फिल्म
विषयक तकनीकी शब्दावली
डॉ. हसमुख परमार
एक लम्बे अरसे से फिल्म मूलतः मनोरंजन
का सबसे सशक्त एवं सर्वसुलभ साधन रहा है। अभिनय, कथा, कविता, चित्रकला, नृत्य,
संगीत, फोटोग्राफी आदि तत्वों के समन्वय तथा यांत्रिक उपकरणों की सहायता से
निर्मित इस सर्वाधिक लोकप्रिय कला - माध्यम को रुपहले परदे पर देखकर, आनन्द
प्राप्त करना जितना सरल व सहज है उतना ही कठिन व श्रमसाध्य है इसका निर्माण। इसके
निर्माण की तकनीक से परिचित हुए बिना तथा बगैर कलात्मक सूझ - बूझ के फिल्म निर्माण
संभव नहीं है। कलात्मकता और तकनीक के योग से निर्मित व विकसित इस जनमाध्यम के बारे
में श्री जगदीश कुमार निर्मल लिखते हैं- ‘‘चलचित्र आधुनिक युग की कला है। वैज्ञानिक
आविष्कारों द्वारा इसका जन्म हुआ। इसलिए इसका निर्माण पूर्णतः वैज्ञानिक
प्रक्रियाओं पर निर्भर है। फिर भी इसका संपूर्ण रूप कलात्मक है। संसार की लगभग सभी
कलाएँ चलचित्र कला के रूप को सँवारने-सजाने और बनाने में उपयुक्त होती हैं। अपनी
जटिल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और उच्च श्रेणी के कलात्मक प्रयासों के कारण यह मँहगी
कला है, किंतु अपने आकर्षक स्वरूप तथा जनप्रियता के कारण इसका व्यावसायिक उपयोग
बहुत अधिक हुआ है। इसलिए कहा जा सकता है कि चलचित्र विज्ञान, कला और व्यवसाय तीनों
है।’’
एक कहानी का चमकती स्क्रीन पर फिल्म के
रूप में प्रस्तुत होने तक की एक लम्बी प्रक्रिया है। पटकथा लेखन, गीत, संगीत,
संवाद, शूटिंग, कोरियोग्राफी, संपादन, निर्देशन जैसे विविध आयामों से गुजरते हुए
दर्शकों तक पहुँचने वाली फिल्म के निर्माण की प्रक्रिया एक विशेष तकनीक पर निर्भर
होती है, जिसमें तकनीक की विविध पद्धतियों व उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है।
अतः फिल्म के वास्तविक स्वरूप से अवगत होने के लिए विविध सोपानों से क्रमशः गुजरते
हुए संपन्न होने वाली फिल्म की निर्माण प्रविधि व प्रक्रिया को भी जानना रोचक है।
ज्ञान - विज्ञान के अन्य क्षेत्रों की भाँति फिल्म - निर्माण के क्षेत्र की भी
अपनी एक विशिष्ट तकनीकी शब्दावली है, जो इस क्षेत्र-विशेष से संबद्ध विविध अर्थों
व अवधारणाओं का बोध कराती है। इन तकनीकी शब्दों की जानकारी के बगैर फिल्म का
निर्माण एवं फिल्म के निर्माण की प्रविधि-प्रक्रिया को जानना-समझना संभव नहीं है।
फिल्म क्षेत्र में काम करने के इच्छुक लोगों के लिए तो इसका ज्ञान अनिवार्य है ही,
फिल्म निर्माण की विधि को जानने-समझने तथा फिल्म को विविध कोणों से थोडा बहुत
विवेचित - विश्लेषित करने के लिए भी इस तरह के शब्दों की समझ जरूरी है।
फिल्म निर्माण
से संबद्ध कुछ तकनीकी शब्दः-
एक्शन, एंगिल, एनिमेशन, एडलिव,
क्लोज-अप, पटकथा, एडेप्ट, मिड शॉट, प्वांइट ऑफ व्यू शॉट, झूम, लेंस, झूम लेंस,
टेलीफोटो लेंस, क्रॉस कट, आर्क, आर्क लेम्प, कैमरा मूवमेंट, आर्ट स्टील, पार्श्व संगीत,
बीग क्लोज-अप, ब्लोकिंग, टिल्ट शॉट, ट्रेकिंग अथवा डुली, लांग टेक, टेक लेंक्थ,
स्पेशल इफेक्ट, कंपोजिशन, कास्ट, कैप्शन या कैप्स, कैमरा स्क्रिप्ट, शूटिंग
स्क्रिप्ट, रशेज, मिक्सिंग, इन डोर शूटिंग, आउट डोर शूटिंग, सार्टिंग, रफ कट,
