मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

अनुवाद


वृक्ष

गुजराती कविता – किशोरसिंह सोलंकी

अनुवाद – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

 

वृक्ष अपनी छाया बेचता नहीं

लोग तो कहते हैं उसके पर्णों में

सुगबुगाता हराभरा साँप है,

जिसे हाथ में पकड़ा नहीं जा सकता।

वह सार्वजनिक स्थल का निवासी है

उसकी डालियाँ तो बाज की आँखें हैं

जो जगत को परख सकती हैं।

उसका तना तो खुरदुरा है।

कभीउससे रगड़कर छिल जाए

तो लहूलुहान हो जाता है

और उसका पता भी नहीं चलता।

कोई पक्षी अपने कलरव की कीमत

नहीं लेता

या वृक्ष अपनी छाया बेचता नहीं

पवन किसी की जी-हुजूरी नहीं करता

या फिरअपने श्रम का प्रतिदान भी

नहीं माँगता

वह किसी से कुछ नहीं कहता

उसे जहाँ जाना होता वहाँ जाता है। 


हिन्दी हाइकु

अंग्रेजी अनुवाद – डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

1

When the flower has lost

Its attribute of fragrance

Bury it, burn it!

–  Dr Bhagwat Sharan Agrawal

2

In a dense forest

A lonely carefree young girl –

River in the hills!

–  Neelamendu Sagar

3

The poor bird has got

No more than single outfit

Either wet or dry

–  Dr Sudha Gupta

4

The valleys inscribe

On the pages of green grass

The fiction of flowers

–  Rameshwar  Kamboj ‘Himanshu’

5

The mist all over

Even the eyes of the sun

Appear to be moist

–  Kanvar Dinesh  Singh 



2 टिप्‍पणियां:

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