शिव-शिवा नर्तन
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
‘काव्यांश’
आइये, गाइये, नाथ की आरती।
धाम में, वाम में, झूमती पार्वती।।
नाचते, नाचते, हो गई है प्रभा।
रूप को, देखके, खो गई है विभा।।
हाथ ले, हाथ में, नाचते शिव शिवा।
और तो, है नहीं, मात्र उनके
सिवा।।
देखकर, देवगण, हर्ष से झूमते।
माँ उमा, के चरण, भक्तजन चूमते।।
बज
रहीं, पायलें, छमछमाती हुई।
नाचती, चूड़ियाँ, खनखनाती
हुईं।।
केश यूँ, पार्वती, के बिखर जा रहे।
बस लगे, मेघ भी, नाचते आ रहे।।
देखिए, तो जरा, नाथ के नृत्य
को।
सृष्टि के, रचयिता, के यथा सत्य को।।
जोर
से, मंत्र के, नाद
डमरू करें।
सब दिशा, ओम का, जाप कैसे भरें।।
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश
जबलपुर
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