सोमवार, 31 मार्च 2025

कविता

 गीत



मालिनी त्रिवेदी पाठक

1

 होली

 

 ए....लाई रे लाई  रे लाईलाई रे लाई रे लाई,

मुट्ठी गुलाल की लाई,

फागुन की सौगात।

उड़े रे उड़े रे रंग,

छलके छलके रंग,

आनंद आज अपार।

लाई रे लाई रे लाई...

 

आम्र वृक्ष पर कोयल कुहूके,

केसर भीनी धरती महके।

आई होली खेलें फाग,

बरसे प्रीत की धार।

लाई रे लाई रे लाई.....

 

डाली डाली ढोलक बाजे,

कलियाँ कुसुम की सोई जागे,

प्रकृति सुंदर दुल्हन लागे,

जोड़े परम से तार।

लाई रे लाई रे लाई ...

 

अंतर्मन की करो सफाई,

शुभ संदेश है होली लाई,

आत्मसात हो शाश्वत प्रेम,

जीवन का आधार।

लाई रे लाई रे लाई...

 

कठिन काल यह समय है भारी,

विनती सुन लो हे मुरारी,

युद्ध की भीषण आग बुझा कर,

खोलो शांति द्वार।

लाई रे लाई रे लाई....

 

मनहरण घनाक्षरी

  2

 होली

 

1)

 होली  खेले बनवारी,

संग खेले राधा प्यारी,

रंगों  की रंगत सारी,

भीगा अंग अंग है।

 

फागुन की उड़ी धूल,

वन -वन खिले फूल,

नृत्य करे, नाचे झूमे,

रति व अनंग हैं।

 

भेदभाव करो दूर,

प्रेम करो भरपूर,

मन को निर्मल करो,

फिर प्रभु संग हैं।

 

जहाँ बैठे वहीं ब्रज,

साँस-साँस हरि भज,

मोह माया लोभ तज,

सच्चा भक्ति रंग है।

 

2)

मन बना वृंदावन,

राधे-राधे सुमिरन,

धड़कनों के साज ज्यों

झांझ और चंग है।

 

रंग गए पनघट,

खाली नहीं कोई तट,

सररर पिचकारी,

छेड़े मीठी जंग है।

 

होली लाए रंग प्रीत,

मुखरित हुए गीत,

चारों ओर मची धूम,

उमंग-तरंग है।

 

होलिका दहन करो,

द्वेष का हनन करो,

बढ़े धर्म -सदाचार,

त्योहारों का ढंग है।

 ***

 

मालिनी त्रिवेदी पाठक

     वडोदरा


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