महफूज़
डॉ. मुक्ति शर्मा
नेहा जैसे सुबह स्कूल
पहुँची तो "सादिया दौड़कर आई नेहा से लिपटकर रोने लगी"।
सादिया क्या हुआ, तुम
रो क्यों रही हो? चुप हो जाओ।
मैम : मुझे मेरे
अब्बू किसी के घर बेचना चाहते हैं!
बेचना चाहते हैं?
यह क्या बोल रही हो?
मैम सच बोल रही हूँ
अब्बू मुझे बेचना चाहते हैं।
पहले चुप हो जाओ ऐसी
बातें नहीं करते।
मैम : दो महीने पहले
अम्मी अल्लाह मियाँ को प्यारी हो गई!
अब्बू ने 15 दिन बाद ही निकाह कर लिया।
नई अम्मी मुझे
बिल्कुल प्यार नहीं करती ,ना ही वे चाहती है कि मैं स्कूल पढ़ूँ।
वे मुझे मारती है।
हे राम,
कोई ऐसा भी करता इतनी मासूम सी बच्ची को मारता है बुरी तरह
से।
तुमने अब्बू को बताया
नहीं?
अब्बू सिर्फ उनकी बात
सुनते हैं किसी और कि नहीं। एक तो मैं घर
का सारा काम करती हूँ; कल रात मैंने भिंडी की सब्जी बनाई, सब्जी जल गई, उन्होंने
जोर से थप्पड़ झाड़ दिया।
अब्बू सामने ही खड़े
थे उन्होंने कुछ नहीं कहा।
मैम : क्या मैं इतनी
बड़ी हूँ कि घर का सारा काम कर पाऊँ ठीक ढंग से?
मैम : आप मुझे अपने
घर ले जाओ, नहीं जाना मुझे किसी और के घर. ..
उस समय मेरी आँखों से
आँसू टपकने लगे।
मैंने सादिया को गले
से लगा लिया बच्चे कोई धर्म जाति नहीं देखते सिर्फ ऐसी जगह ढूँढते हैं जहाँ वे
महफूज़ रह सकें।
डॉ. मुक्ति शर्मा
बोंगांव मटृन अनंतनाग
कश्मीर
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