प्रश्न को अच्छे से समझ लेना ही आधा उत्तर
है।
सुकरात
वार्तालाप से बुद्धि विकसित होती है किंतु
प्रतिभा की पाठशाला तो एकांत ही है।
एडवर्ड
गिबन
‘माँ’ का अर्थ दुनिया की सभी भाषाओं में
माँ ही होता है।
रवीन्द्रनाथ
टैगोर
जिसे स्वयं पर विश्वास न हो वह नास्तिक है।
स्वामी
विवेकानंद
किताबों ने कहा हमें पढ़ो,
ताकि तुम्हारे भीतर चीज़ों को बदलने की बेचैनी पैदा हो सके।
मंगलेश
डबराल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें