गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

आलेख

 

अनुसंधान क्या और क्यों ?

(साहित्यिक अनुसंधान के विशेष संदर्भ में)

    अनुसंधान का विषय-क्षेत्र बहुत ही व्यापक है । ज्ञान-विज्ञान की कोई भी शाखा इसके प्रभाव व प्रदान से अछूती नहीं रही है । विषय कोई भी हो किंतु उससे संबद्ध अनुसंधान के संदर्भ में इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसके मूल में प्रेरक शक्ति के रूप में शोधकर्ता की जिज्ञासा वृत्ति रहती है । मनुष्य में पैदा होने वाली जिज्ञासा ही उसे नई नई बातों से अवगत कराने का कारण बनती है । शोधार्थी में रही जिज्ञासा उसे शोध के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करती है और कभी-कभी तो उसे शोध के लिए विवश भी करती है । किसी भी चीज को पूर्ण रूप से जानने की इच्छाउससे संबद्ध क्याक्योंकबकैसेकौनकहाँ आदि प्रश्न ही अनुसंधान को जन्म देते है । न्यूटन से पहले भी पेड़ से सेब जमीन पर गिरता था । परंतु पहलीबार उनके मन में यह प्रश्न उठा कि आखिर सेब डाली से टूटकर नीचे क्यों जाता हैऊपर क्यों नहीं जाता ? इसी प्रश्न के उत्तर की तलाश से ही न्यूटन को पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का पता चला । निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि किसी भी विषय संबंधी जिज्ञासाजिज्ञासा संबंधी विविध प्रश्नउन प्रश्नों के समाधान का प्रयत्न ही वह जमीन है जिस पर अनुसंधान रूपी भवन का निर्माण होता है। डॉ मदन मोहन शर्मा इस संदर्भ में लिखते है- “किसी भी खोजअनुसंधान या शोध के क्रम में जिज्ञासा अथवा जिज्ञासा-वृत्ति को कतई दरकिनार नहीं किया जा सकता । शोध कार्य की बुनियाद भी जिज्ञासा से ही शुरू होती है और अनछुएअनजानेअनचीन्हे तथ्यों से साक्षात्कार करने की प्रक्रिया अस्तित्व में आती है । इस तरह जिज्ञासा एक ऐसी पीपासा है जो जिज्ञासु को कर्मरत रहने की प्रेरणा बराबर देती रहती है । शोध या अनुसंधान की पृष्ठभूमि में भी यदि उसे एक अनिवार्यता की हैसियत से स्वीकार किया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए ।

    अज्ञात तथ्यों की खोज तथा उन तथ्यों को पुनर्स्थापित करनाज्ञात तथ्यों की व्याख्या करनापुराने तथ्यों को वर्तमान परिवेश में रखनाबिखरे तथ्यों-सामग्री को संकलित करके उचित वर्गीकरण व विश्लेषण करना आदि अनुसंधान का प्रमुख कार्य है । “आम तौर पर शोध एक वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हएनए सिद्धांतनए तथ्य-स्थापनमौजूद समस्याओं के समाधान या फिर नए विचारों को सिद्ध या विकसित करने के लिए किए गए व्यवस्थित परीक्षण के रूप में मान्य है । ज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान या शोध की आवश्यकता निरंतर बढ़ती रहती है आधुनिक युग में तो इसकी उपयोगिता व महत्त्व असंदिग्ध है । ‘अनुसंधान’ का शाब्दिक अर्थ एवं इसकी अवधारणा को स्पष्ट करने वाली विविध परिभाषाओं की चर्चा करने से पूर्व अनुसंधान शब्द के अन्य समानार्थी शब्दों के अर्थ एवं विभावना पर संक्षेप में विचार करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा ।

