भारत पर्वों और त्यौहारों का देश है । ‘सात वार और नौ
त्यौहार’ उक्ति इस बात का प्रमाण है कि व्रत व पर्व-त्यौहारों की मात्रा और महत्त्व
यहाँ ज्यादा है । भारतीय संस्कृति एवं जीवन का अभिन्न अंग रहे इस विषय की
प्रस्तुति साहित्य में ही नहीं बल्कि सिनेमा में भी बहुत पहले से बराबर होती रही है
। हिन्दी चलचित्रों की दीर्घ व समृद्ध परंपरा पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है
कि ऐसी अनेकों फ़िल्म है जिनकी कथा व गीतों में दीपावली, होली, जन्माष्टमी, राखी, मकर संक्रांति, स्वातंत्र्य दिवस, करवा
चौथ, महाशिवरात्रि प्रभृति त्यौहारों और व्रतों के कहीं विस्तृत तो कहीं संक्षिप्त
सन्दर्भ मिलते हैं । जहाँ तक फ़िल्मी गीतों में त्यौहारों की ख़ुशी व इसकी
दृश्यात्मक प्रस्तुति की बात है तो हम देखते हैं कि अन्य व्रत-त्यौहारों की
अपेक्षा जन्माष्टमी व होली संबंधी गीतों की संख्या निश्चित रूप से ज्यादा रही है ।
होली उत्सव पर तो अनेक गीत रचे गए हैं, क्योंकि होली पर्व
मस्ती का पर्व होता है और इस पर्व पर रंगों की बौछार के साथ –साथ मस्ती भरे शब्दों
के बाण भी चलाये जाते है, इस पर्व में व्यंग्य शब्दों की मार और भांग की मस्ती में
दिल से निकले शब्द रूपी गुबार को हलके में लेकर उत्सव को पूरी मस्ती से मनाया जाता
है । फागुन में बसंत के आगमन से पलाश के पेड़ों पर टेसू के फूल अपने पूर्ण यौवन पर
रहते है, इन फूलों से बनाया गया रंग और खुशबू सब का मन मोह लेती है । होली गीत
मस्ती प्रधान होने से होली आधारित रचे गए गीत लोकप्रियता की पायदान पर भी सबसे आगे
रहते रहे हैं ।
आलम आरा (1931) से भारतीय रजतपट पर बोलती फिल्मों की शुरुआत
हुई थी । हाँलाकि इस पहली बोलती फ़िल्म में एक भी होली गीत नहीं था लेकिन पहली
बोलती फ़िल्म होने के नाते इस फ़िल्म को महत्वपूर्ण माना गया है । १९३१ से १९४० के
बीच किसी अन्य फ़िल्म में होली गीत था या नहीं,इस सम्बन्ध में ठोस जानकारी नहीं
है.महबूब खान की १९४० की फ़िल्म “औरत” में एक होली गीत अवश्य था,(इस गीत को गाया
था-सरदार अख्तर और अनिल बिस्वास ने )जिसके बोल है – “यमुना तट श्याम खेले होरी
यमुना तट, वृन्दावन में धूम मची है उड़े हवा में गुलाल, भर पिचकारी मारे राधा,श्याम
की आँखें लाल ।” मुखड़े के बाद गीत के अंतरे
में- “रंग उछलता गागर छलकी,रंग गई राधा भोली, रास रचाए कृष्ण कन्हैया, होली आई
होली ” यह एक पारम्परिक लोक होली गीत है । इस फिल्म की कहानी पर पुनः श्री महबूब
खान ने १९५७ में “मदर इंडिया” नाम से फ़िल्म बनाई थी जो कि लोकप्रियता की दृष्टि से
उस समय नंबर एक पर थी । कहानी, गीत, संगीत, अभिनेता और अभिनेत्रियों के अभिनय की
दृष्टि से यह फिल्म बहुत सराही गई थी । इस फ़िल्म के होली गीत ने लोकप्रियता की नई
पारिभाषा गढ़ी थी । गीत के बोल है – “होली आई रे कन्हाई, होली आई रे, रंग छलके सुना
दे ज़रा बाँसुरी, होली आई रे आई रे होली आई रे” शकील बदायूनी जी के गीत और नौशाद
साहब का संगीत था ।
शुरुआती दौर में श्वेत श्याम फ़िल्में बनती थी इसलिए होली
गीत भी श्वेत श्याम ही होते थे लेकिन जैसे ही टेक्नी कलर,ईस्ट मैन कलर,गेवा कलर
ब्रांड के साथ रंगीन फ़िल्में बनना शुरू हुई तब होली गीतों के फिल्मांकन में रंग का
महत्त्व और बढ़ गया ।
