हिंदी का
हिमालय (मुंशी प्रेमचंद)
गोपाल जी
त्रिपाठी
यह दुनिया है ‘कर्मभूमि’
तुम ‘रंगभूमि’ ही समझ रहे ,
‘सवासेर गेंहूँ’ हराम था, किस ‘सद्गति’
में उलझ रहे!
यह जीवन एक ‘प्रेमाश्रम’ है ‘सेवा सदन’ न बन जाये,
‘प्रेम की वेदी’
पर कुर्बानी सिर पर पहन ‘कफन’ आये ।
कितने भी ‘गोदान’ करो तुम, ‘कायाकल्प’ नहीं
होगा;
धनिया रो-रो मर जायेगी, साधन स्वल्प नहीं
होगा ।
‘पूस की रात’ में
होरी-झबरा ठिठुर -ठिठुर मर जायेंगे,
गऊदान होगा जरूर पर कम्बल एक न पायेंगे ।
‘ठाकुर के कुएँ’ पर घुरहू का मुहाल पानी
भरना,
किये अगर विद्रोह नियत है ठाकुर के हाथों मरना ।
‘होनहार विरवान नहीं तो पात हुए कैसे
चिकने’,
सामंतों के हाथ
में अब तो ‘मिल मजदूर’ लगे बिकने !
‘परमेश्वर है
पंच’ अगर तो ‘गबन’ नहीं हो पायेगा,
छः पैसे लेकर हामिद भी ‘ईदगाह’ को जायेगा ।
कामरान कादिर कल्लू कासिम मेले में जायेंगे,
खेल-खिलौने और मिठाई लेकर मौज मनाएँगे ।
दादी की आँखों का तारा चिमटा लेकर आयेगा,
जलते हाथों प्यार मिलेगा खूब दुआएँ पायेगा ।
‘धनपत राय’ नवाब हो गया ‘चंद प्रेम’ की
गाथा है,
उर्दू का सिरमौर वही हिंदी का सागर माथा है ।
जैसे पति परमेश्वर के बिन ‘मंगलसूत्र’अधूरा है,
वैसे ही साहित्य गगन भी ‘मुंशी’ बिना न पूरा है
।।
गोपाल जी
त्रिपाठी
हिंदी प्रवक्ता
कवि और
साहित्यकार,सेंट जेवियर्स
स्कूल सलेमपुर
ग्राम पोस्ट-
नूनखार,देवरिया उ०प्र०
बहुत सुंदर। सच्ची श्रद्धांजलि। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की महत्त्वपूर्ण रचनाओं को माला की भांति पिरोते हुए हिन्दी साहित्य में अप्रतिम कथाकर के महत्त्व को दर्शाती अत्योत्कृष्ट कविता।शब्द सृष्टि के साथ कविवर गोपाल जी त्रिपाठी जी को आत्मीय शुभकामनाएँ और बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह वाह , बहुत सुन्दर !
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