रविवार, 31 अगस्त 2025

कविता

प्रेम नारायन तिवारी

 

1.

कान्हा तेरी जयजयकार


कृष्ण से केशव तक तेरे हैं,

नाम बहुत संसार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

काली रात भयावह में तुम,

दिव्य ज्योति जस आये।

माता पिता देखकर हर्षित,

कहकर कृष्ण बुलाये।

कंस न जाने जन्म तुम्हारा,

ले गये यमुना पार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

देवकीनंदन वासुदेव तुम,

नन्दलाल कहलाये।

बन गोपालक गाय चराकर,

गोपाला कहलाये।

यशोदा नंदन नाम से जानत,

आजतलक संसार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

नाग नथैया तुम्हीं कन्हैया,

गिरिवर हाथ उठाये।

दूध दही संग माखनचोरी,

माखनचोर कहाये।

मुरलीधर बन मुरली बजाकर ,

मोह लिए संसार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

गोपीन के संग रास रचा कर,

हो गये रासबिहारी।

रण छोड़े रणछोड़ कहाये,

मोहन बन मनिहारी।

द्रौपदी का हुआ चीरहरण तब,

गोबिंद करी पुकार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

प्रेम प्रभू कह कहके केशव,

अर्जुन किये पुकार।

गीता ज्ञान दिये तुम उनका,

मोह से किये उद्धार।

चक्र धरे बिन महाभारत मे,

अगणित अरि  संहार।

कान्हा तेरी जयजयकार।।

 

2.

कान्हा जब आये संसार

 

सो गये प्रहरी खड़े खड़े ही,

खुल गया कारागार।

कान्हा जब आये संसार।।

 

हाथ हथकड़ी पाँव मे बेड़ी,

माता पिता अभागा।

सन्तति सात कंस ने मारा,

तनिक दया नहीं लागा।

आठवाँ गर्भ उदर धर देवकी,

नैनन अंसुअन धार।

कान्हा जब आये संसार।।

 

दरद बढा जब देवकी तन तब,

संभले नहीं संभाले।

खुली हथकड़ी पाँव की बेड़ी,

वाह रे ऊपर वाले।

बुझ गए दीपक जल गयी ज्योति,

दामिनि दमक हजार।

कान्हा जब आये संसार।।

 

भादो मास रात अंधियारी,

गगन दिखत नहीं तारे।

गरजत चमकत घन बरसत है,

जल बह चला पनारे।

वासुदेव धर सुत को सूप में,

पहुँचे यमुना किनार।

कान्हा जब आये संसार।।

 

यमुना पार ब्रजभूमि नन्द घर,

वासुदेव को जाना।

जस जस आगे को पग धरते,

यमुना बढत दुगुना।

आ गयी फिर घुटने तक घटकर,

हरि का पाँव पखार।

कान्हा जब आये संसार।।

 

सुत धर यशोदा गोद में झटपट,

उनकी सुता उठाये।

विजली की गति पाँव बढाकर,

वासुदेव फिरि आये।

विन्ध्यवासिनी माँ की गाथा,

अचरज प्रेम अपार।

कान्हा जब आये संसार।।

*** 


प्रेम नारायन तिवारी

रुद्रपुर देवरिया


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