गुजराती कविता – किशोरसिंह सोलंकी
अनुवाद – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
वृक्ष अपनी छाया बेचता नहीं
लोग तो कहते हैं उसके पर्णों में
सुगबुगाता हराभरा साँप है,
जिसे हाथ में पकड़ा नहीं जा सकता।
वह सार्वजनिक स्थल का निवासी है
उसकी डालियाँ तो बाज की आँखें हैं
जो जगत को परख सकती हैं।
उसका तना तो खुरदुरा है।
कभी, उससे रगड़कर छिल जाए
तो लहूलुहान हो जाता है
और उसका पता भी नहीं चलता।
कोई पक्षी अपने कलरव की कीमत
नहीं लेता
या वृक्ष अपनी छाया बेचता नहीं
पवन किसी की जी-हुजूरी नहीं करता
या फिर, अपने श्रम का प्रतिदान भी
नहीं माँगता
वह किसी से कुछ नहीं कहता
उसे जहाँ जाना होता वहाँ जाता है।
हिन्दी हाइकु
अंग्रेजी अनुवाद – डॉ. कुँवर दिनेश
सिंह
1
When the flower has lost
Its attribute of fragrance
Bury it, burn it!
– Dr Bhagwat Sharan Agrawal
2
In a dense forest
A lonely carefree young girl –
River in the hills!
– Neelamendu Sagar
3
The poor bird has got
No more than single outfit
Either wet or dry
– Dr Sudha Gupta
4
The valleys inscribe
On the pages of green grass
The fiction of flowers
– Rameshwar Kamboj ‘Himanshu’
5
The mist all over
Even the eyes of the sun
Appear to be moist
– Kanvar Dinesh Singh
सुंदर अनुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
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