    गवेषणाअन्वेषणखोजआविष्कारसर्चरिसर्च आदि भी अनुसंधान की प्रकृति के ही शब्द है । वैसे तो ये शब्द परस्पर काफी नजदीक है किंत निकटता के बावजूद इनमें पाये जाने वाले सूक्ष्म अंतर को नजरअंदाज  नहीं किया जा सकता । अतः इन शब्दों को व्याख्यायित करना जरूरी है गवेषणा (गो+एषणा) शब्द का उद्भव संस्कृत की धातु से हुआ है । इस शब्द के अर्थ पर विचार करें तो संस्कृत में ‘गवेषणा’ शब्द था गाय को खोजना । गायों की खोज गवेषणा कहलाती थी । पर आज इस शब्द का अर्थ काफी कुछ परिवर्तित हो गया है । अब तो सिर्फ गायों की खोज को ही गवेषणा नहीं बल्कि साहित्य हो या विज्ञान या अन्य कोई भी विषय-क्षेत्र में होने वाली खोज (अनुसंधान) को भी गवेषणा कहा जाता है । एक अन्य दृष्टि से भी इस शब्द के अर्थ पर विचार हुआ है । “वैसेगो-शब्द वैदिक काल से ही ज्ञानवाणीइन्द्रियप्रकाश इत्यादि के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होता आया है। उसे दृष्टि में रखते हुए गवेषणा’ (गो+एषणा) का अर्थ हुआ- ज्ञान या प्रकाश की खोज ।” अन्वेषण में अनु उपसर्ग से इषु (इच्छायाम) धातु का प्रयोग हुआ है इसका अर्थ खोजनाढूँढना-तलाशना होता है। “आज के दौर में सर्वथा नए की खोज के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है । यही कारण है कि  संस्कृतनिष्ठ ‘अन्वेषण’ शब्द आज के संदर्भ में वैज्ञानिक खोजों के लिए भी प्रयुक्त होता है । इसीलिए ‘खोज’ या ‘सर्च’ के साथ इस शब्द का तालमेल अधिक दिखाई देता है । शोधनपरिष्करण के साथ शायद कुछ कम ।”  ‘खोज’ शब्द से भी किसी तथ्य-वस्तु की तलाशशोध एवं जाँच-पड़ताल का बोध होता है । ‘शोध’ शब्द में शुद्ध (शोधन) धातु का प्रयोग हुआ है । इस शब्द से प्रमाणित करनाशुद्ध या परिष्कृत करनाखोजना आदि अर्थों की प्रतीति होती है। “शोध-कार्य में न केवल ‘खोजना’ आवश्यक है वरन् उसके साथ ‘परिष्करण’ और ‘प्रमाणीकरण’ भी संयुक्त है । इसमें खोजे हुए तथ्यों को परिष्कृत एवं व्यवस्थित रूप में ग्रहण करके प्रमाणित भी करना पड़ता है।”

    ‘आविष्कार’ शब्द से भी नई खोज व नवनिर्माण का बोध होता है । ‘सर्च’ (search) और

‘रिसर्च’ (research) दोनों अंग्रेजी के शब्द है । शोधकार्य के लिए इन दोनों शब्दों का प्रयोग आज ज्यादा हो रहा है । सर्च का अर्थ भी खोज ही हैकिंतु हिन्दी का अनुसंधान शब्द अंग्रेजी के ‘रिसर्च’ शब्द से ज्यादा निकट जान पड़ता है । यह शब्द दो शब्दों के योग से बना है । इसमें  ‘रि’ (Re) उपसर्ग है तथा सर्च (Search) मूल शब्द है । ऊपर इस बात का उल्लेख हुआ है कि सर्च का अर्थ खोज है । यहाँ ‘रि’ उपसर्ग विचारणीय है । यह दुबारा का द्योतक है । सर्च शब्द यदि खोज वाचक है तो निर्माण की दृष्टि से रिसर्च का अर्थ हुआ ‘पुनः खोज ‘सर्च-रिसर्च’ के अर्थ पर टिप्पणी करते हुए होशशिभूषण सिंहल लिखते हैं - “सर्च या खोज से प्रामाणिक जानकारी या तथ्य प्राप्त होते है । तथ्य प्राप्त करने पर शोध-कार्य संपन्न नहीं हो जाता । यह स्थिति शोध की दिशा में प्रारम्भिक कार्य की ही हैइसमें खोज ही हो पाती है । तथ्यों के संकलन या खोज के उपरान्त उनके आन्तरिक संयोजन की पहचानअथवा तथ्य और तथ्य के मध्य- संबंध- सूत्र स्थापित करने का कार्य शेष रहता है । तथ्यों के संकलन के उपरान्त उनके पारस्परिक सम्बन्ध के प्रकाश में विषय का तन्त्र उदघाटित होने पर ही ‘सर्च’ ‘रिसर्च’ बनती है । सर्च के लिए यदि हिन्दी में ‘खोज’ शब्द का प्रयोग किया जाए और ‘रिसर्च’ के लिए ‘शोध’, तो खोज और शोध में यही मूल अन्तर है । खोजअर्थात तथ्यों को प्राप्त करना और शोधयानी

तथ्यावली से ‘तंत्र’ का उद्घाटन करना ।”

    वैसे तो उपरोक्त सभी शब्द सामान्यतः अनुसंधान के लिए प्रयुक्त होते रहे हैकिंतु इनमें से विशेषतः ‘शोध’ तथा ‘रिसर्च’ शब्द अनुसंधान के ज्यादा समतुल्य कहे जा सकते है। अनुसंधान शब्द का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है – किसी विषय पर क्रमशः तथा पूर्ण रूप से विचार करके एक निश्चत लक्ष्य तक पहुँचना । व्याकरण की दृष्टि से इस शब्द को देखें तो इसकी निर्मिती ‘अनु’ तथा ‘सम’ उपसर्गपूर्वक ‘धा’ धातु के साथ ‘ल्युट’ (अन) प्रत्यय के जुड़ने से हुई है । सम् उपसर्ग की म् को धा धातु के योग की वजह से उसी वर्ग (त वर्ग) का पंचम अक्षर न् होता है और धा+अन में दीर्घ सन्धि होकर धान शब्द बनता है । अतः अनुसंधान शब्द के निर्माण का क्रम इस तरह होगा -

