स्मृति शेष भूपिन्दर
राजा दुबे
पार्श्वगायन हो या फिल्मों में संगीत देना या फिर केवल
गिटार से कुछ फिल्मी गानों में विलक्षण प्रभाव उत्पन्न करना, हर फन में माहिर
पार्श्वगायक भूपिन्दर अपनी श्रेष्ठ कलात्मक प्रतिभा के कारण बेहद लोकप्रिय
पार्श्वगायक और संगीतकार के रूप में पहचाने गये। दिलकश गीतों का गायन तो इस शख्सियत की पहचान रही।
भूपिन्दर के गाये गीतों में फिल्म ‘बाज़ार’ का एक गीत - "करोगे याद तो हर बात
याद आयेगी .." गाते समय भूपिन्दर सा'ब को अपने पिता और सुप्रसिद्ध संगीतकार
नत्थेसिंह की याद जरूर आई होगी जो अपने बेटे को एक परफेक्ट कम्पोज़र बनाना चाहते
थे और इसीलिए वे उन्हें संगीत सिखाते समय छोटी-छोटी चूक पर बहुत मारते थे और इसी
मार के चलते भूपिन्दर संगीत से परहेज़ करने लगे लेकिन प्रारब्ध से कोई कैसे भाग
सकता है, भूपिंदर भी नहीं भाग पाए और वे अपनी आवाज के बल पर बॉलीवुड में छा गये । ‘बाज़ार’
फिल्म के इस लोकप्रिय गीत के लेखक सागर सरहदी कहते हैं कि इस गीत का समग्र प्रभाव
भूपिंदर के डूब कर तल्लीनता के साथ गाने से उभरकर आया। इतने सालों बाद आज़ भी
यादों के गलियारों में टहलने वालों के लिए यह गीत एकदम मुफीद माना जाता है ।
भूपिन्दर द्वारा गाये गानों की संख्या भले ही सीमित है
मगर उन गीतों की लोकप्रियता अत्यधिक रही है और उनके गाये गीतों पर यह जुमला एकदम
फिट बैठता है कि उनके गाये गीत एक से बढ़कर एक हैं । फिल्म बाज़ार का सागर सरहदी
का लिखा गीत - " करोगे याद तो हर बात ..." या फिर किनारा फिल्म का
गुलज़ार का लिखा गीत - " नाम गुम जाएगा.." या फिर उन्हीं का लिखा फिल्म
परिचय का गीत ," बीती
ना बिताई रैना .." आज भी श्रोताओं के मनपसन्द गीतों की फेहरिस्त में शीर्ष पर
हैं । भूपिंदर के पार्श्वगायन के लिए इससे बड़ा काम्प्लीमेन्ट और क्या होगा कि आज
के दौर के सबसे बेहतरीन गीतकार गुलज़ार ने अनोखे गायक भूपिंदर के बारे में एक बात
कही थी कि " मेरा बस चले तो मैं भूपिंदर की आवाज़ का ताबीज़ बनाकर पहन लूँ
" । भूपिन्दर के अवसान के साथ वह दिलकश आवाज़ भी खामोश हो गई है मगर खामोश
होने से पहले इस आवाज़ ने दिल को छूने वाले इतने सारे नग़मे, नज़्म और ग़़ज़ल के रूप
में दिए हैं, जिन्हें याद कर ज़माना भूपिंदर पर फ़ख़्र करेगा
। ‘दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात-दिन’ या ‘एक अकेला इस शहर में’ या ‘फिर कभी
किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता’ जैसे कितने ही कालजयी गीत गाने वाले भूपिंदर की
जोड़ी गुलज़ार के साथ खूब जमी । गुलज़ार सरीखे गीतकार भूपिंदर की आवाज़ के साथ
उनकी बनाई धुनों के भी कायल थे ।
भूपिंदर का जन्म पंजाब प्रांत के पटियाला में 06, फरवरी 1940 में
हुआ था। उनके पिता नत्थेसिंहजी भी बहुत बड़े संगीतकार थे, इसलिए
