देह गीत
दुष्यंत
कुमार व्यास
धोखा
मिला प्राण के द्वारे,
बस
छल ही मुझसे जीता।
हाड़-माँस के पाँसे फेंके,
देह-गेह तब सब रीता।
किस
दरवाजे करूँ शिकायत,किसको अब दुखड़ा गाना।
जो
भी मिले देह को भोगे,अन्तर्मन किसने जाना ।।
सारा
जीवन यूँ ही बीता,
पर
हाथ नहीं कुछ आया।
सूत
काटते कटी जिन्दगी,
कफ़न
नहीं तक बुन पाया।।
हर
सागर में गहरा पहुँचा, मोती हाथ न पाना।
इस
उथले पानी से भाई, बस शंखों को ही लाना।।
किस
के चरणों को चूमा तो,
तिलक
किसी के माथ किया।
हाथ
किसी के मात मिली तो,
मृदुल
बाँह ने हार दिया।
मोहित
भँवरे पागल कलियाँ, बस फूलों का गाना।
घूम-घूम कर कली-कली से, बस मधुरस को
पी जाना।।
थके
गात को धोया-पोँछा,
फूलों
की शैय्या दे दी।
अपनी
देह सुनहरी देकर,
मुझसे
ही गुम्फित कर दी।
काली
अलकें अधर रसीले,देह राग का वह गाना।
मोदमयी
था जीवन अपना, सपनों में बस सो जाना।।
***
दुष्यंत
कुमार व्यास
रतलाम


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