अध्येताओं की नजर में प्रेमचंद और उनका साहित्य
• प्रेमचंद का कथा-साहित्य अपने पाठकों को समाजोन्मुख बनाना
है और आत्मोन्मुख भी। जब वह समाजोन्मुख बनाता है तब अपने समय और समाज की सभ्यता की
समीक्षा करने के लिए प्रेरित करना है और जब आत्मोन्मुख बनाता है तो आत्मविश्लेषण
और आत्मालोचन की भावना पैदा करना है।
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मुक्तिबोध
• प्रेमचंद का वश चलता तो ‘गोदान’ के होरी को वे गाय नहीं,
गोशाला दिला देते, उसे विजयी दिखाते, कारण उससे वे संवेदनात्मक स्तर पर जुड़े थे। ‘ईदगाह’ के
हामिद को भी वे अपने कंधों पर बिठाकर मेला दिखाते, उसे मिठाइयाँ खिलाते, परन्तु जब उन्होंने लिखा, अपने चाहे हुए को रौंद कर वही लिखा,
जो वास्तविक जीवन की सच्चाई थी। वे जानते थे कि उपन्यास के
होरी को गाय मिल सकती है, वास्तविक जीवन के होरी को नहीं और हामिद को, छः साल के इस बच्चे को जब उन्हें लोहे का चिमटा पकड़ाना पड़ा,
वे किस अहसास से गुज़रे होंगे, समझा जा सकता है। परन्तु उन्होंने उसे चिमटा पकड़ाया। यही
‘यथार्थवाद’ की विजय है और यही एक बड़े रचनाकार के रूप में प्रेमचंद की पहचान है।
- डॉ. शिवकुमार मिश्र
[‘प्रेमचंद का रचना संसार (पुनर्मूल्यांकन)]
[साभार - सं.डॉ. सुशीला गुप्ता]
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• प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी और उर्दू-साहित्य की बुनियाद हैं और
बुलन्दी भी। उनको भुलाकर बीसवीं सदी के न तो हिन्दी कथा-साहित्य के इतिहास को
समझना सम्भव है और न उर्दू कथा-साहित्य के इतिहास को। हिन्दी और उर्दू के
कथा-साहित्य की बुनियाद के निर्माण में प्रेमचंद का सबसे बड़ा योगदान यह है कि
उन्होंने उपन्यास और कहानी की ‘कर्मभूमि’ बदली और दोनों का ‘कायाकल्प’ भी किया।
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मैनेजर पाण्डेय
[साभार - प्रेमचंद के आयाम, ए. अरविंदाक्षन]
• प्रेमचंद उन ईमानदार लेखकों और उससे पहले उन ईमानदार
आदमियों में थे, जो
आचरण और लेखन और कथन में कोई फ़र्क सोच ही नहीं सकते। इसलिए दुहरे-तिहरे व्यक्तित्व
वाले लेखकों और पत्रकारों जैसी दूरी प्रेमचंद के साहित्य और उनके जीवन में नहीं
मिलती। जैसी उनकी ज़िन्दगी थी, कदम-कदम पर, एक-एक चीज के लिए, छोटी सी छोटी बात के लिए संघर्षरत,
वैसा ही उनका साहित्य है।
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रामदेव शुक्ल
[साभार - प्रेमचंद परिचर्चा, सं. कल्याणमल लोढ़ा / रामनाथ तिवारी]
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