मंगलवार, 4 जनवरी 2022

रचना से गुजरते हुए



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बावली

(कहानी – नासिरा शर्मा)

साइनबानुं मोरावाला

         ‘बावली’ कहानी नासिरा शर्मा के प्रथम कहानी संग्रह ‘पत्थर गली’ (सन् 1986) में संकलित है। इस कहानी में लेखिका ने मुस्लिम समाज के पात्रों को केन्द्र में रखकर इनकी भावनाएँ, कुंठाएँ एवं उनके विचारों को बड़े कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। मूलतः स्त्री केन्द्रित इस कहानी में एक स्त्री की मनोव्यथा का सूक्ष्म-चित्रण हुआ है। इसमें स्त्री जीवन की त्रासद स्थिति एवं नियति अंतर्निहित है।

          कहानी में बावली को एक प्रतीक के रूप में लिया है। कहानी की मुख्य पात्र सलमा ने अपने नीजि जीवन को अभावों के साथ गुजारा है। इनकी शादी खालिद के साथ होने के बाद ही उसे अपने घर एवं अपने लोगों का सुख मिलता है, लेकिन शादी के सात साल बाद भी सलमा की गोद नहीं भरती है, तब इनकी सास अपने बेटे को दूसरी शादी के लिए कहती है। सलमा की ना मरजी होने के बावजूद सास की ज़िद औऱ पति की बेबसी देखकर हाँ में हाँ भर लेती है और पति को दूसरे विवाह करने पर राजी कर लेती है। पति की दूसरी शादी सुहेला नामक लड़की के साथ तय कर दी जाती है। हर रिश्ता कुछ न कुछ माँगता है, उसे ना दो तो कभी-कभी टूट भी जाता है। शादी पक्की हो जाने पर सलमा सोचती है कि- ‘‘बचपन छत की तलाश में गुजरा और आज छत है तो पैर के नीचे से जमीन गायब हो रही है, लगता है आज फिर जिंदगी के चौराहे पर दोबारा लौट आई हूँ।’’1

          सलमा एक तरफ अपने पति को दूसरी शादी के लिए तैयार कर रही है औऱ दूसरी तरफ अपने जीवन के अधूरे सपनों के साथ जी रही है। शादी जिस दिन थी उसी दिन रात को सलमा चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ती है और वहाँ शादी में आई हुई औरतों में बातें फैलने लगती है कि पहली बीवी नई दुल्हन के कमरे में बेहोश होकर गिर पड़ी है। सभी औरतें कानाफूसी करना शुरू कर देती है।

          मेहमानों में आई हुई एक लेडी डॉक्टर ने उसे जाँच ने के बाद बताया कि वे माँ बननेवाली है, फिर क्या शादी तो हो ही गई थी।

          सलमा ने ठीक ही कहा है-

          ‘‘मैं पानी से भरी बावली रिश्तों के नाम पर बँटती आई। हमेशा दिया, कुछ लिया नहीं। आज जब अपनी कोख से एक बच्चा न दे सकी, तो मैं एक बेकार सी मान ली गई। मेरा और खालिद का रिश्ता इस औलाद को लेकर टूट गया। अगर खालिद मेरी गोद न भर पाते तो क्या मैं दूसरी शादी करती उस समय गोद लेने की बात उठती। सब्र और कुर्बानी की बात उठती। तो औरत के नाम के साथ क्या मर्द कुर्बानी नहीं कर सकता है ’’2

          यथा-

‘‘मैं तो एक बावली ठहरी, प्यास के रिश्तों के नाम पर अपने को बाँटने वाली। मेरे दिल के दालानों में थके प्यासे-परिन्दे अपनी प्यास बुझाते रहेंगे, दुःख बाँटते रहेंगे, मगर आखिरी साँस तक जीने और मरने का साथ न निभा पाएँगे। मैं पानी से भरी बावली, कहाँ जाऊँगी मुझे तो अन्तिम साँस तक खुले आसमान और जमीन के सीने में धँसे जीना है।’’3

