शनिवार, 31 अगस्त 2024

गीत

 


ज़िंदगी क्षणिक है ! 

गौतम कुमार सागर

 

शून्य सा सब रिक्त है

शेष सर्व विदित है 

स्थायी कोई भी नहीं

ज़िंदगी क्षणिक है !

 

ये है यूँ क्षणिक कि 

जैसे कोई जुगनू हो

ये है यूँ क्षणिक कि 

जैसे कोई जादू हो

 

ये है इतना क्षणिक

जैसे नयन बूँद हो

ये है इतना क्षणिक

जैसे मन की गूँज हो

 

प्रात: रहे स्मरण में

सूर्य को ढलना ही है 

रात रहे स्मरण में

चाँद को छिपना ही है

 

कुछ नहीं बचाव है

काल के प्रलय में

सीपियों में मोती सी

अनकही हृदय में

 

मिट्टी ही  है रास्ता

मिट्टी  ही है मुश्किलें

मिट्टी ही सह यात्री

मिट्टी ही है मंज़िलें

 

मिट्टी ही पथ पथिक है

शेष सर्व विदित है

शून्य सा सब रिक्त है

स्थायी कुछ भी नहीं

ज़िंदगी क्षणिक है !




गौतम कुमार सागर

मुख्य प्रबंधक

बैंक ऑफ बड़ौदा

इंदौर

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