लोकप्रियता और फिल्मांकन, संगीत तथा गीत के बोल की दृष्टि
से फ़िल्म ‘नवरंग’ का गीत तो आज भी सबसे ऊपर है, इस गीत के बोल पंडित भरत व्यास जी
ने लिखे थे – “अटक अटक झटपट पनघट पर, चटक
मटक एक नर नवेली, गौरी-गौरी ग्वालन की छोरी चली, चोरी-चोरी मुख मोरि-मोरि मुस्काए
अलबेली, भरी पिचकारी मारी सा रा रा रा रा, भोली पनिहारी बोली अ र रा रा,अरे जा रे
हट नटखट ना छू रे मेरा घूँघट पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे मुझे समझो न तुम भोली
भाली रे (आशा की आवाज़) आया होली का त्यौहार उड़े रंग की बौछार तू है नार नखरेदार
मतवाली रे, आज मीठी लगे है तेरी गाली रे”(महेंद्र कपूर की आवाज़ ) इस मधुर गीत में संगीत दिया था श्री चितलकर
रामचंद्र ने ।
१९६० में आई फ़िल्म “कोहिनूर” का गीत भी बहुत लोकप्रिय हुआ
था । यह फिल्म श्वेत श्याम थी और होली गीत का फिल्मांकन भी श्वेत श्याम था लेकिन
गीत के बोल और धुन मस्ती भरी होने से श्वेत श्याम ने भी जनता का मिजाज़ रंगीन मिजाज
बना दिया था । गीत के बोल है – “तन रंग लो जी आज मन रंग लो, खेलो ओ खेलो उमंग भर रंग प्यार के ले लो” इसके बाद अंतरे में लिखे शब्द है-
“आज नगरी में रंग है बहार है, पिचकारियों में रंग भरा प्यार है, इस रंग में जीवन
रंग लो ।”
“होली खेले नन्दलाल बिरज में होली खेले नन्दलाल” इन शुरुआती बोलों के साथ अनेक
फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीत रचे गये है । राही (१९५३), माशूका (१९५३), गोदान(१९६३), मस्ताना
(१९७०) फ़िल्म के होली गीत इन्हीं लाइन से शुरू होते है, इनमें सबसे ज्यादा
लोकप्रिय गीत फ़िल्म “गोदान” का रहा है । “फागुन” नाम से दो फ़िल्में बनी थी १९५८
में आई फागुन फ़िल्म में यूँ तो ओ पी नैयर के बनाये कई लोकप्रिय गीत थे लेकिन होली
गीत – “पिया संग खेलो होली फागुन आयो रे” फिल्म के टाइटल में संगीत के रूप में
लिया गया था, बाद में १९७३ में आई फिल्म “फागुन” में एस डी बर्मन दा की धुन पर
पूरा गीत था – “पिया संग खेलो होली फागुन
आयो रे,चुनारिया भिगो ले गौरी फागुन आयो रे” विविध फिल्मों में होली उत्सव को भी
विविध रूप में दर्शाया गया, जिसमें दो प्रेमियों के प्रेम, देश प्रेम, भक्ति भाव
और दोस्तों के साथ समाज के लोगों में होली पर उमड़ा स्नेह, प्रेम, मस्ती को पूरी
तरह उकेरा गया । “होली खेलत नन्दलाल” की तर्ज पर ‘होली खेले रघुवीरा, अवध में होली
खेले रघुवीरा” (फिल्म- बागबान) भी रचा गया । इसके बाद २००५ में आई फिल्म “वक़्त-The race against time” में तो होली गीत को खिचड़ी ( हिंगलिश ) बना दिया,गीत के बोल
है- “Do me a favour lets play holi उफ़ ये होली हाय ये होली रंगों में है प्यार की
बोली” और २०१३ में आई फिल्म “ ये जवानी है दीवानी” फिल्म के होली गीत के बोल इस
तरह रहे- “बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी तो सीधी साधी छोरी शराबी हो गई ।” इस
प्रकार समय के साथ फिल्मों में होली गीत के बोल, संगीत,फिल्मांकन में भी परिवर्तन
नज़र आता रहा है । अन्य विभिन्न फिल्मों में होली गीतों के बोल (मुखड़े) इस प्रकार
रहे है –
प्रदर्शन वर्ष |
गीत के बोल |
फ़िल्म |
१९५० |
डारो रंग डारो रसिया |
जोगन |
१९५३ |
खेलो रंग हमारे संग |
आन |
१९५४ |
होली आई प्यारी प्यारी |
पूजा |
१९५६ |
मत मारो श्याम पिचकारी,मोरी भीगी चुनरिया सारी रे |
