शनिवार, 30 नवंबर 2024

विशेष


यात्रा की राह पर विचार यात्रा

अश्विन शर्मा

ना सबूत है ना दलील है, मेरे साथ रब्बे जलील है

"ना प्रमाण है, ना तर्क है, मेरे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर है।"

रेल की खिड़की से बाहर झाँकते हुए यह पंक्ति बार-बार मेरे हृदय में प्रतिध्वनित हो रही है। मैं इस समय पुणे से बेंगलुरु की यात्रा कर रहा हूँ। चारों ओर फैली हरियाली और कहीं हल्की, कहीं मूसलधार वर्षा के दृश्य मेरे अंतर्मन को स्पर्श कर रहे हैं। यात्रा के दौरान मन में विचारों की अंतहीन शृंखला चलने लगती है, किन्तु आज कुछ विशेष अनुभूति हो रही है।

मैं देख रहा हूँ कि एक खेत पानी में डूबा हुआ है, जबकि उसके समीप का खेत हरे-भरे पौधों से लहलहा रहा है। दोनों खेतों के बीच केवल थोड़ी सी दूरी का अंतर है, फिर भी उनकी स्थिति बिल्कुल भिन्न है। ऐसा क्यों होता है? एक ही क्षेत्र में, एक ही मौसम में, एक ही वर्षा के बावजूद एक किसान की मेहनत विफल हो जाती है और दूसरे की फसल खिल उठती है?

शायद यह उस परमेश्वर की महिमा है जिसे हम देख नहीं सकते, परंतु अनुभव कर सकते हैं। यह सोचते हुए मेरी आस्था और अधिक सुदृढ़ हो जाती है। यह विश्वास कि इस संसार में जो कुछ भी होता है, उसी की इच्छानुसार होता है। हम चाहे कितनी भी योजना बना लें, कितनी भी परिश्रम कर लें, अंतिम निर्णय तो ईश्वर के हाथों में ही होता है।

प्रकृति का यह खेल किसी गहरी आध्यात्मिक शिक्षा की ओर संकेत करता है। एक ओर जहाँ एक किसान की फसल नष्ट हो जाती है, वहीं दूसरी ओर कोई दूसरा किसान अपनी लहलहाती फसल को देखकर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है। क्या यह अन्याय है? अथवा यह जीवन का स्वाभाविक चक्र है, जो हमें सिखाता है कि कृतज्ञता सदैव हमारे अंतर्मन में होनी चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों?

इस यात्रा के दौरान यह अनुभूति हुई कि ईश्वर के प्रति आभार केवल सुखद क्षणों के लिए नहीं, अपितु उन कठिन परिस्थितियों के लिए भी होना चाहिए, जो हमें आत्मावलोकन का अवसर प्रदान करती हैं। जब-जब हम हरे-भरे खेतों को देखते हैं, हमें स्मरण रखना चाहिए कि यह किसी की परिश्रम और किसी की कठिनाइयों का परिणाम हो सकता है। परंतु प्रत्येक परिस्थिति हमें एक नई दृष्टि और अनुभव प्रदान करती है, जो अंततः हमें आत्मिक रूप से समृद्ध बनाती है।

जैसे ही रेल तेज़ी से इन हरी-भरी धरती को पार करती जा रही है, मैं समझने लगता हूँ कि हर वृक्ष, हर पौधा, और हर खेत अपनी-अपनी कथा कह रहे हैं। यह दृश्य मुझे सिखाता है कि जीवन में जब भी चुनौतियाँ आएं, हमें निराश नहीं होना चाहिए। ईश्वर की कृपा सर्वत्र व्याप्त है, केवल उसे अनुभव करने का दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है।

वर्षा कहीं हो रही है, कहीं नहीं। परंतु यह प्रकृति का ही खेल है कि हरियाली फिर भी सर्वत्र विस्तारित है। यह यात्रा मेरे लिए मात्र एक यात्रा नहीं रही, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव बन गई है, जहाँ परमेश्वर के प्रति मेरी आस्था और भी अधिक गहन हो गई है।

अंततः, परमेश्वर हर स्थान पर है, उसकी कृपा हर क्षण हमारे साथ है।

  


अश्विन शर्मा

बेंगलुरु

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