डॉ.
शिवजी श्रीवास्तव
काजल
ने छत की मुंडेर पर दीपक रखने के बाद नजरें उठाकर देखा, चारों ओर जगर-मगर करती विद्युत झालरें, इंद्रधनुषी
आभा बिखेरती कंदीले, आसपास की छतों की मुंडेरों के ऊपर
झिलमिलाते दीपक... सर्र से छूटते हुए आतिशबाजी के वाणों का आसमान में पहुँच कर
अनेक रंगों की रोशनियों के फूल बिखेरना, बड़ा अद्भुत एवं
रोमांचक लगा। उसे लगा जैसे वह इंद्रलोक में आ गई हो। ससुराल में पहली दीवाली थी
उसकी... घनी काली अमावस की रात्रि में रोशनी के ये झरने कितना रोमांच भरते है ये
उससे बेहतर कौन समझ सकता है। नीचे आँगन में अमित जी बच्चों के साथ बच्चे बने
फुलझड़ियाँ चला रहे हैं...कोई उसकी सास से कह रहा है ..तुम्हारी बहू तो साक्षात
लक्ष्मी है... कैसे सारा घर जगर मगर कर रहा है...
‘हाँ...जी’. सास की आवाज थी.., ‘बड़े भागों वाली है बहू.. मेरे घर मे उसके कदम
बहुत शुभ सिद्ध हुए..’
...बड़े भागों वाली...शुभ कदम... ये शब्द उसके कानों में अमृत सा घोल गए..वरना
अपने मायके में तो वह अपशकुनी और करमजली ही कही जाती रही हमेशा..मायके की याद आते
ही उसके मन मे विषाद घुल गया। ..अतीत के पृष्ठ खुलते
चले गए..
...पिछले वर्ष दीवाली में दिए रखते वक्त एक दिया हाथ से छूट कर गिर कर बुझ
गया था.... मम्मी फट पड़ी थीं...कर दिया न अपशकुन... इस करमजली से कोई काम ढंग से
नहीं होता...ससुराल जाकर नाक कटाएगी हम लोगों की..
‘ससुराल मिले भी तो’...भाभी ने
मुँह बिचका कर व्यंग्य किया था....’हमें तो लगता है ये लोगों
की छाती पे ही मूँग दलेंगी जिंदगी भर...’ उसने चुपचाप अपने
आँसुओं को पी लिया था।
ऐसी
बातें सुनने की उसे आदत पड़ चुकी थी, उसे
अपना जीवन लंबी काली मावस की रात के समान लगता था, जिसमें
सुख के प्रकाश की कोई किरण सपने में भी नहीं दिखती थी..
..डाँट-फटकार, ताने-बंदिशें... यही था उसके जीवन मे
बस..उसे अपनी किस्मत पर हमेशा रोना आता था...लगता है परमात्मा ने कुछ ज्यादा ही
काली स्याही से उसकी किस्मत की लकीरें खींची थीं, इसीलिए हर
वक्त दुःख के गहरे साए उसे घेरे रहते हैं। माँ की फटकार, पिता
की लादी गई बन्दिशें भाई भाभी की वक्र दृष्टि..उसे खुल कर साँस भी नहीं लेने
देते...सबकी नजरों में वह करमजली थी, अभागी थी...पता नहीं
क्यों? उसे बस इतना पता था कि उसके साथ ही एक जुड़वाँ भाई भी
पैदा हुआ था जो जन्मते ही मर गया था, पर इसमें उसका तो कोई
दोष नहीं था फिर भी उसे होश सम्हालते ही हर वक्त यही ताने मिलते थे... करमजली है
पैदा होते ही भाई को खा गई... उसे जन्म भी ऐसे घर मे मिला था जहाँ लड़कों पर गर्व
किया जाता था और लड़कियों को तिरस्कृत...मोहल्ला भी ऐसा जहाँ घरों से ज्यादा लोगों
की सोच छोटी थीं..लोग कहते अरे लड़के तो हुंडी होते हैं हुंडी जब चाहे भुगतान करा
लो और लड़कियाँ तो कर्जा होती हैं, कर्जा...जिंदगी भर चुकाते
रहो तो भी नहीं चुकता...गली के लड़के दिन भर मटरगश्ती करते, आवारागर्दी