समाज में शादी-शुदा लड़कियों का ससुरालवालों द्वारा किए जाने वाले शोषण, गरीब लोगों की अपेक्षाएँ, कमनसिब लड़कियों को पत्नी बना लेने की चालाकी आदि का चित्रण कहानी में हुआ हैं।

नासिरा शर्माजी की एक किताब है- ‘औरत के लिए औरत’ उसमें लेखिकाने एक जगह लिखा है- ‘‘वह दिन बहुत करीब है जब समाज स्त्री के प्रति अपना क्रूर व्यवहार को न केवल बदलेगा बल्कि उसके प्रति उसका नज़रिया खुला रखने पर भी मजबूर होगा।’’4

अर्थात स्त्री यदि संकल्प कर ले तो सब कुछ संभव है, वह सभी दशाओं और दिशाओं दोनों का रूख अपनी तरफ मोड़ भी सकती है, उसे आवश्यकता है तो बस अपनी दृढ-इच्छा शक्ति की।

निर्ष्कतः देखा जा सकता है कि संघर्ष का प्रमाण परिवर्तन ही है। वे अवश्य हो कर ही रहेगा। आज भी समाज में एक बहुत बड़ा जनभाग रूढ़ औऱ रूग्ण सोच के साथ क्रियाशील है। स्त्रियों के सामने उनके अधिकारों की रक्षा एक मूल प्रश्र्न बनकर सामने खड़ा है। महिलाओं के मन में उपजते हुए असन्तोष जनक प्रश्नों को आधुनिक महिला लेखिकाएँ अपने लेखन के माध्यम से उसे क्रियात्मक रूप में प्रस्तुत करती हुई नजर आ रही है। कथाकार नासिरा शर्माजी ने तो अपनी कहानियों के माध्यम से अपने जीवन के अनुभवों तथा अपने आस-पास के परिवेश से ही कथानक गढ़े हैं जिनका स्वर सामाजिक परिस्थितियों में बदलता गया है। इस कहानी का स्त्री पात्र शोषण से शोषित भी हैं, उनके विरोध भी हैं तथा अपने जीवन मूल्यों के प्रति जाकरूक होने का प्रयास भी वह करती हैं।

 

साईनबानुं मोरावाला

पीएच.डी. शोधछात्रा

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग,

सरदार पटेल विश्वविद्यालय,

वल्लभ विद्यानगर


7 टिप्‍पणियां:

  1. आज भी हमारे समाज में 'सलमा' विद्यमान है, मात्र स्त्री ही समाज में कुर्बानी देती है किन्तु अब समय
    आ चुका है की पुरुष भी स्त्री की मनोव्यथा को समझें ताकि समाज रुपी रथ अच्छे से चल सके।
    सुंदर प्रस्तुति साहीनबांनु आप अपने ज्ञान की सीमाओं को बढ़ाते उत्तरोत्तर प्रगति करते रहे।
    अवशेष सुभकामनाए।

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  2. समाज को उजागर करने का बहुत बहुत अच्छा प्रयास है। सुंदर प्रस्तुति
    सुभकामनाए
    Safica

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  3. सराहनीय कार्य किया है। आप इसी तरह आगे बढ़ते रहे।
    Congratulation and blessings
    V.u.saiyad

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  4. सुंदर प्रस्तुति आप हमेशा आगे बढ़ते रहो।
    सुभकामनाए

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  5. वास्तविकता यह है कि आज भी समस्त संसार में कितनी एसी 'सलमा' हे जो इस समस्या से जुज़ रही हैं । आपने एक औरत होने के नाते एक औरत की मनोस्थिति को समजकर समाज मे होनेवाली घटनाओं को उजागर करने का एवं उसे 'सलमा' के माध्यम से समाज के सामने रखने का एक सफल प्रयास किया है । आपका ये लेख और प्रयास समाज मे सराहनिय है ।

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  6. आप का ये लेख ओर प्रयास समाज मे सराहनीय है । सुन्दर प्रस्तुति साइनबानु आप आगे बढते रहो। आपको ढेर सारी शुभकामनाए

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