दुर्गेश नंदिनी |
१९६५ |
आई होली आई,रंग भर लाई,बिन तेरे होली भी न भाये |
गाइड |
१९६५ |
बम बम बम लहरी |
दो दिल |
१९६६ |
आया होली का त्यौहार ले के रंगों की बहार |
डाकू मंगलसिंह |
१९६६ |
लाई है हज़ारों रंग होली |
फूलऔर पत्थर |
१९७० |
होली आई रे,अंग अंग में अगन लगाती |
होली आई रे |
१९७० |
आज न छोड़ेंगे बस हमजोली |
कटी पतंग |
१९७१ |
होली रे होली रंगों की होली |
पराया धन |
१९७४ |
जय जय शिव शंकर कांटा लगे न कंकर |
आपकी कसम |
१९७५ |
होली के दिन दिल खिल जाते है |
शोले |
१९७५ |
आई रे आई होली,मस्तों की टोली |
ज़ख़्मी |
१९७८ |
रंग बरसाओ आया आज, बरस के होली का त्यौहार |
भूख |
१९७९ |
आयो फागुन हठीलो गोरी चोली पे पीलों रंग डारन दे, |
गोपाल कृष्ण |
१९८१ |
रंग बरसे भीगे चुनार वाली रंग बरसे |
सिलसिला |
१९८२ |
जोगी जी धीरे धीरे कोई ढूँढे मूंगा |
नदिया के पार |
१९८२ |
मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे |
कामचोर |
१९८२ |
भागी रे भागी रे भागी ब्रज बाला |
राजपूत |
१९८३ |
ओ मेरी पहले ही तंग थी चोली,ऊपर से आ गई बैरन होली,जुलम तूने कर डाला,प्यार
में रंग डाला |
सौतन |
१९८४ |
होली आई,होली आई देखो
होली आई रे |
मशाल |
१९८५ |
सात रंग मे खेल रही है,दिलवालों की टोली रे
|
आखिर क्यों |
१९८८ |
दीवानों तुम जवानों की टोली,साडी-भिगो दी,भिगोना ना चोली |
दयावान |
१९८९ |
होली है होली,आई रे आज तो होली खेलेंगे हम,डूब के रंग में,भूल के सारे गम |
इलाका |
१९९३ |
अंग से अंग लगाना,सजन हमें ऐसे रंग लगाना |
डर |
२००० |
सोणी सोणी अखियों वाली,दिल देजा या देजा तू गाली |
मोहब्बतें |
२००५ |
देखो आई होली रंग लाई होली,चले पिचकारी उड़ा है गुलाल |
मंगल पांडे |
होली गीतों की विशेषता यह भी रही है कि प्रायः सभी गीत में
गायक और गायिकाओं के साथ कोरस (समूह) आवाज़ अवश्य रहती है.उस समय की कई फिल्मों में
होली गीत तो नहीं फिल्माए थे,लेकिन होली उत्सव और होली प्रसंग अवश्य फिल्माए गए
थे,जैसे फिल्म “नमक हराम” (1973) में होली गीत
नहीं था किन्तु फिल्माए गये होली उत्सव में अभिनेत्री रेखा यह कहती है –“होली में होली नहीं
खेलूँगी तो क्या डंडे खेलूँगी” होली की मस्ती दर्शाते हुए नायक राजेश खन्ना को सह
नायक असरानी भांग पिला देता है बाद में भांग के ऊपर दूसरे साथी शराब भी पिला देते
है फिर भांग और दारू का नशा अपना रंग दिखाता है, जिसे कॉमेडी के रूप में प्रस्तुत
किया था । इस प्रकार फ़िल्मी होली गीतों में आनंद, उल्लास, उमंग, मस्ती, धार्मिक-संदर्भ,
सामाजिक-सन्दर्भ, देश-प्रेम, देश-भक्ति और राष्ट्रीय चेतना को भी दर्शाया गया है ।
होली गीत हमारे तन और मन दोनों को मस्ती
प्रदान करते है ।
6/B स्कीम नं. 71-C
इंदौर -452009 (म.प्र.)
धन्यवाद सर...इस आलेख के जरिए होली विषयक हिंदी फिल्म गितों की सुंदर जानकारी देने के लिए।
जवाब देंहटाएंफिल्मी गीतों में होली की सुन्दर छटा !
जवाब देंहटाएंहिंदी फिल्मों में होली गीतों के संदर्भ में सुंदर,शोधपूर्ण आलेख।रवि शर्मा जी को होली की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंज्योति कलश जी,शिव जी श्रीवास्तव जी और अनाम मित्र का बहुत बहुत आभार । गागर में सागर भरने का प्रयास किया है ।
जवाब देंहटाएंकमाल!
जवाब देंहटाएं