करते फिर भी उनके माँ बाप सीना फुला कर चलते और लड़कियों के बाप गर्दन झुकाकर... इसी
वातावरण में रहना और दिन-रात ताने सुनना उसने अपनी नियति मान लिया था।जब वह स्कूल
या बाहर कहीं जाती थी तो ढेर बंदिशों और नसीहतों के साथ ही भेजी जाती थी... पिता
और भैया उसकी पहरेदारी सी करते रहते थे, भाभी आई तो वह भी
उसे किसी न किसी बहाने ताने देती रहती...बी.ए. के बाद उसकी पढ़ाई भी बन्द कर दी गई
कि ज्यादा पढ़कर क्या कलेक्टर बनना है, घर मे कोई भी तो नहीं
था जिससे वह अपने दुःख बाँटती। दुःख की एक छाया हमेशा उसके चेहरे पर मंडराती रहती
थी।
भाभी
के व्यंग्य ने उसे गहरे आहत किया था। आजकल उसके लिये लड़के की तलाश जोरों पर थी। हर
दस पन्द्रह दिनों बाद उसे देखने वाले आते...उसे नुमाइश की तरह प्रदर्शित किया
जाता..फिर दो तीन दिनों बाद पापा मुँह लटका कर बैठ जाते बड़बड़ाते।... ‘इन लोगों ने भी मना कर दिया ...सारे लड़के अब गोरी हीरोइन सी लड़की चाहते
हैं...दहेज भी ससुरों को भरपूर चाहिये...अब न तो इतना रुपया ही है कि दहेज से मुँह
भर दूँ... और न ही लड़की इतनी खूबसूरत’...इसके आगे...माँ
नश्तर चुभो देतीं ... ‘एक तो भगवान ने रंग रूप नहीं
दिया ऊपर से किसी के सामने ऐसे मुँह लटका कर बैठ जाती है जैसे फाँसी पे चढ़ाया जा
रहा हो...ये नहीं जरा मुस्करा के जवाब दिया करे सबको..हमारे तो भाग ही खोटे थे जो
ये करमजली जिंदा रह गई और हीरे जैसा बेटा चला गया’....वह
अंदर तक घायल हो जाती...पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते... ‘सच है ये करमजली न
होती तो हमें किसी के सामने हाथ नहीं जोड़ने पड़ते...’ वह शीशे
में अपना चेहरा देखती...क्या सचमुच ही वह बदसूरत है...उसे लगता दुःखों ने उसके
चेहरे की रंगत सचमुच छीन ली है, खुशी तो उसके जीवन से ही
रूठी है तो चेहरे पर भला कहाँ से आए...पापा बड़बड़ाए जा रहे थे.... ‘अरे, आजकल लड़कियाँ तरह-तरह
के मेकअप...करके सुंदर बन जाती हैं.. तरह-तरह की गोरी बनाने की क्रीम बाज़ार में आ
रही हैं, ये नहीं कि वही लगाया करे..अब ये सब भी मैं ही
बताऊँ?’
‘....परसों अलीगढ़ वाले आ रहे हैं’...एक दिन पापा ने उसे सुनाते हुए मम्मी से कहा था....
‘अबकी बात बन सकती है... इससे कहो जरा ठीक से तैयार हो...और लड़के वाले कुछ
पूछें तो मुँह बनाके न बैठ जाये, कायदे से बात करे। और हाँ
कोई क्रीम-व्रीम ढंग की लगवा देना या किसी पार्लर ले जाके तैयार करवा देना।’..
अंदर
कमरे से भाभी की जहर बुझी आवाज आई-’पार्लर
कोई सस्ते होते हैं क्या?इन्हें तो रोज ही देखने वाले आ रहे
हैं,रोज रोजपार्लर जाने लगीं तो घर की आधी तनखाह इसी में उड़
जाएगी..’
उस
वक्त काजल चुप ही रही पर अगले ही दिन एक छोटी सी जनरल स्टोर वाली दुकान पहुँच गई, ‘सुनिये कोई ऐसी क्रीम नहीं है जिससे जल्दी से जल्दी गोरे हो जायें..’
दुकानदार
युवा था उसकी हड़बड़ाहट देख हँस कर बोला, ‘कितनी
जल्दी से जल्दी गोरी होना चाहती हैं आप?’
