सोमवार, 30 सितंबर 2024

ताँका

 


भीकम सिंह

1

तन नींद में

शाम का थका-माँदा

मन प्यार में ,

होना चाहे हार में

थोड़ा कम ना ज्य़ादा।

2

चारों ओर से

यादों की घटा घिरी

आज सबेरे

उगने लगी प्रीत

फिर से धीरे-धीरे ।

3

दिन-ब-दिन

ऑंखों में चलती है

तेरी जुस्तजू

हर तरफ यादें

और यादों में है तू 

4

गर्म होठों की

वहीं छुअन जगी

ऑंखों में फिर

होने लगी मन में

बरसात -सी फिर ।

5

मैं भी चाॅंद - सा

फॅंस गया धरा से

प्रेम करके,

तारें भी छोड़ गए

एक-एक करके ।

6

तेरी यादों का

सिलसिला जारी है,

अभी शायद

मन ने समझा है

ये भी जिम्मेदारी है।

7

ऑंखों में ख़्वाब

बस तेरे उभरे

अनेकों बार

जैसे किसी श्राप से

मन हुआ लाचार 

8

याद आई है

एक जरा - सी भूल

सालों के बाद

ऑंसुओं की धार से

फिर भीगी है रात ।

9

मेरी यादों में

हर पल रहती

तेरी भनक

प्रेम भरी रातों की

बीती हुई खनक 

10

तेरे स्वप्न को

याद करते हुए

बीते हैं पौष

ऑंखों के सारे भाव

पड़े रहे खामोश ।

 


भीकम सिंह

‘अभिधा’ गली नं. 5

जारचा रोड, गुर्जर कॉलोनी

दादरी, गौतमबुद्ध नगर (उ. प्र.)

2 टिप्‍पणियां:

सितंबर 2024, अंक 51

शब्द-सृष्टि सितंबर 202 4, अंक 51 संपादकीय – डॉ. पूर्वा शर्मा भाषा  शब्द संज्ञान – ‘अति आवश्यक’ तथा ‘अत्यावश्यक’ – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र ...