अनु+सम्+ धा+न

अनु+सन्+धा+न

अनु+सन्+धान

 (अनुसन्धान)

    प्रस्तुत विषय के विशेषज्ञों ने अपने-अपने ढंग से इसे परिभाषित किया है –

-            दी न्यू सेंचुरी डिक्शनरी के अनुसार तथ्यों या सिद्धांतों की खोज के लिए किसी वस्तु या किसी के लिए सावधानीपूर्वक किया गया कोई अन्वेषणकिसी एक विषय में किया गया निरंतर सावधानीपूर्वक जाँच या अन्वेषण ‘अनुसंधान’ कहलाता है ।”

-            लुंडवर्ग के शब्दों में - अनुसंधान वह हैजो अवलोकित तथ्यों का संभवित वर्गीकरणसामान्यीकरण औरसत्यापन करते हुए पर्याप्त रूप में वस्तुपरक और व्यवस्थित हो ।

-        रेडमेन एवं मोरी के शब्दों में - नवीन ज्ञान प्राप्ति के व्यवस्थित प्रयत्न को हम अनुसंधान कहते हैं।

-            श्रीमती यंग अनुसार - अनुसंधान एक ऐसी वैज्ञानिक योजना हैजिसका उद्देश्यतार्किक तथा क्रमबद्ध विधियों द्वारा नवीनतम प्राचीन तथ्यों को प्राप्त करना और उनकी क्रमबद्धताओं और अंतः  संबंधों के कारणों की व्याख्याओं तथा उनको संचालित करने वाले स्वाभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।

    अनुसंधान के स्वरूप संबंधी पाश्चात्य मतों के साथ-साथ भारतीय विद्वानों के त भी महत्वपूर्ण है । डॉ. गुलाबराय के मतानुसार - अनुसन्धान एक व्यापक शब्द है । अनुसन्धान वैज्ञानिक विषयों का भी होता है और साहित्यिक विषयों का भी, किन्तु दोनों की पद्धति और उसके स्वरूप में विशेष अंतर नहीं है । अन्तर यदि है तो विषय की आवश्यकताओं और प्रयोग पद्धतियों का । दोनों में ही सूक्ष्म और सोदेश्य निरीक्षण के साथ परीक्षण और प्रयोग के पश्चात् गंभीर विवेचन रहता हैजिसमें विपक्षीय घटनाओंउदाहरणों और विचार बिन्दुओं का उतना ही स्वागत पूर्ण विवेचन होता है जितना सपक्षीय घटनाओंउदाहरणों तथा विचार बिन्दुओं का । डॉ. भगीरथ मिश्र के शब्दों में अनुसंधान के भीतर नवीन तथ्योंनवीन विचारोंनिष्कर्षोंनियमों, दृष्टियोंपरंपराओंकारणों आदि का उद्घाटन आवश्यक है । आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने शोध में अज्ञात तथ्य को प्रकाश में लाने और प्रतिष्ठित करने के साथ साथ बिखरे हुए तथ्यों के संयोजन और समाहार करने के कार्य का भी उल्लेख किया है ।

    उपर्युक्त विवेचन व विविध परिभाषाओं में अनुसंधान से जुड़े तीन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होते हैं । अनुसंधान क्या है ? अनुसंधान क्यों किया जाता है ? और अनुसंधान कैसे किया जाता है ? संक्षेप में अनुसंधान के अर्थ उद्देश्य एवं प्रविधि-प्रक्रिया के संबंध में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बातें उभरकर सामने आती है - १) अनुसंधान में वैज्ञानिक प्रविधि को काम में लेते हुए अध्ययन-अवलोकन तथा सत्यापन का विशेष सहारा लिया जाता है

२) अनुसंधान में मुख्यतः निम्नलिखित चार पक्षों का होना आवश्यक है- १) अनुपलब्ध तथ्यों का अन्वेषण २) उपलब्ध तथ्यों का पुनराख्यान या नवीन मूल्यांकन ३) ज्ञान-क्षेत्र का सीमा-विस्तारअर्थात मौलिकता और ४) सुष्ठु प्रतिपादन शैली ।

३) अनुसंधान में नवीन सिद्धांतोंनियमों या प्रविधियों का प्रतिपादन किया जाता है ।

४) अनुसंधान से विविध सामाजिक समस्याओं तथा उन समस्याओं के कारणों की खोज की     जाती है ।

५) अनुसंधान से विषय-विशेष से संबंधी विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है

६) बाहरी रूप से अलग-अलग दिखने वाले विविध विषय व घटनाएँ भी वास्तव में आंतरिक रूप से एक दूसरे से संबंधित होती हैं । अनुसंधान में उनके इस अंतः संबंध की जाँच-पड़ताल की जाती है ।

