मनहरण घनाक्षरी
हिंदी भाषा
मालिनी त्रिवेदी पाठक
प्यारी हिंदी राजभाषा,
बने शीघ्र राष्ट्रभाषा,
यही सुर, लय, ताल,
आप भी मिलाइए।
हिंदी है दुलारी माता,
हिंदी गुरु ज्ञान दाता,
हिंदी भाषा का सम्मान,
आप भी बढ़ाइए।
बंध द्वार तोड़ कर,
वातायन खोल कर,
हिंदी भाषा के पंछी को,
उन्मुक्त उड़ाइए।
हिंदी में हो भाषा कर्म,
शुद्ध हिंदी मानो धर्म,
हिंदी शब्द समिधा से,
यज्ञ करवाइए।
मालिनी त्रिवेदी पाठक
वड़ोदरा, गुजरात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें