन की उपलब्धि आदि आज की आवश्यकतानुसार इसकी सैकड़ों पद्धतियाँ प्रचलित हैं। इनमें से कुछ लोकप्रिय पद्धतियाँ इस प्रकार हैं – माइंडफुलनेस मेडिटेशन (Mindfulness Meditation), मंत्र ध्यान(Mantra Meditation), तांत्रिक ध्यान, ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन(Transcendental Meditation), विपश्यना ध्यान, प्राणायाम ध्यान, ज़ेन ध्यान, चालित ध्यान,करुणा ध्यान, चक्र ध्यान, दृश्यात्मक ध्यान (Visualization Meditation) आदि। इन सभी पद्धतियों में प्रत्येक का अपना एक उद्देश्य है, महत्त्व है। व्यक्ति विशेष अपनी आवश्यकतानुसार इन अलग-अलग पद्धतियों का चयन कर सकता है।  

हम यह देख चुके हैं कि अलग-अलग धर्मों-संप्रदायों में ध्यान की विविध परिभाषाएँ और पद्धतियाँ प्रचलित हैं लेकिन ध्यान के उपयोग एवं महत्त्व को लेकर इन सभी का लगभग एक ही निष्कर्ष  है – कि ध्यान अंतर्यात्रा, आत्मशुद्धि  अथवा आत्म शांति का आधार है। केवल ध्यान के द्वारा ही आंतरिक प्रवेश संभव है। ध्यान का उद्देश्य आत्मिक जागरूकता, मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है। ध्यान व्यक्ति को बाहरी संसार से ऊपर उठाकर उसके आंतरिक सत्य से जोड़ता है।

उपर्युक्त मतों-विचारों को देखने के बाद हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि ‘ध्यान’ का मूल उद्देश्य यानी मोक्ष अथवा कैवल्य प्राप्ति अवश्य है लेकिन आज के इस आधुनिक युग में इसके आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए न सही लेकिन शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य लाभ के लिए इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। आधुनिक विज्ञान ने यह स्वीकार किया है कि नियमित ‘ध्यान’ करना मानसिक स्वास्थ्य लाभ एवं मानसिक विकारों को दूर करने में बहुत उपयोगी है। आज की इस आपाधापी की ज़िंदगी में ‘ध्यान’ हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कुछ इस तरह प्रभावित-लाभान्वित करता है –

‘ध्यान’ मन को शांत एवं स्थिर करके तनाव (Stress) प्रबंधन में सहायक होता है। यह हमारे तनाव हार्मोन पर नियंत्रण करने में सहायक होता है।  

नियमित ‘ध्यान’ का अभ्यास हमारे मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस (याददाश्त से संबंधित क्षेत्र) को मजबूती प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप हमारी स्मरण शक्ति, एकाग्रता एवं आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और हम अपने कार्यों को बेहतर तरीके से करने में समर्थ होते हैं।

यह चिंता (Anxiety)-विकारों को भी नियंत्रित करता है और मस्तिष्क को शांत रखने में सहायक होता है।

अवसाद यानी Depression से बचने एवं इससे उभरने के लिए भी माइन्डफुल मेडिटेशन का उपयोग किया जा रहा है। यह मस्तिष्क के उस हिस्से पर कार्य करता है जो सकारात्मक भावों-विचारों-सोच के लिए जिम्मेदार है। भावनात्मक संतुलन बनाए रखने जैसे –  गुस्सा-उदासी एवं अन्य नकारात्मक भावनाओं को संतुलित रखने में भी यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अनिद्रा यानी Insomnia में भी ध्यान बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। मस्तिष्क को शांत करने, गहरी-आरामदायक नींद के लिए भी इसकी उपयोगिता को देखा जा सकता है।

यह दर्द एवं रक्तचाप(ब्लड प्रेशर) को नियंत्रित करता है तथा हृदय के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है।

‘ध्यान’ से होने वाले अनेक लाभ को दिन-प्रतिदिन वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च के माध्यम से हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है। यह कहना अनुचित न होगा कि ‘ध्यान’ व्यक्ति को आत्मजागरूकता, आत्मज्ञान, आत्मशांति के साथ जीवन में सकरात्मकता को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हुआ है। यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि आज वैश्विक स्तर पर ‘ध्यान’ को अपनाया गया है एवं मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य हेतु यह एक महत्त्वपूर्ण-उपयोगी साधन के रूप में हमारे जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना रहा है। भारतीय संस्कृति में प्रचलित उक्ति –‘मनो विजेता जगतो विजेता’ को आज हर कोई मनाने लगा है।


 

डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

 


8 टिप्‍पणियां:

  1. रवि कुमार शर्मा31 दिसंबर 2024 को 9:51 pm बजे

    ज्ञानवर्धक और सुंदर लेख

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  2. आज की भागदौड़भरी, चिंतात्मक जिंदगी में ध्यान अति आवश्यक है। बहुत ही सुंदर जानकारी।

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  3. बहुत अच्छा लिखा हे पूर्वा.

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  4. ध्यान के उपर विस्तार से समझा ने के लिए शुक्रिया..

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  5. ध्यान पद्धति की व्याख्या एवं आज के बदलते परिवेश में उसकी महत्ता पर प्रकाश डालता महत्वपूर्ण आलेख । हार्दिक बधाई डॉ पूर्वा जी।सुदर्शन रत्नाकर ।

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  6. बहुत सुंदरऔर विस्तृत आलेख पूर्वा जी। आज के दौर में इसकी बहुत अधिक आवश्यकता है।
    सुंदर चित्रों से सुसज्जित बढ़िया अंक।
    मेरी लघुकथा 'बिटिया' को पत्रिका में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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  7. ज्योत्स्ना शर्मा4 जनवरी 2025 को 4:05 pm बजे

    विदुषी लेखिका जी का ध्यान पर ध्यान से लिखा बहुत सारगर्भित लेख 👌🙏

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  8. सारगर्भित बेहतरीन आलेख पूर्वा -कंचन अपराजिता

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