७) अनुसंधान वैज्ञानिकसुव्यवस्थित एवं सुनियोजित प्रक्रिया है ।

    साहित्यिक अनुसंधान प्रस्तुत शोधालेख का मुख्य विवेच्य विषय हैअतः हम साहित्यिक अनुसंधान के संदर्भ में ऊपर निर्दिष्ट विशेषताओं पर विशेष रूप से विचार करने का उपक्रम रखेंगे ।

    हम अपने इसी शोधालेख में निर्दिष्ट कर चुके हैं कि शोध या अनुसंधान-प्रविधि या प्रक्रिया पूर्णतया वैज्ञानिक होती है। अतः वह मस्तिष्कतर्कसंगति-प्रमाण का विषय हैजिनके अभाव में वह केवल वाक्जाल मात्र सिद्ध होकर रहे जाता है । भाषা-साहित्य में शोध वे अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक एव ऐलिहासिक दृष्टि का होना नितांत आवश्यक है । डॉ. हरवंशलाल शर्मा साहित्य में शोध कार्य के संदर्भ में लिखते हैं- “ साहित्यिक या भाषिक शोध-कार्य का जन्म ही विज्ञान और इतिहास के क्षेत्र में हुआ - इसलिए विज्ञान और इतिहास दोनों ही शोध-कार्य के अभिन्न अंग है । ऐतिहासिक दृष्टि और वैज्ञानिक टेकनिक शोध के दो अपरिहार्य पक्ष हैं ।” वैज्ञानिक पद्धति से आशय है अनुसंधेय विषय से संबंधी सामग्री की क्रमबद्धता एवं व्यवस्था । किसी विषय के सम्यक अनुशीलन के लिए उससे संबद्ध तथ्योंतत्वों एवं उपविषयों का तर्कपूर्ण विभाजन एवं वर्गीकरण बहत ही आवश्यक है । शोधार्थ विषय को विविध अध्यायों मेंउचित शीर्षकों तथा उपशीर्षकों में रखकर अध्ययन किया जाता है । साहित्यिक अनुसंधान की वैज्ञानिक पद्धति के संबंध में डॉ. उदय भानुसिंह का (समालोचकमई१९५९) मत है- “वैज्ञानिक पद्धति में तीन बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं । उसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और शोध प्रबन्ध की आवश्यक शर्त है संदर्भ निर्देश । यह भूलना नहीं चाहिए कि अनुसंधान केवल ‘सर्च’ नहीं है वह ‘रिसर्च’ है। अतएव दूसरों का उल्लेख करते समय अनुसन्धाता इस बात के लिए बाध्य है कि वह अपने कथन को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए अनेक सोतों का निश्चय संदर्भ भी दे दे । यदि वह वैसा नहीं करता है तो उनका तथाकथित अनुसंधान गप्प मात्र है ।....... वैज्ञानिक पद्धति के विषय में दूसरी ध्यान रखने की बात यह है -  अपेक्षानुसार प्रतिपाद्य विषय की सामग्रीउसकी प्रवृत्तियोंअंगोंरूपोंविशेषताओं आदि का तर्कसंगत वर्गीकरण और विभाजन ।”

    भाषा किसी भी प्रकार के अनुसंधान की अनिवार्य आवश्यकता है । भाषा-शैली जितनी आकर्षक एवं सक्षम होगी अनुसंधान के परिणाम उतने ही सहज संप्रेक्ष्य होंगे । साहित्यिक अनुसंधान में इसका सर्वाधिक महत्त्व हैक्योंकि साहित्य में मात्र संवेदना का ही सौन्दर्य नहीं होता बल्कि उसे प्रकट करने वाले अभिव्यंजना पक्ष का भी सौंदर्य होता है । अतः साहित्य में किये जाने वाले शोधकार्य में भाषा शैली की भी अहम भूमिका होती है । इस पर शोधकार्य की गुणवत्ता भी बहुत कुछ निर्भर होती है । विषयवस्तु को प्रस्तुत करने वाली सुगठित एवं सुष्टुतापूर्ण साहित्यिक भाषा शैली अनुसंधान के महत्त्व में वृद्धि करती है । अभिव्यंजना के तीन विशिष्ट गुण हैं - शुद्धतामिताक्षरता और स्पष्टता । अन्य गुण हैं-सरलतास्वच्छता, प्रभावोत्पादकताशिष्टताधारावाहिकतासम्बन्ध निर्वाहअर्थ गौरवऔचित्यसंगतिनिष्ठा आदि । साहित्यिक शोध प्रबंध में इन गुणों का होना अभीष्ट है । सरलता की झोंक में निम्नस्तरीय सरलीकरण और आलंकारिकता की उमंग में धक्कामार शब्दाडम्बर की प्रवृत्ति से शोधप्रबंध कलुषित होता है । अन्य साहित्यकारों की भाँति शोध-प्रबन्ध लेखक को भी च्युति संस्कृतिअसमर्थताविहर्थताअवाचकताशैथिल्यग्रामत्वविधेयाविमर्शसंकीर्णताव्याहतिविरूद्धता आदि दोषों से बचना चाहिए ।”१०

