सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

विचार स्तवक

 


 

रामधारीसिंह दिनकरकी सूक्तियाँ


1) धर्म

है धर्म पहुँचना नहीं,

धर्म तो जीवन भर चलने में है,

फैला कर पथ पर स्निग्ध ज्योति

दीपक- समान जलने में है ।

2) प्रेम

पड़ जाता चस्का जब मोहक

प्रेम-सुधा पीने का,

सारा स्वाद बदल जाता है

दुनिया में जीने का ।

3) भारत

गाँधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के;

भारत स्वयं मनुष्य जाति की बहुत बड़ी कविता है।

4) मृत्यु

दो गज झीनी कफनी में

जीवन की साध समेटे,

सो रहे कब्र में कितने

तन से इतिहास लपेटे ?

5) व्यष्टि- समष्टि

आते सारे भाव व्यक्तियों के

समाज से छनकर;

पुन: लौट जाते समष्टि में

ही वे गायन बनकर।

6)

रक्त बुद्धि से अधिक बली है और अधिक ज्ञानी भी,

क्योंकि बुद्धि सोचती और शोणित अनुभव करता है ।

 

(दिनकर की सूक्तियाँ - रामधारी सिंह दिनकर)


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