वे संगीत के बीच में ही पले-बढ़े। हालाँकि
उनके पिता बहुत सख्त थे और संगीत के शिक्षण के प्रति कड़े अनुशासन से उन्हें बचपन
में संगीत से वितृष्णा हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे वो संगीत को पसन्द करने लगे ।
किशोरावस्था में ही उन्होंने ग़ज़ल गाना शुरू कर दिया था। उन्हें आकाशवाणी के एक
कार्यक्रम में गजल गाने का मौका मिला और इसके बाद उन्हें दिल्ली के दूरदर्शन
केंद्र में भी गजल गाने का मौका मिला। वर्ष 1980 के दशक में
भूपिंदर सिंह ने बांग्लादेश की गायिका मिताली सिंह से शादी कर ली। साथ में दोनों
ने कई कार्यक्रम किए, जिनसे उनकी शोहरत को चार चाँद लग गए।
भूपिन्दर जगजीत सिंह, गुलाम अली और हरिहरन आदि को अपना आदर्श मानते थे लेकिन
दुष्यन्तकुमार के भी बडे़ मुरीद थे। वो कहते थे कि संगीत को किसी सरहद में नहीं
बाँधा जा सकता। गीत अच्छे हों, संगीत में मिठास हो तो हर कान
को भाता है।
भूपिंदर को दिल्ली शहर बहुत रास आया । दिल्ली में रहकर
उन्होंने गिटार और वायलिन बजाना सीखा। वर्ष 1968 में संगीतकार मदन मोहन ने आल इंडिया रेडियो पर उनका
कार्यक्रम सुनकर उन्हें दिल्ली से मुम्बई बुला
लिया। सबसे पहले उन्हें फिल्म ‘हकीकत’ में मौका मिला जहाँ, उन्होंने
इस फिल्म की एक ग़ज़ल - " होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा " मोहम्मद
रफी सा'ब के साथ गाई । यह ग़ज़ल तो हिट हो गई, लेकिन उन्हें इससे कोई खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद भूपिन्दर सिंह ने
स्पेनिश गिटार और ड्रम पर कुछ गजलें पेश की। वर्ष 1968 में
अपनी लिखी और गाई हुई गजलों की एलपी (लांग प्लेइंग) रिकार्ड रिलीज की जो ज्यादा
ध्यान नही खिंच पाई । लेकिन इस नए प्रयोग को जब उन्होंने दूसरी एलपी रिकार्ड में
पेश किया तो सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ । इसके बाद "वो जो शहर
था" नाम से वर्ष 1978 में जारी तीसरी एलपी रिकार्ड से
उन्हें खासी शोहरत मिली। गीतकार गुलजार ने इसके गाने वर्ष 1980 में लिखे थे।
रिक्तता को भरने की अनुभूति जगाती थी भूपिन्दर की आवाज़
फिल्मों और फिल्म संगीत पर आधिकारिक तौर पर लेखन करने
वाले सुप्रसिद्ध समीक्षक यतीन्द्र मिश्र ने अपनी फेसबुक वाल पर भूपिन्दर सिंह के
बारे में लिखा कि एक आवाज़, जो माइक्रोफोन से निकलकर अपने भारी एहसास में रिक्तता को भरती सी लगती थी।
कहीं पहुँचने की बेचैनी से अलग, बाकायदा अपनी अलग सी राह
बनाती हुई, जिसे निर्वात में गुम होते हुए भी ऑर्केस्ट्रेशन
के ढेरों सुरों के बीच दरार छोड़ देती थी।
सत्तर-अस्सी के दशक में ऐसे कई गीतों के गायक जिन्होंने जब भी गाया,
सुनने वाले को महसूस हुआ -जैसे कुछ गले में अटका रह गया है। एक कभी न
कही गई दुःख की इबारत, जिसके सहारे जज़्बात की शाख पर
