बुधवार, 30 जुलाई 2025

परामर्शक की कलम से....

 


‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ.....

प्रो. हसमुख परमार

            हमारे यहाँ शिक्षादर्शन या शिक्षा विमर्श की भी एक दीर्घ व दृढ़ परंपरा रही है । प्राचीन शास्त्रों- श्रुतियों में ॠषि-मुनियों से लेकर वर्तमान चिंतकों और शिक्षाविदों ने शिक्षा का मतलब-महत्व, शिक्षा के विषय व शिक्षा प्रणाली आदि पर बहुत ही गंभीरतापूर्वक विस्तार से विचार किया है ।

             इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे जीवन की विविध प्राप्तियों-उपलब्धियों में शिक्षा सर्वोपरि है । व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के उत्थान-उन्नति में, उसके सुव्यवस्थित निर्माण में तथा उसे सुसंस्कृत करने में शिक्षा की ही महती भूमिका रहती है । “हमारी शैक्षिक योग्यता हमें एक उपाधिधारक की पहचान देने के साथ उसी के अनुरूप रोजगारलक्षी सुविधाएँ तो उपलब्ध कराती है, पर इसकी सार्थकता यहाँ पर ही पूरी नहीं होती बल्कि इसके आगे वह हमारे ‘स्व’ के साथ-साथ हमें हमारे समाज, हमारे राष्ट्र तथा हमारे बंधु-बाँधव के विकास हेतु प्रेरित करने, शोषित-पीड़ित वर्ग का उत्थान करने, सामाजिक-राष्ट्रीय-सांस्कृतिक-मानवीय मूल्यों की रक्षा व विकास करने, सद् विचारों को प्रचारित व क्रियान्वित करने आदि में हमारी उपयोगी भूमिका को ज्यादा से ज्यादा ऊर्जावान व तेजस्वि बनाने से भी संबद्ध है । शिक्षा का यही महत् व मुख्य उद्देश्य है और शिक्षित होने के सही मायने ।” ( कुछ कृती व्यक्तित्व: सरोकार और उपलब्धियाँ, प्रो.हसमुख परमार,डॉ.पूर्वा शर्मा)

            विद्या या शिक्षा से जुड़े विविध संदर्भों की चर्चा के प्रसंग में एक प्रसिद्ध पुराण-कथन का सहज ही स्मरण होता है –

सा विद्या या विमुक्तये

(तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये ।

आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्  ।।

- विष्णुपुराण)

जो हमें मुक्ति प्रदान करे, जो मुक्ति की राह दिखाए, मतलब यह कि विद्या या शिक्षा वही जो हमें दुर्गुण, दुर्विचार, अज्ञान, दासता, दरिद्रता, बेरोजगारी, द्वेष आदि से मुक्ति दिलाए ।

विद्या या शिक्षा के महत्व को उजागर करते एक-दो और संस्कृत श्लोक/सुभाषित-

कामधेनुगुणा विद्या ह्यकाले फलदायिनी ।

प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम् ।।

 

विद्या ददाति विनयम, विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम् ।

जैसा कि हमने कहा कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में ज्ञान, विद्या, शिक्षा आदि का विस्तृत वर्णन तथा तत्संबंधी महत्वपूर्ण चिंतन मिलता है । उदाहरणार्थ संस्कृत ‘पुराण साहित्य’, और उसमें भी विशेषतः एक पुराण- ‘अग्निपुराण’ को हम इस संदर्भ में देख सकते हैं । ‘अग्निपुराण’ सिर्फ एक धर्मग्रंथ ही नहीं है अपितु बहुआयामी व बहुविषयक ज्ञान व विद्या का एक बृहद कोश भी है । इसमें सभी प्रकार की विद्याओं का सारगर्भित वर्णन किया गया है । भारतीय विद्याओं- परा और अपरा विद्या तथा कलाओं का सार होने के कारण इस पुराण को ‘विद्यासारपुराण’ भी कहा गया है । असल में यह ग्रंथ तत्कालीन प्रचलित समस्त विद्याओं का संकलन है । 383 अध्यायों के विस्तृत कलेवर में रचनाकार ने ज्योतिष, धर्म, राजनीति, आयुर्वेद, छन्द, अलंकार, व्याकरण, कोश,योग प्रभृति विषयों-विद्याओं का वर्णन-विवेचन किया है । “ इस पुराण को यदि समस्त भारतीय विद्याओं का विश्वकोश कहें तो किसी प्रकार की अत्युक्ति न होगी । इस पुराण के 383 अध्यायों में नाना प्रकार के विषयों का सन्निवेश कम आश्चर्य का विषय नहीं है ।.... इस पुराण के अनुशीलन से समस्त ज्ञान-विज्ञान का परिचय मिलता है । इसलिए इस पुराण का यह दावा सर्वथा सच्चा ही प्रतीत होता है कि –

