राजस्थानी लोकगीतों में प्रेम निरूपण
जालम सिंह राजपुरोहित
राजस्थान की
भूमि पर लोकगीतों का सांस्कृतिक वैभव देखने को मिलता है। यहाँ के लोग लोकगीत को
जीवन की आत्मा मानते हैं। लोकगीत राजस्थान की मूल धरोहर के रूप में विद्यमान है जिसमें
लोक के संपूर्ण जीवन का प्रतिबिंब देखने को मिलता है। वैसे भी लोकगीत समाज के प्रत्येक
वर्ग एवं उसकी संस्कृति के वाहक होते हैं। लोकगीत अपने सौन्दर्य में निराले हैं, जो लोक के गीत हैं जिन्हें पूरा समूह या संपूर्ण समाज अपनाता है। राजस्थान का
भौगोलिक क्षेत्र ही अपने आप में अनूठा है। तापान्तर का फ़ेरबदल सबसे ज्यादा यहाँ
देखने को मिलता है जिसकी वजह से यहाँ के लोग अपने जीवन को खुशमय बनाए रखने के लिए गीतों का सहारा लेते हैं। इन गीतों का गायन इनके
जीवन की स्वाभाविक क्रिया है चाहे वह सुखमय जीवन जी रहे हो या दुःखमय जीवन, उसे गाये बिना नहीं रह सकता। राजस्थान में विविध विषयों से संबंधी गीत गाये
जाते हैं। इन सभी प्रकार के गीतों में प्रेम विषयक गीतों का महत्व कुछ विशेष ही
रहा है।
प्रेम
संबंधी लोकगीतों में पति-पत्नी(दाम्पत्य) के गीतों का
विशेष महत्व रहा है जिसमें संयोग और वियोग की उलाहना देखने को मिलती है, विशेषतः स्त्रियों के गीतों की बहुलता हैं और अपने प्रियवर की याद में विविध
गीतों को माध्यम बनाती है।
पणिहारी गीत:- पणिहारी गीत राजस्थान की स्त्रियों का आत्मीय गीत है, जिसमें नैसर्गिक सौंदर्य जो स्थानीय परिवेश की छटा का विवरण प्रस्तुत करते हैं, इस गीत
में घर की बहू पानी के लिए पणिहार(पानी लेने का स्थान)जाने के लिए घड़ा हाथ में
लेती है तो उसका प्रियवर मना करता है कि आसमान अपने घनघोर रूप में छा रहा है पूरा
वातारण अंधकारमय हो गया है अतः इस भयंकर रौद्ररूपी वातावरण में पानी लेने मत जाओ,इस प्रकार
के मनोरम दृश्य पणिहारी गीत में देखने को मिलते हैं –
‘काळी ए कळायण उमठी ए पणिहारी जी ए लो
मोटिडी छांट्यारों बरसे मेह वाला जी हो
किणजी खुदाया नाडा नाडिया है,पणिहारी है लो
किणजी खुदाया है तलाब,वालाजी हो’।।1
पणिहारी लोक गीत
में स्त्री की मनः स्थिति की अभिव्यंजना हुई है। जब वह पानी को निकाल रही होती है
तो पति उसको रोकता है और कहता है बादलों के प्रलयकारी रूप से लगता है घनघोर वर्षा
होने वाली है परंतु पत्नी रुकती नही क्योंकि पानी के अभाव में घर के सदस्यों के ताने
सुनने पड़ेंगे और बाहर उसकी सहेलियाँ भी आयी हुई है तो सब साथ मिल कर पानी लेकर भी
आ जायेगी। उसी रूप में पणिहारी गीत का महत्व बढ़ जाता है,साथ ही पति-पत्नी के
बीच प्रेम भरा संवाद से आपसी प्रेम का मनोरम दृश्य प्रस्तुत हो जाता है। इस गीत के
बोल आज भी राजस्थान की स्त्रियों की जिव्हा पर आसीन है।
कुरजा गीत:- कुरजा गीत राजस्थान की स्त्रियों का विरह प्रधान गीत है, जिसमें स्त्री
कुरजा(पक्षी) को संबोधित करते हुए वार्तालाप करती है और वह अपनी वेदना इस पक्षी को
सुनाती है। जिसमें कहा गया है कि तू मेरे धर्म की बहन है, तेरा और मेरा जीवन एक
समान है, मेरे प्रियतम धन अर्जित करने परदेश गए है वे इतने महीने से
लौटे भी नहीं, ना ही मेरी याद उनको आयी, मेरा ये
वेदनामय संदेश तू उन तक पहुँचा जिससे वो जल्दी से घर आ जाये।
‘सुपनो जगाई आधी रात में
तने में बताऊँ मन की बात
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलादयो ऐ
संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ’।।2
राजस्थान में
कुरजा गीत स्त्री की मनोदशा को व्यक्त करता है इसमें स्त्री कुरजा जीव को अपना
संदेस देते हुए उसे पति तक पहुँचाना चाहती है, दोनों के बीच आयी दूरी मिट जाए। प्रेयसी का संदेश कुरजा भँवर को सुनाती है तो प्रियवर
तुरन्त मिलने के दौड़ा चला आता है और दोनों का सुखद मिलन हो जाता है।
सुपनो गीत:- प्रेमिका अपने रंग महल में सो रही होती है और अपने प्रेमी
के मधुर मिलन के स्वप्न देख रही होती है तभी किसी कारणवश उसकी नींद टूट जाती है। सखियाँ
उससे नींद टूटने से पहले जब वो नींद में मुस्कुरा रही थी तो उसकी वजह पूछती है तो प्रेमिका
अपने मधुर मिलन की बात करती है जो इस गीत में बताया गया है।
‘सूती छी रंग महल में
सूती ने आयो रे जंजाल
सूपना रा बैरी नींद गवाइ रे’।।3
इस तरह अनेक प्रेम
के गीत राजस्थान की स्त्रियों द्वारा गाये जाते हैं, जिसमें प्रेम की मनोरम अभिव्यंजना हुई है। ऐसे अन्य गीतों के नाम हैं -झोरावा गीत, सुवटियो गीत, सेंजा गीत,कांगसियो गीत,हिचकी गीत,मोरियों
गीत ,बिच्छुडों गीत, घूमर गीत,मूमल गीत
आदि। प्रेम के ये गीत हैं जो विविध समय एवं सौन्दर्यानुरूप गाये जाते है।
संदर्भ:-
1- राजस्थानी लोक गीत, डॉ. पुरूषोत्तम लाल मेनारिया पृष्ट संख्या- 48
2- राजस्थानी लोकगीत गायक सीमा
मिश्रा, इंटरनेट से प्राप्त
3- मारवाड़ी सॉन्ग इन, गूगल
द्वारा प्राप्त
जालम सिंह राजपुरोहित
शोध-छात्र
सरदार पटेल विश्व विद्यालय
सुंदर आलेख।बधाई जालिम सिंह राजपुरोहित।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..हार्दिक बधाई आपको जालम सिंह राजपुरोहित जी!
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