    अनुसंधान विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है । जहाँ तक साहित्यिक अनुसंधान का सवाल हैचाहे वह अनुसंधान उपाधि सापेक्ष हो या उपाधि निरपेक्षउसके उद्देश्यमूलक होने से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता है । हिन्दी साहित्य में हुए शोधकार्य के संदर्भ में “उपाधि निरपेक्ष शोध का श्रेय सर्वाधिक दिया जाना चाहिए- गार्सा द  तासीशिवसिंह सेंगरमौलाना करीमुद्दीनमिश्रबन्धुडॉ. ग्रियर्सनडॉ. श्याम सुन्दर दासलाला भगवानदीनआ. रामचन्द्र शुक्लडॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वालकृष्णबिहारी मिश्रविश्वनाथ मिश्रआ. परशुराम चतुर्वेदी आदि को । इनके प्रयास से पहली बार हिन्दी के इतने कवि-लेखकों की जानकारी मिली और हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक ढाँचा तैयार हुआ ।”११ इसके उपरान्त उपाधि सापेक्ष व उपाधि निरपेक्ष उभय अनुसंधान विशेष लक्ष्यों सिद्धि के लिए हुआ है और हो रहा  है । साहित्य के विविध आयाम परंपराविचारधाराअनगिनत अज्ञात सृजनकर्ताओंइन सर्जकों की जीवनीकृतित्त्वउनके रचनाकर्म का रहस्य, मर्म आदि की जानकारी अनुसंधान से प्राप्त होती है । साहित्य के सिद्धांत-प्रतिमान-दृष्टियाँ आदि शोध के द्वारा सामने आते हैं जो साहित्य व साहित्यकार को समझने भें अनिवार्य रूप से उपयोगी होते हैं । वस्तुत साहित्य का महत्त्व असंदिग्ध है । अतः साहित्यिक शोध की उपादेयता और भी बढ़ जाती है । “साहित्प जगत में किया जाने वाला शोध कार्य उन अनछुए पहलुओं-बिंदुओं प्रकाश में लाता जो अबतक उजागर नहीं हो सके हों । इससे किसी रचनारचनांश को नए सिरे से समझने और नए ढंग से उनकी व्याख्या करने का अवसर भी मिलता है । कभी-कभी ऐसा होता है कि वर्षों तक हम साहित्य की किसी स्थापना को ही सत्य या अतिम सत्य के रूप में ग्रहण कर लेते हैं । कालान्तर में उक्त कुछ मान्यताओं-स्थापनाओं के सामने प्रश्नचिन्ह भी लगने लगते हैं । ऐसा इसलिए होता है कि नवीन शोधों एवं तध्यान्वेषणोंआधारों की खोज आदि से पूर्ण स्थापित साहित्यिक मान्यताएँ बिखरती व ध्वस्त भी होने लगती है और उन स्थापनाओं पर पुनर्विचार कर उनकी या तो पुनर्वाख्या की जाती है या फिर उन्हें नए ढंग से स्थापित किया जाता है ।”१२

    शोध या अनुसंधान के केन्द्र में वस्तु या तथ्य (Fact) होता है । इसी को सामने लाना शोध या अनुसंधान का मूल उद्देश्य होता है। अत: तथ्य ही अनुसंधान की आधार सामग्री बनते हैं । साहित्यिक शोध भी इस तथ्य से बाहर नहीं है । अनुसंधान में न केवल नये तथ्यों की खोज का प्रयत्न किया जाता हैबल्कि पुराने तथ्यों की पुनःव्याख्या की जाती हैअर्थात नये आलोक में पुराने तथ्यों की जाँच की जाती हैनये संदर्भ में उनकी नयी व्याख्या की जाती हैं । इसके अतिरिक्त इसमें विश्रृंखलित तथ्यों का संयोजन व संकलन भी किया जाता है । इनसे अंततः ज्ञान का विस्तार होता है।

    इसमें कोई संदेह नहीं कि अनुसंधान ज्ञान का प्रतीक है। अनुसंधान कार्य ज्ञान की साधना है और अनुसंधित्सु साधक । किसी भी उद्देश्य के लिए किये जाने वाले शोधकार्य से ज्ञान की उपलब्धि होती है । अतः यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ज्ञान क्षेत्र की सीमाविस्तार ही शोध का प्राणतत्व है । शोधकर्ता तो अपने शोधकार्य के दौरान तथा शोध संपन्न होने पर अनुसंधान विषय क्षेत्र के विशेष व विस्तृत ज्ञान से लाभान्वित होता ही है साथ ही उसके अनुसंधान से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा अधिकांश मानव समुदाय भी प्रभावित होता है ।