‘आग्नेये हि पुराणेऽस्मिन् सर्वाः विद्याः प्रदर्शिताः ।’

(पुराण दर्शन, आ. बलदेव उपाध्याय, पृ.151)

खैर, ‘सा विद्या या विमुक्तये’ शिक्षा का एक दर्शन है, शिक्षा का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो शिक्षा को रोजगार व सामाजिक महत्व प्रदान करने वाला एक साधन ही नहीं बल्कि आत्मज्ञान व स्वतंत्रता के लिए भी प्रेरित करने वाले एक उपकरण के रूप में देखता है । असल में शिक्षा ही हमें बंधनों से मुक्ति दिलाती है और एक बेहतर व्यक्ति बनने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी इस दर्शन से विशेष प्रेरित-प्रभावित कही जा सकती है । इसमें शिक्षा ज्ञान, व्यक्तित्व विकास और रोजगार के साथ साथ व्यक्ति के आत्मज्ञान तथा उसके जीवन के महत् उद्देश्य की सही दिशा को भी निर्देशित करती है ।

            व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास का मुख्य आधार शिक्षा ही है । किसी भी राष्ट्र की अकादमिक शिक्षा मूलतः वहाँ की शिक्षा नीति पर ही आधारित होती है, अतः प्रत्येक देश की सरकार शिक्षा पर विशेष ध्यान देती है । “भारत में समय समय पर शिक्षा नीति को बदला जाता रहा है । पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 1968 में शुरू की थी । इसके बाद अगली शिक्षा नीति राजीव गाँधी की सरकार ने 1986  में तैयार की जिसमें नरसिम्हाराव सरकार ने 1992 में कुछ बदलाव किए थे । इस प्रकार 34 वर्ष पुरानी शिक्षा नीति चल रही थी । नई शिक्षा नीति(2020) को के,कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया जिसमें भविष्य के अनेक सुनहरे सपने बुने गए हैं ।” ( राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की गंगोत्री-भारतीय ज्ञान परंपरा, सं. अनिल कुमार राय, पृ.118)

            नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के बारे में, उसकी विशेषताओं व उद्देश्यों को लेकर सबसे पहले इस शिक्षा नीति समिति के अध्यक्ष के.कस्तूरीरंगन के शब्द- “ हमने एक ऐसी नीति निर्मित करने की कोशिश की है जो हमारी समझ में शैक्षिक परिदृश्य को परिवर्तित कर देगी ताकि हम युवाओं को वर्तमान और भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर सकें । यह एक ऐसी यात्रा रही है जिसमें हर सदस्य ने वैयक्तिक और सामूहिक रूप से हमारे देश के व्यापक शैक्षिक परिदृश्य के विविध आयामों को शामिल करने की कोशिश की है । यह नीति सभी की पहुँच, क्षमता, गुणवत्ता, वहनीयता एवं जवाबदेही जैसे मार्गदर्शी उद्देश्यों पर आधारित है । पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक हमने इस क्षेत्र को एक अविच्छिन्न निरंतरता में देखा है और साथ ही व्यापक परिदृश्य के इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया है ।”

शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन, व्यक्तित्व विकास-कौशल विकास तथा रोजगार के अवसर प्रदान करने वाले एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखने वाली नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कतिपय विशेषताओं में मूल्य आधारित शिक्षा, मल्टीडिसिप्लिनरी, उन्नत भारतीय ज्ञान परंपरा, व्यवसाय-रोजगारपरक शिक्षा, भारतीय भाषाओं में शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, समग्र-समतामूलक-समावेशी शिक्षा, शिक्षक-प्रशिक्षण, भारतीय संस्कृति व कलाएँ, शिक्षा में रचनात्मकता और नवाचार प्रभृति को देखा जा सकता है  । इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक महत् उद्देश्य भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना ।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा प्रणाली, शिक्षा के विषय, शिक्षा की माध्यम भाषा, शिक्षा के उद्देश्य में भारत-भारतीयता तथा राष्ट्र-राष्ट्रीयता का विशेष दृष्टिकोण रहा है । अतः भारतीय इतिहास, परंपरा, समाज, संस्कृति, भाषाएँ, कलाएँ, ज्ञान आदि का विशेष आग्रह ।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भाषा नीति में मातृभाषा, क्षेत्रीय-प्रांतीय भाषाएँ, संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाएँ यानी भारतीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम हेतु विशेष महत्त्व व बढ़ावा देने के प्रावधान हैं । यह नीति बताती है कि- “संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन करना होगा । इसलिए कहा गया है कि- भारतीय भाषाओं का सुनहरा भविष्य लेकर आई है यह शिक्षा नीति ।”

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते

ज्ञानं तृतीयं मनुजस्य नेत्रं समस्ततत्तवार्थविलोकदक्षम्:

ज्ञान के महत्त्व को बताती इन पंक्तियों को पूर्णतः सार्थक करती है भारतीय ज्ञान परंपरा । वेद से लेकर इक्कीसवीं सदी तक की भारतीय ज्ञान-विज्ञान व चिंतन की सुदीर्घ, सुदृढ़ व विषयगत वैविध्यपूर्ण परंपरा में अनेकों  ग्रंथों, चिंतकों, दार्शनिकों, विचारकों, वैज्ञानिकों,अनुसंधानों, आविष्कारों और साहित्यकारों  की एक लम्बी सूची है जो हमारे धार्मिक, दार्शनिक , सामाजिक और भौतिक ज्ञान से हमें अवगत कराती है । भारतीय ज्ञान-विज्ञान संबंधी ग्रंथों में धर्म, अध्यात्म, दर्शन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, व्याकरण, कला, खगोल, गणित, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाज, नीतिशास्त्र, भूगोल. कृषि-व्यापार, चिकित्सा, जीव-विज्ञान, भौतिकी आदि से संबंधी ज्ञान उपलब्ध है । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख आयामों में एक आयाम यह भारतीय ज्ञान परंपरा भी है ।

             वाकई में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधान व सुझाव भारतीय शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने तथा शिक्षा को और अधिक स्तरीयता प्रदान करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास है ।

             अंत में डॉ. सच्चिदानंद जोशी के शब्दों में – “सन् 2020 की 29 जुलाई को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने का प्रस्ताव पारित हुआ तो दरअसल ये 34 वर्ष बाद किया जाने वाला परिवर्तन नहीं है । यह परिवर्तन वस्तुतः भारत के इतिहास में 185 वर्ष बाद आया है । जैसे हम आजादी के बाद से औपनिवेशिक मानसिकता से उबरने के लिए संघर्षरत थे और भौतिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद भी मानसिक गुलामी से मुक्त होने के लिए छटपटा रहे थे । वैसे ही हम विगत 185 वर्षों से हमें गुलाम और जर्जर बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था से मुक्त होने के लिए छटपटा रहे थे । राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के लिए सही मायनों में ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का संदेश लेकर आई है ।”( राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की गंगोत्री: भारतीय ज्ञान परंपरा. सं. अनिल कुमार राय, पृ.38)

प्रो. हसमुख परमार

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभ विद्यानगर

आणंद (गुजरात)

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. नयी शिक्षा नीति को हमारे पुराने संस्कृति और संस्कृत से जोड़ते हुये आपकी ये विशेष आलेख बहुत ज्ञानवर्धक है । साथ में बहुत विचारों पर सापेक्ष संस्कृत के श्लोकों को उदाहरण दे कर उन बिंदुओं को और प्रभावी बनाये ।
    साधुवाद ।

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  2. बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक आलेख। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर।

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  3. ज्ञानवर्धक जानकारियों से भरा आलेख।

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  4. भारतीय ज्ञान-परम्परा का विवेचन करते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदुओं का परिचय देने वाला महत्वपूर्ण आलेख। बधाई डॉ. साहब

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  5. भारतीय ज्ञान-परम्परा का विवेचन करते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदुओं का परिचय देने वाला महत्वपूर्ण आलेख। बधाई डॉ. साहब

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जुलाई 2025, अंक 61

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