काजल
कुछ लजा गई उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, कुछ
बोल नहीं सकी,दुकानदार कुछ ज्यादा ही बातूनी था,बोला, “ऐसा है मैडम क्रीम तो बहुत-सी है,पर सबमें केमिकल हैं, उनसे स्किन खराब ही होती है, वैसे आप गोरी क्यों होना चाहती हैं, आप साँवली जरूर
हैं, पर आपके फीचर्स कितने शार्प है... आप तो वैसे ही सुंदर
लगती हैं”
किसी
से पहली बार काजल ने अपनी प्रशंसा सुनी थी,अजीब सा लगा
उसने ध्यान से देखा युवक की आँखों में ईमानदारी दिखी। दुकानदार बोला, ‘ओह, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, समझ गया कोई देखने-वेखने का चक्कर होगा...एक
मिनट रुकिए मैं देता हूँ बढ़िया-सी क्रीम आपको..’
‘थैंक्यू लेनी नहीं है क्रीम’ ...कहती हुई वह तेजी से
दुकान से बाहर आ गई। दुकानदार उसे आवाज देता रह गया उसने पलट कर नहीं देखा, उसने कोई क्रीम तो नहीं ली, पर उस दुकानदार की छवि
अपने दिल मे ले आई, घर मे आकर बहुत देर खुद को दर्पण में
देखती रही, कानों में वे शब्द गूँजते रहे.’आप साँवली जरूर है....आप तो वैसे ही सुंदर लगती हैं....’
अलीगढ़
वाले आए भी चले भी गए,नतीजा वही रहा..उसे पसन्द
किया भी गया,नहीं भी किया गया...बात दहेज़ पर अटक गई थी..फिर
ढेर से ताने मिले उसे,अब उसने
फैसला किया कि वह आगे पढ़ेगी, अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए उसने
दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया, इसका भी घर मे
विरोध हुआ पर उसे विरोध सहने की आदत सी हो गई थी।
जब भी वह ट्यूशन के लिए निकलती, उस जनरल स्टोर
की ओर उसकी आँखे उठ जातीं, कभी-कभी वह युवक दिखता और मुस्करा
देता,वह भी नजरें झुका कर आगे बढ़ जाती बस।कभी कभी किसी सामान
लेने के बहाने वह उस जनरल स्टोर पर ही रुकती, उस युवक का नाम
अमित था..बातों बातों में कब उसने अमित के सामने अपने सुख-दुख उड़ेल दिए, और अमित ने भी कब अपने घर परिवार के बारे में बता दिया उसे पता ही नहीं
चला....दोनो कब एक दूसरे की भावनात्मक जरूरत बन गए वे लोग स्वयं नहीं जान पाए ,फिर व्हाट्सएप पर संदेशों का आदान-प्रदान शुरू हो गया,काजल जब भी कोई दुःख भरी बात करती
अमित का प्रेरक सन्देश उसका हौसला
बढ़ा देता, अमित के
सन्देशों से वह जीवन जीना सीखने लगी, उसके अनेक
सन्देश उसे याद हो गए थे जैसे – ‘अपनी लड़ाई खुद लड़ना सीखिए...’
‘सौभाग्य आता नहीं लाया जाता है,’
‘दीपावली पर दीये अपने आप नहीं जलते, उन्हें जलाया
जाता है तब अंधेरा दूर होता है’
‘भाग्य के भरोसे अपना जीवन मत लुटाइये, संघर्ष करके
दुर्भाग्य को दूर करिए...’
‘आप घर से ही बाहर नहीं निकलिए, अपने अंधेरों से भी बाहर निकलिए।’....
‘आप कहीं सर्विस कर लीजिए, आर्थिक ताकत आपमें
आत्मविश्वास भरेगा।’....
‘अपनी जिंदगी खुद बनाइये...किसी की परवाह मत करिए।’...
‘केवल ज्ञान ही है जो सदा साथ देता है’...
