प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह से द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
की
द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
वाराणसी में मेरी मुलाक़ात जब विख्यात कथाकार श्री काशीनाथ
सिंह से हुई तो मैंने उनसे पूछा, ‘कभी आत्मकथ्य जैसा कुछ लिखने का मन नहीं हुआ आपका?’
वे बोले, “मैं अपने प्रेम के बारे में लिखना चाहता था लेकिन हिम्मत
नहीं जुटा पाया। सोचता था, पत्नी पढ़ेगी, बेटियाँ पढ़ेगी इसलिए साहस नहीं जुटा पाया। अधिकतर बड़े लेखकों ने,
जैसे तालस्तोय ने, जवानी में नहीं लिखा, बुढ़ापे में अपने प्रेम के बारे में बताया। मैंने
चौंतीस-पैंतीस वर्षों तक अध्यापन किया है, यौवन गुज़रा है। जैसा मैं अध्यापक था,
जैसी मेरी छबि थी मेरा आकर्षण था,
ऐसे अवसर न जाने कितने आए! लेकिन अभी तक लिखने का मन नहीं,
नहीं हुआ। अब सोचता हूँ कि लिख डालूँ। परिवार जाने तो जाने।
कारण यह है कि आपसे कोई भिन्न व्यक्ति नहीं हूँ।
आम तौर पर मध्यमवर्गीय व्यक्ति का जीवन जैसा होता है,
वैसा मेरा रहा। नौकरी की, पढ़ाया, अपना और भाइयों का परिवार चलाया,
प्रेम किया, वह सब जो आम तौर पर लोग करते हैं,
कोई ऐसी खास बात नहीं रही कि मैं आत्मकथा लिखूँ।
वैसे मेरे पाठकों का ऐसा कुछ लिखने का बहुत दबाव रहा मुझ पर,
खास तौर से प्रकाशकों का, किन्तु मुझे अपने जीवन में ऐसा कुछ अलग से नहीं दिखता कि
मैं उसे लिखूँ।’
‘आप बनारस के पर्यायवाची हैं सर,
साहित्यिक अभिरुचि का जो व्यक्ति बनारस आता है वह आपसे
मिलना चाहता है। आप बनारस के ‘लीजेंड’ हैं, यह बात आप नहीं जानते, हम जानते हैं। यदि आप आत्मकथा लिखेंगे तो ‘लीजेंड’ बनने के आपके संघर्ष को पढ़कर नई पीढ़ी को दिशा मिल सकती है,
सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह मेरा प्रश्न नहीं,
आपसे आग्रह है।’ शैलेंद्र सिंह ने उनसे कहा।
‘आप मुझे इस रूप में देख रहे हैं,
मुझे अच्छा लग रहा है। आत्मकथा लिखने का साहस मुझमें नहीं
है। इसके लिए ईमानदारी चाहिए, मैं लिखूँगा तो कहीं-न-कहीं बेईमानी कर जाऊँगा। लेखन के साथ,
खास तौर से अपने साथ मैं यह बेईमानी नहीं करना चाहता। मैंने
अब तक जो कुछ लिखा है, वह ईमानदारी से लिखा है। मैंने बहुत सी आत्मकथाएँ पढ़ी हैं,
लेखक कई बातें छुपा ले जाते हैं। सजग पाठक समझ जाता है कि
क्या छुपाया गया है? आत्मकथा लिखने के लिए जो ईमानदारी चाहिए, वह मुझमें नहीं है, ऐसा मुझे लगता है।’ काशीनाथ सिंह ने उत्तर दिया।
अज्ञेय जी ने कहा था : “अगर मुझे झूठ लिखना हुआ तो आत्मकथा
लिखूँगा।
अगर सच लिखना हुआ तो कहानी।”
द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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