कैमरा टिल्टिंग, कैमरा क्रेनिंग, फोकसिंग, इन्सर्ट, फ्रीज फ्रेम, कट अवे, फायनल
कट, कैमरा एंगल्स, डिजाल्व, वाइप, मोताज,
फ्रेमिंग, हाई-की-लाइटिंग, सेटिंग या लोकेशन, डिजाल्व, डबल एक्सपोज, डब-डबिंग,
एडिटिंग, फ्लेश बेक, ग्राफिक्स, लाइब्रेरी शॉट, प्ले बेक, म्यूट, स्क्रिप्ट,
यूनिट, स्क्रीन प्ले, टेलीफिल्म, विज्ञापन फिल्म, कोरियोग्राफी, स्टिल फोटोग्राफी,
सेट, सेंसर, टू मिनट मूवी, इन्सर्ट।
इनमें से कतिपय शब्दों का परिचय डॉ. हरिमोहन तथा डॉ. गोकुल श्रीसागर की पुस्तकों क्रमशः ‘रेडियो और दूरदर्शन पत्रकारिता’ तथा ‘सिनेमा और फिल्मांतरित हिन्दी साहित्य’ से साभार दिया जा रहा है-
एक्शन - शूटिंग के दौरान निर्देशक द्वारा कहा गया शब्द, जिसका अर्थ है कैमरा चालू हो
चुका है, अब कलाकार पूर्व निर्धारित अभिनय शुरू करें।
एडेप्ट - किसी लेखक द्वारा लिखी कहानी या उपन्यास को फिल्म, टी.वी. सीरियल आदि बनाने
के लिए लेना। उसको फिल्मी रूप देना।
एडलिव (Adliv) - बिना किसी पांडुलिपि की सहायता से कैमरे के सामने पूरे भाव
के साथ बोलना।
एंगिल - कैमरा रखने का कोण या ढंग। शूटिंग के समय कैमरे को विभिन्न कोणों पर रखा जाता
है, ताकि इच्छित भाव एवं दृश्य को सफलता पूर्वक पकड़ा जा सके।
एनिमेशन - फिल्म बनाने की एक विशेष पद्धति जिसमें हल्के परिवर्तन के कई सारे चित्र को
एक श्रृंखला में सूट करके स्थिर चित्रों के गतिमान होने का भ्रम उत्पन्न किया जाता
है। यह पद्धति विशेष तौर पर कार्टून फिल्मों में प्रयुक्त होती है।
आर्क - कैमरे को ट्राली में रखकर गोलाकार घुमाना। इससे विषय तो वहीं स्थिर रहता है,
पीछे की वस्तुएँ घूमती प्रतीत होती है।
आर्ट स्टिल - अभिनेता या अभिनेत्रियों के विशेष रूप से खींचे गए फोटोग्राफ्स।
कैमरा स्क्रिप्ट - कैमरा मैन के लिए मूल स्क्रिप्ट के आधार पर बनाई गई
स्क्रिप्ट जिसमें उसके लिए तकनीकी निर्देश लिखे होते हैं।
कैप्शन - कैमरे के सामने लिखी या छपी सूचनाएँ। चित्र-शीर्षक।
कास्ट - फिल्म अथवा दूरदर्शन कार्यक्रम में काम करने वाले मुख्य कलाकारों की सूची।
क्लोज - अप - सिर से गरदन तक का शॉट। किसी भी व्यक्ति या वस्तु का पास से लिया गया शॉट जो BCU [BCU ऐसा क्लोज शॉट है जिसमें मुख्य रूप से ओंठ या आँखें आदि दिखाई जाती हैं।] से थोडा
बडा, लेकिन काफी पास से लिया गया शॉट होता है। समाचार वाचक आमतौर पर इसी शॉट में
समाचार पढ़ते हैं।
कंपोजिशन - सामान्यतः यह दृश्यों को व्यवस्थित करने का तरीका है, ताकि एक आकर्षक प्रभाव
मिल सके। निर्देशक एक दृश्य को इस अनूठे ढंग से कंपोज कर सकता है कि दर्शकों के मन
में आशा, भय, प्यार, उत्साह, घृणा, शक्ति, करुणा आदि के भाव जागृत हो सकें।
कट - एक शॉट से दूसरे शॉट की ओर जाने के लिए पिछला दृश्य ‘कट’ किया जाता है। गलत ‘शॉट’
होने पर भी ‘कट’ कहकर कैमरा रोक लिया जाता है और ‘रि टेक’ लिया जाता है।
crawe - पर्दे पर ऊपर
या नीचे से ऊपर चलती लिखित सूचनाएँ।
लेट शॉट - ऐसा शॉट जो दर्शकों को भ्रम में डालता है। जैसे कोई अभिनेता बहुत ऊँची मीनार
से छलांग लगाकर समीप ही गिर जाता है, लेकिन कैमरा उसे छलांग लगाते हुए नीचे फर्श
पर गिरते दिखाता है। दर्शक समझते हैं कि वह कलाकार वास्तव में इतनी ऊँचाई से छलांग
लगाकर फर्श पर गिरा है।
