आषाढ़
घन
पार्वती
देवी ‘गौरा’
1
आषढ़
घन
गये
बरस अब
सरसा
तन।
2
तप्त
धरती
होकर
अब नम
पीड़ा
हरती।
3
आशायें
जगी
पुन:
नव सृजन
हर्षित
मन।
4
पुरवा
चले
मन
में आर्द्रता भरे
सांझ
के ढले।
5
तन
झूमता
है
आ रहा सावन
मन
घूमता।
6
देख
बादल
हर्षित
तन-मन
माँ
सा आँचल।
***
पार्वती
देवी ‘गौरा’
देवरिया
सुंदर मनभावन हाइकु। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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