    साहित्यिक शोध के संदर्भ में तथ्य का सामान्य अर्थ है विषय संबंधी प्रामाणिक जानकारी । ‘जो है’ वह तथ्य हैकिंतु शोध पूर्व वह अज्ञात हैअनुपलब्ध है । जिस विषय पर शोध कार्य करना है वह विषय व उससे संबद्ध तथ्य ज्ञात नहीं है । शोधकर्ता का कार्य है उन अज्ञात तथ्यों को प्रकाश में लाना । जैसे हिन्दी साहित्य में ‘खड़ी बोली कविता का विकास’ एक विषय है । इस विषय पर हुए शोधकार्य से पूर्व यह मत ज्यादा प्रचलित था कि हिन्दी में खड़ीबोली कविता आधुनिक काल की ही देन है । किंतु आधुनिक काल से पूर्व आदिकालमध्यकाल आदि समयखंडों की हिन्दी कविता में भी खड़ीबोली के अंश मिलते है । जिनमें नाथ साहित्य के नाथों की वाणी में खड़ीबोली का मिश्रणअमीर खुसरो की हिन्दवी में आधुनिक खड़ीबोली के दर्शनकबीर आदि संत कवियों की वाणी में बोलचाल की खड़ी बोली का पुट । इस तरह की और भी विस्तृत  तथा महत्त्वपूर्ण  जानकारी शोध उपरान्त ही प्राप्त होती है । इसी तरह हिन्दी का प्रारंभिक साहित्य (जिसके अंतर्गत हिन्दी साहित्य का उदय कालकवियोंकृतियाँकाव्य रूपोंप्रवृत्तियाँ आदि); हिन्दी का प्रथम कविहिन्दी का प्रथम काव्यशास्त्रीय ग्रंथहिन्दी की प्रथम कहानी । इस तरह अनेको जिज्ञासाएँ हैअनु्तरित प्रश्न है या उनसे संबंधित भ्रांतियाँ हैजिसका समाधान अनुसंधान करता है । किसी सर्जक की कोई रचना हमारे सामने है किंतु उस रचनाकार जीवनीव्यक्तित्वसमग्र कृतित्व अनुपलब्ध है तब उसका जीवनउसके व्यक्तित्व के विकास उसका रहन-सहनस्वभावउसका साहित्य चिंतनउसके सृजन के प्रेरणास्रोतसाहित्य क्षेत्र में उसका योगदान आदि तथ्यों का अन्वेषण ही अनुसंधान कहलाएगा।

    अनुसंधान अनुपलब्ध तथ्यों खोज के अलावा उपलब्ध तथ्यों को नयी दृष्टि से नया क्रम देकर उनसे नवीन अर्थ की व्यंजना भी की जाती है । जिसमें नये दृष्टिकोण की अभिव्यंजना अथवा प्रस्तुतीकरण की नवीनता को प्राथमिकता दी जाती है । इस तरह के अनुसंधान में सृजनात्मकता अधिक होती है वैसे भी समाज हो या साहित्यदोनों से संबद्ध कई उपलब्ध व स्थापित तथ्य हमेशा स्थिर नहीं रहते । उसकी इसी प्रकृति के कारण उनके संबंध में पूर्व स्थापित नियमों और सिद्धान्तों का बार-बारसमय-समय पर परीक्षण व मूल्यांकन करके उनका सत्यापन करना आवश्यक होता है ताकि वे परिवर्तित परिस्थितियों में भी प्रासंगिक रह सके । अतः पुराने तथ्यों-नियमों एवं सिद्धांतों की पुनः व्याख्यापुनः परीक्षण करके उसका सत्यापन करना भी शोध का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होता है । हिन्दी में प्रगतिवादी काव्य प्रवृत्ति मिलती है । जो आधनिक हिन्दी कविता के विकास का एक महत्त्वपूर्ण सोपान है । इस प्रवृत्ति का काव्य हमारे सामने है। उसका विवेचन भी मिलता है । इस काव्य प्रवृति का जन्म क्यों हुआकैसे हुआयह किस विचारधारा से प्रभावित रहीकुछ कवियों ने इस प्रवृत्ति की कविताएँ क्यों लिखी । नवीन दृष्टिकोण से इन प्रश्नों के उत्तर उपलब्ध सामग्री के आधार पर तर्कसंगत ढंग से देना शोध का उद्देश्य होगा । हिन्दी में कबीर-तुलसीप्रेमचंद आदि के साहित्य की प्रासंगिकता पर भी विचार शोध के जरिए किया जाता है । वैज्ञानिक धरातल पर किए जाने वाले शोध कार्य में -ध्वनिविज्ञानअर्थविज्ञानमनोविज्ञानसमाजशास्त्र के आधार पर किसी ग्रंथकविकवि समय या भाषा पर नया प्रकाश डाला जा सकता है ।

