प्रेम-बीज
डॉ. पूर्वा शर्मा
क्या तोहफ़ा दूँ
आज मैं तुम्हें !
दिए थे तुमने ही
बरसों पहले मुझे
‘प्रेम-बीज’
रख लिया था जिसे मैंने
दिल में दबाकर,
और फिर
वक्त की वही कहानी...
जुदा हुई राहें
और... जुदा ज़िंदगानी
लेकिन अरसे बाद
फिर से वक्त ने ली
कुछ करवटें
और आ गए सामने
तुम....
मुझे लगा था कि
वक्त के ताप में दबकर
नष्ट हो गए होंगे
यह नन्हे प्रेम-बीज,
मगर
वक्त और हालात की मार ने
इस प्रेम-बीज को बना दिया
प्रेम का ‘कल्पवृक्ष’
पनप रहे हैं अब इस वृक्ष पर
प्रेम के असंख्य बीज-पुष्प
यदि तुम स्वीकार करो तो
देना चाहती हूँ आज तुम्हें
वही पुष्प, वही बीज...
जो है मेरे जीवन के मंत्र-बीज ।
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
सुंदर मार्मिक कविता - प्रेम बीज
जवाब देंहटाएंप्रेम का कल्पवृक्ष
जवाब देंहटाएंसुंदर अवधारणा
सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंमन के कोमल भाव को उकेरती सुंदर कविता पूर्वा जी। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रिय पूर्वा जी!
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