लाइब्रेरी शॉट - जो दृश्य स्टुडियो की लाइब्रेरी से लेकर किसी फिल्म में जोड़े जाते हैं। ऐसे
शॉट उसी फिल्म के लिए विशेष रूप से नहीं लिए जाते। बल्कि पहले कभी ले लिए गए होते
हैं। आवश्यकतानुसार किसी भी फिल्म में इन्हें जोड़ लिया जाता है। जैसे आग लगने का
दृश्य, कारों का एक्सीडेंट, बाढ़ आदि के दृश्य।
री टेक - किसी दृश्य का बार-बार फिल्माना। सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए रीटेक
लेना आवश्यक होता है।
Reming - प्रकाश व्यवस्था का एक
प्रकार। इसमें किसी पात्र के पीछे से प्रकाश फेंका जाता है, ताकि पात्र के सिर के
आसपास हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दे।
स्पेशल इफेक्ट - विशेष प्रभाव। फिल्म में इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के उपयोग से अनोखे दृश्यों एवं
ध्वनियों आदि से विशेष प्रभाव पैदा करना।
यूनिट - निर्देशक के साथ किसी फिल्म या टी.वी. कार्यक्रम के निर्माण से जुड़े
व्यक्तियों का समूह। फिल्म निर्माण एक टीम वर्क है। इन सबके अपने अपने
उत्तरदायित्व होते हैं।
वाइप - जब पर्दे पर पहला शॉट मिटता जाता है और दूसरा उस पहले का स्थान ग्रहण करता
चलता है, उसे वाइप कहा जाता है।
डिजाल्व - यह एक अध्यारोपण या मिश्रण की प्रक्रिया होती है। पहला शॉट फेड आउट होते समय
दूसरा शॉट फेड इन उतनी ही गति से होता है, उसे डिजाल्व कहा जाता है।
इन्सर्ट - दो शॉट के बीच किसी अलग शॉट को जोडा जाना ही इंसर्ट कहलाता है।
फ्लैश बेक - वर्तमान शॉट अथवा दृश्य की कथा का भूतकालीन या पूर्ववर्ती हिस्सा दिखाने हेतु
फ्लैश बेक शैली का प्रयोग किया जाता है।
फ्रीज फ्रेम - जब चलचित्र की कोई फ्रेम चलचित्र के पर्दे पर स्टील फोटोग्राफ की तरह कुछ समय
के लिए रोक दी जाती है, उसे फ्रीज फ्रेम कहा जाता है।
रशेज - लेबोरेटरी से प्रिंट होकर आयी प्रिंट - फिल्म को ही रशप्रिंट अथवा वर्किंग प्रिंट कहा जाता है। शूटिंग करते समय हर
दिन शूटिंग शुरू करने से पहले निर्देशक तथा कैमरामैन पिछले दिन की शूटिंग की रशेज
देखते हैं।
डॉ. हसमुख परमार
एसोसिएट प्रोफ़ेसर
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर
जिला- आणंद (गुजरात) – 388120
दिलचस्प आलेख परमार जी!
जवाब देंहटाएं- कमलेश भट्ट कमल, ग्रेटर नोएडा वेस्ट
बहुत ही बढ़िया और उपयोगी जानकारी🙏💐
जवाब देंहटाएंHiya
उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंખૂબ સરસ જાણકારી સાહેબ.....👍👍
जवाब देंहटाएंफ़िल्म निर्माण से सम्बंधित जानकारी तकनीकी नाम और उन शब्दों के अर्थ वाले विश्लेषण से श्रोताओं को रूबरू करवाने के लिए हँसमुख जी को धन्यवाद । वाकई बहुत अच्छी और सम्यक जानकारी दी आपने । कैमरा,एक्शन,स्टार्ट
जवाब देंहटाएंआपने बहुत बारीकी से मूवी की शुटिंग की जानकारी प्रदान की है सर। ३ घंटे की मूवी के लिए इतना तकनीकी माध्यम का उपयोग ओर लोगो की मेहनत सचमे एक अच्छी जानकारी साझा की है।
जवाब देंहटाएंफिल्म निर्माण की जानकारी दी साथ में उनकी तकनिकी यंत्र की जानकारी मिली। फिल्म का निर्माण कैसे होता है परिचय दिया। एक्शन,एडेप्ट,एडलिव,एंगिल,एनिमेशन,आर्क,आर्टस्टिल, शब्दों जानकारी दी ।धन्यवाद सर 🙏
जवाब देंहटाएं