    किसी विषय संबंधी सूचना व सामग्री का संकलन भी शोध का एक भेद बन गया है । ज्यादातर सर्वेक्षणमूलक एवं ऐतिहासिक शोध के अंतर्गत विषय संबंधी सामग्री का संग्रह-संकलन तथा व्यवस्थापन रहता है । इस तरह का कार्य विकीर्ण सामग्री का निबंधन करने में बहुत सहायक होता है । विश्रृंखलित सामग्री को संकलित करते उसमें कार्यकारण का संबंध तथा समन्वय स्थापित करके उसका वर्गीकरण व विश्लेषण करना भी साहित्य संबंधी शोध के कार्यक्षेत्र में आता है । ‘गुजरात के हिन्दी कवि’, ‘हिन्दी का शृंगार काव्य’ जैसे विषयों में विषयसंबंधी यत्र-तत्र बिखरी सामग्री का संकलनवर्गीकरण व विवेचन-विश्लेषण किया जाता है । शिष्ट साहित्य की अपेक्षा लोक साहित्य में तो इस तरह का शोध कार्य ज्यादा उपयोगी हो सकता है । इसका महत्त्व उस स्थिति में तो और बढ़ जाता है जब किसी बोली या क्षेत्र संबंधी लोकसाहित्य संग्रहित या संकलित रूप में कम मिलता हो । मौखिक परंपरा में विकसित इस साहित्य को एकत्र करके विभिन्न वर्गों में विभक्त कर एक क्रमबद्धता तथा व्यवस्था प्रदान कर पाठकों के सम्मुख रखना किसी स्तरीय शोधकार्य से कम नहीं है ।

    निष्कर्ष रूप में कह सकते है कि नहीं तथ्यों व सिद्धांतों लिए अनुसंधान किया जाता है । इसके

अन्तर्गत विषय संबंधी सामग्री की जाँच-पड़ताल तथा अध्ययन बड़ी सावधानीपूर्वक करना पड़ता है । यह कार्य हमारे ज्ञान में वृद्धि करता है- वैज्ञानिक चेतना को विकसित करता है । अतः यह बहुत ही आवश्यक है कि इसमें वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण किया जाए । इसमें शोध- नियमों व सिद्धान्तों का पालन अनिवार्य होता है । अनुसंधान को शोध विषय का वैज्ञानिक चयनसामग्री संकलनअध्ययन-विश्लेषण, विषयसामग्री की उचित प्रस्तुतिसंदर्भ लेने और दर्शाने की विधिनिष्कर्ष व उपसंहारग्रंथानुक्रम को देने की वैज्ञानिक विधि प्रभृति मुद्दों की पूरी जानकारी ही स्तरीय व व्यवस्थित शोध की अनिवार्य शर्त होती है । शोधार्थी में संस्कारबोधतीव्रताअभिरुचिचिंतन-मननशिष्टाचार, तटस्थताधैर्यरचनात्मक कल्पनातर्कक्षमता आदि अपेक्षित गुणों के होने पर उसकी शोधयात्रा सरल बन जाती है । शोधार्थी में (उपाधि सापेक्ष शोध निर्देशक में भी) यदि शोध-जिज्ञासा होज्ञान की पिपासा हो,नये-नये  क्षेत्रों को स्पर्श करने की क्षमता व तैयारी हो तो साहित्य में ही नहीं बल्कि किसी भी विषयक्षेत्र में नवीन शोध-अनुसंधान की गुंजाइश आज भी है ।


डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120


संदर्भानुक्रम -

.   शोध : सिद्धांत और प्रविधिडॉ. मदन मोहन शर्मापृ. ०९ ।

२.   अक्षर वार्ताअंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाअंक-१२ अगस्त २०१४उज्जैनसं.प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मापृ. ०५ ।

३. साहित्यिक शोध के आयामडॉ.शशिभूषण सिंहलपृ.३४ ।

४.   शोध सिद्धांत और प्रविधिडॉ. मदन मोहन शर्मापृ. ११ ।

५.   शोध प्रक्रिया एवं विवरणिकाडॉ. सरनाम सिंह शर्मापृ. ०१ ।

६.   साहित्यिक शोध के आयामडॉ. शशिभूषण सिंहलपृ. २६ ।

७.   शोध-प्रविधि एवं क्षेत्रीय तकनीकीप्रो. बी.एम. जैनपृ. ०३ ।

८.   दृष्टव्य : अनुसंधान और आलोचनाडॉ. नगेन्द्रपृ. ९० ।

९.   शोध प्रक्रिया : शोध तत्त्व और दृष्टि, सं. डॉ. रामेश्वरलाल खंडेलवालपृ. ५३ ।

१०.   अनुसंधान का विवेचनडॉ. उदयभानु सिंहपृ. ३५ ।

११.   खोज (पत्रिका)अप्रैल-जून २०११संपादकीय ।

१२.   शोध : सिद्धांत और प्रविधिडॉ. मदन मोहन शर्मापृ. ३२-३३ ।

 

