बिटिया
प्रीति अग्रवाल
सुनीता चेकअप करा कर लौटी थी।
माँ ने घुसते ही पूछा , “क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक है न...’
उत्साह जताते हुए सुनीता ने हामी भर दी, ‘सब ठीक है माँ, चिन्ता की कोई बात नहीं ...’
निश्चिंत हो, माँ ने गहरी साँस भरी और रसोई की ओर चल दी, उसकी पसंद का सूजी का हलवा बनाने।
ऐसे समय में खुश रहना, अपनी पसन्द का खाना, पीना,
उसके लिए कितना जरूरी है, वो समझती थी।
कुछ महीनों बाद माँ को खबर मिली कि सुनीता को बिटिया हुई,
और उसने अपनी ननद को गोद दे दी। वो आवाक् रह गयीं!
जानती थी कि ननद की कोख ठहर नहीं पाती थी, पर यूँ अपना बच्चा दे देना...!
सुनीता आई तो उन्होंने सवालों की बौछार कर दी...
‘अरी, किसी से न सलाह, न मशवरा, यूँहीं
बच्ची उठा कर दे दी... ‘
‘कैसी निर्मोही है री तू, तेरा कलेजा नहीं काँपा, अपने जिगर के टुकड़े से अलग होते समय... ‘
‘मुझे तो विश्वास नहीं होता कि तू मेरी ही बेटी है... देखा
नहीं तूने, तेरे
पिता जी के बाद भी मैंने तुम तीनों बहनों को अकेले किस तरह पाला... ‘
“खून से सींचना पड़ता है औलाद को, आसमान से नहीं टपकती... ‘
माँ वही एक राग अलग अलग तरीकों से दोहरा रही थी।
सुनीता का मौन, उसकी आँखों का शून्य, उसकी शिथिलता, माँ को कुछ नहीं दिख रहा था।
जैसे ही माँ ने कहा, ‘सुधीर जी ने रोका नहीं तुझे, उन्होंने हामी कैसे भर दी... आने दे,
पूछूँगी उनसे .. ‘
सुनीता की मानो तन्द्रा टूटी और वो चीख उठी, “माँ, तुम्हारे दामाद किसी भी हालत में एक और लड़की नहीं चाहते थे ...
समझ रही हो न माँ, ‘किसी भी हालत में ... !’
प्रीति अग्रवाल
कैनेडा
समाज का आईना दिखाती, भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी लघुकथा।हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद दीदी, मुझे खुशी है कि आपको पसंद आई!
जवाब देंहटाएंबड़ा अजीब समाज है! बहु चाहिये तो सोच अलग और बेटी बिहानी है तो कुछ और। औरत जब माँ है तो कुछ और जब सास है तो कुछ और, बहन है तो कुछ और लड़की है तो कुछ । ये ऐसी विसंगतियाँ हैं समाज में जो आज भी बेटी व बेटे के जन्म पर बहुतायत द्वारा दोहरे मापदंड अपनाती नज़र आती है । समाज पर प्रश्न चिन्ह लगाती आपकी ये कहानी संदेशात्मक है । साधुवाद सुन्दर प्रीति जी ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक लघु कथा।
जवाब देंहटाएंवही दुख भरी कथा , बेचारी सुनीता !
जवाब देंहटाएंहम अपने आप को शिक्षित समाज में रहने का दम भरते हैं पर आज भी अनेकों की मानसिकता यही है कि बेटी बेटे में अंतर समझा जा रहा है । बहुत अच्छी लघु कथा है । बधाई हो । सविता अग्रवाल “ सवि “
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