त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलियाँ
आती है दीपावली, लेकर यह
सन्देश ।
दीप जलें जब प्यार
के, सुख देता
परिवेश ।।
सुख देता परिवेश, प्रगति के पथ खुल जाते ।
करते सभी विकास, सहज ही सब
सुख आते ।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती ।
जीवन हो आसान, एकता जब
भी आती ।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज ।
मानव ही दीपक बने, यही
माँग है आज ।।
यही माँग है आज, जगत में हो उजियारा ।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएँ भाईचारा ।
‘ठकुरेला’ कविराय, भले हो नृप या चाकर ।
चलें सभी मिल साथ, प्रेम के दीप जलाकर ।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम ।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार
तुम्हारा चूम ।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर
लेती ।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती ।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा ।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा ।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी
बात ।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात
।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते ।
हुआ प्रकाशित विश्व , स्वप्न आँखों में पलते ।
‘ठकुरेला’ कविराय, बजी खुशियों की ताली ।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर
दीवाली ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बंगला संख्या - 99,
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड - 307026
जिला- सिरोही ( राजस्थान )
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