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नाथ-साहित्य
कुछ विद्वानों का मत है कि सिद्धों की वाममार्गी भोगप्रधान
साधना की प्रतिक्रया के रूप में नाथपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई । डॉ.विजयपाल
सिंह के मतानुसार “ दार्शनिकता की दृष्टि से वह पतंजलि के हठयोग से संबंध रखता है
। ”
नाथपंथ के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए डॉ.रामकुमार वर्मा
लिखते हैं- “ गोरखनाथ ने नाथ संप्रदाय को जिस आंदोलन का रूप दिया वह भारतीय
मनोवृत्ति के सर्वथा अनुकूल सिद्ध हुआ है, उसमें जहाँ एक ओर ईश्वरवाद की निश्चित धारणा उपस्थित की गई,
वहीं दूसरी और विकृत करने वाली समस्त परंपरागत रूढ़ियों पर
आघात किया ।”
नाथों की संख्या नौ मानी गई है । ये नौ नाथ कौन ?
इस संबंध में विद्वानों के मत अलग-अलग हैं । आचार्य
रामचंद्र शुक्ल और पं.हजारीप्रसाद द्विवेदी दोनों ने नाथों की संख्या तो नौ बताई
पर इनके द्वारा बताए गए नामों में एकरूपता नहीं है । रामचंद्र शुक्ल ने अपने
हिन्दी साहित्य के इतिहास में ‘गोरक्ष सिद्धांत’ संग्रह के मत को उद्धृत करते हुए
इस परंपरा के नौ नाथों के नाम दिए हैं- नागार्जुन, जड़भरत, हरिश्चंद्र , सत्यनाथ, भीमनाथ, गोरक्षनाथ, चर्पट, जलंधर और मलयार्जुन ।
नाथ साहित्य का संबंध नाथपंथ से है । नाथपंथ या
नाथ-संप्रदाय से जुडे योगियों द्वारा रचित यह साहित्य भी हिन्दी साहित्येतिहास के
आदिकाल की एक प्रमुख व बहुचर्चित काव्यप्रवृत्ति रही है । नाथपंथी साधकों के
साहित्य में मुख्यतः निम्नांकित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं-
•
शैवदर्शन • गुरु महिमा • हठयोग• आचरण की शुद्धता • पंच
मकारों का निषेध ( पाँच तरह के विकारों- मांस, मत्स्य, मदिरा, मुद्रा, मैथुन का विरोध ) • सामाजिक-धार्मिक कर्मकांडों का विरोध (
वर्णव्यवस्था, गृहस्थ जीवन, मूर्तिपूजा, शास्त्रविधान आदि का निषेध ) •
आत्मकेन्द्रित-शरीरकेन्द्रित-पिंड केन्द्रित साधना • वाममार्गी साधना पद्धति का
विरोध • पंजाबी, राजस्थानी, खडीबोली मिश्रित सधुक्कड़ी भाषा
नाथ साहित्य के प्रमुख कवि गोरखनाथ ही है । गोरखनाथ की
रचनाएँ हिन्दी और संस्कृत दोनों में मिलती हैं । ऐसा बताया जाता है कि इनकी लगभग
चालीस रचनाएँ हिन्दी में और कुछ रचनाएँ संस्कृत में है । डॉ.पिताम्बर बड़थ्वाल ने
इनकी रचनाओं का संकलन गोरखबानी नाम से किया है ।
गोरखनाथ एवं गोरखपंथ की रचनाओं में निरूपित कतिपय विषयों को
लेकर,
इन रचनाओं की साहित्यिकता को लेकर कई विद्वानों ने कुछ सवाल
उठाए,
परंतु पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी एवं अन्य कुछ विद्वानों ने
इन रचनाओं में निहित साहित्यिक गुण को स्वीकार करते हुए इन्हें साहित्यिक रचनाओं
की श्रेणी में रखा है । “ गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु महिमा,
इंद्रियनिग्रह, प्राणसाधना, वैराग्य, मनःसाधना, कुण्डलिनी जागरण, शून्य समाधि आदि का वर्णन किया है । इन विषयों में नीति और
साधना की व्यापकता मिलती है । यही कारण है कि आचार्य रामचंद शुक्ल ने इन रचनाओं की
साहित्य में सम्मिलित नहीं किया था । किन्तु, डॉ.हजारीप्रसाद द्विवेदी इस पक्ष में नहीं है । पूर्वोक्त
विषयों के साथ जीवन की अनुभूतियों का सघन चित्रण होने के कारण इन रचनाओं को
साहित्य में सम्मिलित करना ही उचित है ।” ( हिन्दी साहित्य का इतिहास,
सं. नगेन्द्र, पृ. 83)
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