हकीकत
प्रीति अग्रवाल
आशा देवी के घर पोता हुआ था, दोनों बेटियाँ बधाई देने आएँगी,
उन्हें कपड़ा लत्ता देना होगा, यही सोच कर अपना सन्दूक खोले बैठी थीं।
तभी पड़ोस से उनकी सहेली, पोती चुनमुन का हाथ पकड़े वहीं आ गयी।
एक से भले दो, सो दोनों मिलकर साड़ियाँ छाँटने लगीं। हर बार यही बात होती
कि बड़ी तो सीधी है, जो दे दो खुश होकर ले लेती है, पर छोटी थोड़ी नखरेलिया है, उसे जल्दी से कुछ पसन्द नहीं आता।
इसी तरह बोलते बतियाते, ए-ग्रेड माल छोटी और बी- ग्रेड बड़ी को बँटता गया।
घर आकर चुनमुन अपनी गुड़िया से खेलने लगी,
फिर ठिठक कर बोली, ‘दादी, बड़ी दीदी कितनी अच्छी है, फिर सारी अच्छी चीज़े छोटी दीदी को क्यों मिली...’
दादी गहरी साँस लेकर बोली, ‘अब क्या बताऊँ बिट्टो, बस यूँ समझ कि जो दरवाज़ा ज़्यादा चर्राता है ना,
पहले तेल उसी को मिलता है...!’
प्रीति अग्रवाल
कैनेडा
सुंदर लघुकथा, हार्दिक शुभकामनाऍं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय भीकम सिंह जी!
हटाएंवाह । छोटी सी कहानी में बड़ी बात कह दी। बधाई बधाई। सविता अग्रवाल “सवि”
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लघुकथा । हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर
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