शुक्रवार, 27 जून 2025

कविता

  

डॉ. राजकुमार शांडिल्य

1.

योग की महिमा

 

योग है अद्भुत-प्रत्यक्ष, वैदिक विज्ञान,

इसी से होगा, मानवमात्र का कल्याण।

पढे़ जो, महर्षि पतंजलि का योग विज्ञान,

चित्तवृत्तियों का निरोध, करे वह इन्सान।

सुख, दु:ख मोह-बन्धन नहीं, सीमित भोग,

सभी अपनाएँ योग, विश्व बने नीरोग।

मन अति चंचल स्वेच्छा से है चलता जाता,

अभ्यास और वैराग्य से ही वश में आता।

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,

धारणा, ध्यान, समाधि अष्टांग का व्यवहार।

यम-नियम से होती तन-मन-वाणी शुद्ध,

प्राणायामादि से समाधि तक पहुँचे प्रबुद्ध।

 

शरीर-मन को स्वस्थ रखता है प्राणायाम,

पूरक, रेचक, कुम्भक हैं विविध आयाम।

प्राणायाम असाध्य रोगों को जड़ से मिटाता,

नित्य अभ्यास से दुःख-दर्द जन भूल जाता।

अहिंसा, सत्यास्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह,

अन्तस् वासना शुद्धि से प्रसन्नचित्त रह।

शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान,

नियमों के पालन का हो मानवमात्र को ज्ञान।

***

2.

रक्त दान

रक्त है ईश्वर का वरदान,

इससे बढ़कर नहीं कोई दान।

यह अमूल्य है महान,

लाली है इसकी पहचान।

अब तक नहीं मिला उत्पादन का ज्ञान,

यह नहीं बिकता किसी हाट दुकान।

इसी से जिंदा रहता इंसान,

शरीर में भरपूर रक्त है रोगों का निदान।

दुर्घटना में क्षत-विक्षत चाहता रक्तदान,

उसी से बचते हैं मानव के प्राण।

गंभीर रोगों में शल्य चिकित्सा है निदान,

मृत्यु शय्या पर पड़ा इंसान चाहता रक्तदान।

इसके बाद, रक्त ही देता पुनः प्राण,

समय पर न मिले तो मनुष्य निष्प्राण।

भोजन, वस्त्र, धन, भूमि और ज्ञान,

सबसे बढ़कर दान महान।

प्रतिरोधक क्षमता पुष्टकर बनाता बलवान,

यही है सबसे बड़ा बलिदान।

मनुष्य इससे ही पाता है सम्मान,

वस्तुतः रक्तदान है जीवनदान।

रक्त में गर्मी से ही योद्धा बने महान

तभी सीमा पर शत्रु की कांपे जान।

रक्त में उबाल नहीं तो नर बेजान,

रक्तदाता है मित्र और भगवान, रक्त है ईश्वर का वरदान।

***

3.

नशा करे विनाश

घर में उपेक्षित, असफल और निराश,

अवसाद में भटकें, सुखों की करें तलाश।

सिगरेट, तम्बाकू, सुरा, अफीम और भाँग,

नशा सेवन जो करें, बनते उसी का ग्रास।

उन्मादक, घातक, धन नाश करें ये नाम,

इनके सेवन से बांधवों में हों बदनाम।

दुःखी मनुष्य, जो पहले थोड़ा-सा चख लेता,

क्षणिक सुख लोभ में, मात्रा है बढ़ा देता।

मद्य से क्षणिक आनन्द, मन शिथिल होता,

चिन्तन में असमर्थ, सदा निद्रा है देता।

निर्लज्ज ये, सुरापान जूए में मस्त हो जाते,

दुःखी, त्रस्त, कुटुम्बी, रो-रो दिन बिताते।

कुत्ते मुँह चाटते, जब कहीं भी गिर जाते,

शिक्षा, पद, सम्मान, शून्य ही रह जाते।

स्पर्धा में युवतियाँ भी, करती मद्य-सेवन,

संस्कृति, समाज का क्षरण, होता है पतन।

तीक्ष्ण तम्बाकू सेवन से, होता कैंसर रोग,

जो नहीं समझते, हो जाते हैं मृत्यु का भोग।

पुलिस, नेता, अभिनेता चाहे हों अधिकारी,

आज सभी बने हैं, मादक द्रव्यों के व्यापारी।

स्व हित चाहकर, नशा मुक्ति केन्द्र जो जाता,

दृढ़ निश्चय नर ही, व्यसन मुक्त हो पाता।

विश्व के सुधीजन करें नशा उन्मूलन,

शुद्ध सात्विक भोजन से, हो स्वस्थ तन-मन।

 


डॉ. राजकुमार शांडिल्य

हिन्दी प्रवक्ता

शिक्षा विभाग चंडीगढ़

 

 

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