मुलाकात
डॉ.
पूर्वा शर्मा
इक
अजनबी शहर में
अरसे
बाद उनसे मुलाकात हो गई
क्या
कहें फिर –
कुछ
इस कदर प्यार की बरसात हो गई
घिरीं
घटाएँ कुछ इस कदर
चाँदनी
भी अमावस की रात हो गई
देखो
इस मधुर मिलन से
धड़कनें
भी एक ही ताल हो गई
थामा
जब उसने हाथ तो
अनजानी
गलियाँ भी अपनी-सी हो गई
गुजरे
हम जिन राहों से
वे
राहें खुद मंजिल ही हो गई
लौटे
जब अपने शहर हम
गलियाँ
उनके बिन अजनबी हो गई
गुजरते
नहीं दिन अब
उनके
बिन जिंदगानी सूनी-सूनी हो गई
उनके
साथ हुई मुलाकात
अब
तो सुनहरी याद हो गई
कैसे
भूलूँ प्यार भरे उन लम्हों को
वह
मुलाकात ही अब तो ज़िंदगी हो गई।।
डॉ.
पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
वाह,पहली मुलाकात दिल मे बस जाती है,सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता पूर्वा जी। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी 'मुलाकात'
जवाब देंहटाएं