शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

दोहे

 



अनिता मंडा

धूप नहाई तितलियाँ, महक़  बिखेरें फूल।

दो पल की जादूगरी, बन जायेगी धूल।।

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जुगनू ढूँढे भोर में, पतझड़ में भी फूल।

कुदरत के सब क़ायदे, लोग गए हैं भूल।।

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हरी धरा पर है बिछा, फूलों का कालीन।

गुन-गुन भँवरे गा रहे, रहना क्यों ग़मगीन।।

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नियति जिंदगी की रही, संग फूल के खार।

दामन छलनी हो गया, जिसने चाहा प्यार।।

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मीठी सी मुस्कान दे, बातें कर लीं चंद।

तितली, भँवरे ले उड़े, फूलों से मकरंद।।

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फूलों के झूमर पहन, स्वागत करे पलाश।

कहे बसन्त सुहावना, हों मत कभी हताश।।

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अनिता मंडा

दिल्ली

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