....ऐसे ही न जाने कितने सन्देश रोज आते और उसके अंतस में उत्साह भर जाते, अब वह घर वालों की गलत बातों का प्रतिरोध भी करने लगी थी, शीघ्र ही उसे एक प्राइवेट स्कूल में सर्विस मिल गई,
छह महीनों में ही वह आत्मविश्वास से भरने लगी... उसे लगने लगा सचमुच प्रेम में बड़ी
ताकत होती है, अमित ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी
थी...उसके सपनों को पंख लगने लगे थे वह अमित के साथ जीवन के नए सपने बुनने लगी
थी.....पर एक दिन फिर घर मे कोहराम मच गया।
वह
स्कूल से आकर बाथरूम मुँह धोने चली गई, तभी
व्हाट्सएप पर अमित का मैसेज चमका... आज मैं बहुत बिजी था आपको स्माइल भी नहीं दे
सका सॉरी.. पर आप पिंक सूट में बहुत अच्छी लग रही थीं...उसके नीचे प्रेम वाली
इमोजी थीं...भाभी वहीं बैठी थीं,बस फिर क्या था उसे कठघरे
में खड़ा कर दिया गया,ढेर से प्रश्नों ने उसे घेर
लिया..अंततःउसने चीख कर कहा – ‘हाँ, मैं अमित से प्रेम करती
हूँ उसी से शादी करूँगी...’
...फिर क्या था घर मे भूचाल आ गया... एक बार फिर महाभारत शुरू हुआ। जाति के
झगड़े, परिवार की मर्यादा, ऊँच-नीच के
प्रश्न, नैतिकता-धर्म की दुहाई भाँति-भाँति से काजल को
समझाया गया, धमकाया गया...जब उस पर किसी अस्त्र का प्रभाव
नहीं हुआ, तो उसे बाहर न जाने की सख्त हिदायत दे दी गई...काजल
ने तिक्त स्वर में कहा-’मैं तो करमजली हूँ, सब पर बोझ हूँ,फिर क्यों आप सब परेशान हो रहे हैं,आप लोग तो मेरी शादी कर नहीं पाए, मैं कर रही हूँ तो
आपको कुल मर्यादाएँ ध्यान आ रही हैं...और हाँ, आप लोग समझ
लीजिए मैं बालिग हूँ कानूनन आप मुझे नहीं रोक सकते...’
कई
दिनों तक घर मे तनातनी चलती रही,आखिर घर वालों ने
हथियार डाल दिए
काजल को अमित
की संगिनी बनने से कोई नहीं रोक पाया...
...अब वह करमजली नहीं, अपशकुनी नहीं किसी घर की
भाग्यलक्ष्मी है...
अचानक
उसके ठीक पीछे कोई पटाखा फटा वह चौंक गई देखा अमित खड़े मुस्करा रहे थे उन्होंने ही
पटाखा चला कर उसका ध्यान भंग किया था...किसके
सपनों में खोई हो काजल..वे मुस्करा रहे थे ...सब नीचे तुम्हारा इंतजार कर
रहे हैं।..कहते हुए अमित ने उसकी हथेली अपने हाथों में ले ली और नीचे की ओर बढ़ने
लगे.... ‘सोच रही हूँ आज मम्मी पापा अपनी इस करमजली के भाग्य को देखते...’ उसने
ठंडी साँस भरी।
अमित
मुस्कराए, उन्होंने कुछ कहा, पर क्या कहा पटाखों के शोर में
काजल ने कुछ नहीं सुना, वे उसी प्रकार हाथ थामें हुए उसे
नीचे आँगन तक ले आए, अचानक कॉल बेल बजी, अमित ने द्वार खोले तो काजल हतप्रभ रह गई, सामने दीपावली के उपहारों को लिए हुए मम्मी-पापा,
भैया-भाभी खड़े मुस्करा रहे थे, वह कुछ क्षणों
उन्हें देखती रही फिर दौड़ कर उन लोगों से लिपट गई, तभी अमित
ने दो फुलझड़ियाँ जला दीं, सारा वातावरण रोशनी के फूलों से भर
गया, काजल को लगा आज उससे अधिक सौभाग्यवाली और कोई नहीं है।
डॉ.
शिवजी श्रीवास्तव
सेवानिवृत्त
एसोशिएट प्रोफेसर
श्री
चित्रगुप्त पी.जी.कॉलेज
मैनपुरी(उ.प्र.)-205001
सौभाग्य आता नहीं लाया जाता है।जीवन में उजास भरती सकारात्मक सोच लिए बहुत सुंदर कहानी। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार
हटाएंबहुत ही सुन्दर,मन में सुख भरती कहानी।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई!