1
नदी
के किनारे
प्रेम
नारायन तिवारी
युग-युग तक दूजा बस, इक को निहारे।
नहीं
एक हो पाते, नदी के किनारे।।
छोटी
नदी वो चाहे, भारी नदी हो,
उथली
हो चाहे कोई, गहरी नदी हो।
सभी
के ही एक से, चमकते सितारे।
नहीं
एक हो पाते, नदी के किनारे।।
गंगा
के तट चाहे, यमुना के तट हों,
दूरी
अधिक हो चाहे, पास निकट हों।
रह
जाते दोनों बस, बांह को पसारे।
नहीं
एक हो पाते, नदी के किनारे।।
फिर
भी न रोते, हॅंसते हैं खिलखिल,
इक
दूसरे को देख, तारों से झिलमिल।
इस
तट पे जंगल उस, शहर बसा रे।
नहीं
एक हो पाते, नदी के किनारे।।
जब
तक किनारे दो, नदी भी तभी तक,
एक
किनारे वाली, नदी न अभी तक।
युगों
तक बहती है, इन्हीं के सहारे।
नहीं
एक हो पाते , नदी के किनारे।।
जीवन
नदी का भी, दो ही तट मानो,
इक
है जनम दूजा,मरण है जानो।
प्रेम
न विसारें हरदम, सोचे विचारें।
नहीं
एक हो पाते, नदी के किनारे।।
***
2
तुम
जीत करके भी जीते नहीं हो
तुम
जीत करके भी जीते नहीं हो,
हम
हारकर के भी हारे नहीं हैं।
तुम
न कहीं के ही राजा हुए हो,
हम
भी तो कोई बेचारे नहीं है।
हम
भी हैं वैसे , तुम भी हो वैसे,
कुछ
भी नहीं है, दोनों का बदला।
न
तुम किसी के सहारे बने हो,
हम
भी किसी के सहारे नहीं हैं।
बदली
नजर है दोनों की जबसे,
वह
खूबसूरत नजारे नहीं हैं।।
तुमको
जमाने पर मैंने जो देखा,
जा
आईने मे था खुद को निहारा।
तुम
भी तो लगता नहाये नहीं हो,
और
मैंने भी टेसू संवारे नहीं हैं।
तुम्हें
देखकर लोग मुसुका रहे हैं,
मुझे
देखते सारे तिरछी नजर से।
आकर
के फिर से गले से लगा लो,
कह
दो उन्हें बे सहारे नहीं हैं।
देखेगी
दुनियाँ जो दोनों का संगम,
जल
जायेगी प्रेम अपनी जलन से,
रोयें
जनम भर, अकड़कर अकड़ में,
हम
ऐसे वैसे सितारे नहीं हैं।।
***
प्रेम
नारायन तिवारी
रुद्रपुर
देवरिया
***


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