शुक्रवार, 31 मार्च 2023

कविता

 

नारी

हिमकर श्याम

एक अघोषित युद्ध वह, लड़ती है हर रोज।

नारी बड़ी सशक्त है, सहन शक्ति पुरजोर।।

 

टूट रही हैं बेड़ियाँ, दिखता है बदलाव।

बेहद धीमी चाल से, बदल रहा बर्ताव।।

 

अपने निज अस्तित्व को, नारी रही तलाश।

सारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।

 

पूजन शोषण की जगह, मिले ज़रा सम्मान।

नारी में गुण- दोष है, नारी भी इंसान।।

 

हक की ख़ातिर बोलिए, शोषण है हर ओर।

अपनी ताकत आँकिए, आप नहीं कमजोर।।


 

हिमकर श्याम

राँची

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता। जब पुरुष नारी का मर्म समझेंगे, तभी उसकी गति में सुधार आएगा! आपके विचारों को नमन।

    जवाब देंहटाएं

अक्टूबर 2025, अंक 64

  शब्द-सृष्टि अक्टूबर 2025, अंक 64 शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक : प्रकाशपर्व की मंगलकामनाओं सहित.....– प्रो. हसमुख परमार आलेख – दीपपर्व – डॉ...