 

30 टिप्‍पणियां:

  1. सर एम.फिल मैं आपसे हमने अनुसंधान के बारे में पढ़ा था आज अनुसंधान पर आपका यह आलेख पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा, जिसमें अनुसंधान का अर्थ,परिभाषा और अनुसंधान की प्रकृति के बारे में बहुत ही तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध करवाई. आज साहित्य ही नहीं वरन हर क्षेत्र में अनुसंधान कार्य हो रहा है तब आपका यह आलेख सही मायने में अनुसंधान संबंधी ज्ञान में वृद्धि करता है . भविष्य में भी ऐसी आप से और जानकारी मिले
    ऐसी आशा के साथ प्रणाम . भरत पी वणकर. पीएचडी शोध छात्र एवं प्राइमरी टीचर( हिंदी) छोटा उदेपुर



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  2. अनुसंधान विषय के बारे में सोची हुई सोच को
    खूब-खूब धन्यवाद💐💐💐💐💐💐

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  3. अनुसंधान विषय के बारे में सोची हुई सोच को
    खूब-खूब धन्यवाद💐💐💐💐💐💐

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  4. जो निरंतर अनुसंधान के क्षेत्र में जुड़ी है या जुड़े रहना चाहते हैं या फिर पीएचडी एवं एमफिल कर रहे शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी। गुरुवर आपसे हमने यह जानकारी एम फिल में पाई थी और भी ऐसी जानकारीयों से हमें लाभ देते रहिए। सादर प्रणाम गुरुवर। आपका शिष्य प्रदीप

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  5. नमस्कार,मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 'अनुसंधान'पर जो कार्य हुआ है
    वह बहुत उत्कृष्ट है। बहुत बढिय़ा तरीक़े से उसे समझाया गया है।आनेवाले छात्रों को
    इसकी जानकारी भी प्राप्त होती रहेगी।

    सफी चावडा(रोशन मेमोरियल हाईस्कूल, वडोदरा)

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  6. Thank you so much Sir for clearing everything (again) about अनुसंधान in easy way...This was really helpful to every one who wants to know and learn something new...Can't thank you is enough Sir...फिर भी धन्यवाद Sir.☺

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  7. नमस्कार,यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 'अनुसंधान'पर जो कार्य हुआ है
    वह बहुत उत्कृष्ट है। बहुत बढिय़ा तरीक़े से उसे समझाया गया है।आनेवाले छात्रों को
    इसकी जानकारी भी प्राप्त होती रहेगी।

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  8. अनुसंधान की प्रकृति एवं प्रवृत्ति पर सुंदर शोधपरक आलेख।
    डॉ. हसमुख परमार जी को बधाई

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  9. अनुसंधान विषय की विस्तृत जानकारी देता अच्छा आलेख।

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  11. अनुसंधान ईमानदारी से की गई एक प्रक्रिया है। इसमें गहनता से अध्ययन किया जाता है और विवेक एव समझदारी से काम लिया जाता है। क्यूंकि यह एक लम्बी प्रक्रिया है। अतः इसमें dherya की आवश्यकता होती है।

    सर.आपने बहुत ही बढ़िया तरीके से इसे समझाया है।

    वैसे भी आपने हमें एम.फिल में अनुसंधान को विस्तृत रूप से समझाया था। मुझे तो किताबों से पढ़ कर समझ ने से ज्यादा आप का समझाया हुआ बहुत ही अच्छी तरह से समझ में आता है।

    🌷आप का बहुत बहुत शुक्रिया सर🌷

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  12. नमस्कार,मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 'अनुसंधान'पर जो कार्य हुआ है
    वह बहुत उत्कृष्ट है। बहुत बढिय़ा तरीक़े से उसे समझाया गया है।आनेवाले छात्रों को
    इसकी जानकारी भी प्राप्त होती रहेगी

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  13. अनुसंधान ईमानदारी से की गई एक प्रक्रिया है। इसमें गहनता से अध्ययन किया जाता है और विवेक एव समझदारी से काम लिया जाता है

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  14. बहुत सुन्दर, सार्थक , सारगर्भित ।

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  15. अनुसंधान विषय की बहुत बढ़िया जानकारी देता लाजवाब आलेख!

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  16. You have brains in your head. You can steer yourself any direction you choose.

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  17. You’re on your own.And you know what you know. And YOU are the one who’ll decide where to go…”

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  18. The Great philosopher you Are...& Well reader person... always amaze us by you...
    Thank you..

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फरवरी 2025, अंक 56

  शब्द-सृष्टि फरवरी 202 5 , अंक 5 6 परामर्शक की कलम से : विशेष स्मरण.... संत रविदास – प्रो.हसमुख परमार संपादकीय – महाकुंभ – डॉ. पूर्वा शर्...