गीतकारों ने कुछ फूल खिला दिए थे। याद कीजिए- 'आज बिछड़े हैं
कल का डर भी नहीं / जिंदगी इतनी मुख्तसर भी नहीं…' (थोड़ी सी
बेवफाई), 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी…' (बाज़ार), 'एक अकेला इस शहर में…’ (घरौंदा), 'फिर तेरी याद नए दीप जलाने आई…’ (आई तेरी याद), 'ज़िंदगी,
जिंदगी मेरे घर आना…’ (दूरियाँ) , सब एक से
बढ़कर एक।
भूपिंदर किसी भी गीत को गाने के पहले गले की कितनी
तैयारी करते थे यह हर उस गाने में भी अलग
से सुनी जा सकती थी जहाँ उनके करने के लिए बहुत ज़्यादा नहीं था, उनकी छोटी सी मौजूदगी भी कहीं दर्ज़ रह
जाती थी। एस. डी. बर्मन के संगीत में लता मंगेशकर के ‘ज्वैलथीफ’ फिल्म के गीत - ‘होठों
पे ऐसी बात मैं दबा के चली आई’ या मदन मोहन के लिए 'हकीकत' में मो. रफ़ी, मन्ना डे और तलत महमूद जैसे दिग्गजों के संग 'होके
मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा...' गाना अविस्मरणीय हो गया
।भूपिन्दर सिंह ऐसे बहुत थोड़े, मगर अमर गीतों में खुद की
आवाज़ को हौले से दर्ज़ होने देते थे। उनकी यही पहल उनको बड़ा गायक बनाती थी ।उनके
उन्मुक्त गानों पर झूमने के भी कई बहाने होते थे । मिताली के संग के कुछ गीतों में
आप उन दोनों को सुनिए- 'राहों पे नज़र रखना/ होठों पे दुआ
रखना/ आ जाए कोई शायद / दरवाज़ा खुला रखना…' मगर अब वो
दरवाज़ा खुला ही रहने वाला है। भूपी भला अब कहाँ लौटने वाले हैं? हम बस उनकी यादों में उन गानों की प्लेलिस्ट में डूबते-उतराते रहेंगे । वे
अब नहीं हैं मगर उनकी सोज़ भरी गायकी आज़ भी हमारे बीच है।
भूपिंदर का गिटार वादन का जलवा भी खूब रंग लाया
भूपिन्दर शौकिया गिटारवादक नहीं थे । गिटार वादन का
उन्होंने बाकायदा शिक्षण प्राप्त किया था और वे गिटार से किसी भी फिल्मी गीत में विलक्षण प्रभाव
उत्पन्न करने की कला में पारंगत थे । चेतन आनन्द की फिल्म ‘हँसते जख्म’ में एक गाना है- ‘तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है ...’ इस गाने
में गिटार भूपिंन्दर सिंह ने ही बजाया था.।यहीं से उनके गिटार का जलवा लोगों ने
देखा फिर उन्होंने जो कुछ किया वह इतिहास है। ‘यादों की बारात " फिल्म के प्रसिद्ध
गाने - ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को ..’
में गिटार भूपिंदर सिंह ने बजाया था। इतना ही नहीं फिल्म हरे रामा, हरे कृष्णा के गीत - ‘दम मारो दम ..’ , शोले फिल्म के गीत - ‘मेहबूबा मेहबूबा ..’ और अमर प्रेम फिल्म के गीत ‘चिन्गारी कोई भड़के
..’ में भी भुपिन्दर ने गिटार वादन किया
था ।
राजा
दुबे
एफ
- 310 राजहर्ष कालोनी ,
अकबरपुर
कोलार
रोड
भोपाल
462042
कालजयी गीतों को देने वाले गायक भूपिन्दर को सादर नमन। बहुत सुंदर आलेख। सुदर्शन रत्नाकर
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