सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का अवसान : एक युग का अवसान है
राजा
दुबे
सुर साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर का महाप्रयाण स्वर माधुर्य के एक ऐसे युग का अवसान है जिसके मोह में करोड़ों प्रशंसक मुग्धता के चरम में बँधे थे । किसी ने कितना सही लिखा है कि उनके देहावसान के एक दिन पहले देश में वीणावादिनी माँ सरस्वती की सर्वत्र पूजा- आराधना हुई थी और जब माँ विदा हुई तो इस बार वे अपनी सबसे प्रिय पुत्री और परम आराधिका को अपने साथ ले गई, मानो इस बार वे उन्हें ले जाने के लिए ही आई थीं । मृत्यु सदैव शोक का विषय नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता को भी दर्शाती है और देह के नश्वर होने की सच्चाई की अनुभूति भी कराती है । लताजी का जीवन सुरों का प्रवाह था तो उनकी मृत्यु सुरों का पूर्ण विराम थी ।
पाँच
पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुना
तिरानबे
वर्ष का इतना सार्थक और दिव्यता से परिपूर्ण जीवन बिरलों को ही प्राप्त होता है।
लगभग पाँच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है,
और हृदय से सम्मान दिया है। उनके पारिवारिक जीवन को देखें तो उनके
पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब लता जी तेरह वर्ष की थीं| नन्हीं जान के कंधों पर छोटे-छोटे चार
बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेदारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही
समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित
परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा? भारत पिछले अस्सी वर्षों से लता जी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में,
विषाद में,ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है। लता जी गाना
गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था। कोई
उनके घर जाता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का
मन्दिर दिखाती थीं। बस इन्हीं तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था
उन्होंने। सोच कर देखिये, कैसा दार्शनिक भाव है यह... इन तीन
के अतिरिक्त सचमुच और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता संसार में। सब आते-जाते रहने वाली
चीजें हैं ।
भजन
से आरम्भ सुरयात्रा भजन पर ही थमी
कितना
अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन कैरियर में लगभग छत्तीस भाषाओं
में हर रस और भाव के हज़ारों से भी अधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपने पहले और
अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान का भजन ही गाया है। “ज्योति कलश छलके” से “दाता
सुन ले..” तक कि यात्रा का सौंदर्य यही है
कि लताजी न अपने कर्तव्य से कभी डिगीं न अपने धर्म से ! इस महान यात्रा के पूर्ण
होने पर हम सब का रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता जी। लता मंगेशकर भारत की सबसे
प्रतिष्ठित और लोकप्रिय
पार्श्वगायिका
हैं, जिन्होंने कई फिल्मी और गैर फिल्मी यादगार गीत गाए हैं । लता मंगेशकर ने एक
हजार से ज्यादा हिन्दी फिल्मों में गीत गाए हैं। मुख्यत: उन्होंने हिंदी,
मराठी और बंगाली में गाने गाए हैं। वे छत्तीस से ज्यादा भाषाओं
में हज़ारों गीत गा चुकी हैं जो अपने आप
में एक कीर्तिमान है।
मध्यप्रदेश
के इन्दौर में जन्मीं लता परिवार में सबसे बड़ी थीं
लता मंगेशकर
का जन्म 28 सितम्बर, 1929 को इन्दौर (मध्यप्रदेश) में हुआ था । लता पण्डित
दीनानाथ मंगेशकर और शेवंतीदेवी की बड़ी बेटी थीं। लता के पिता पण्डित दीनानाथ
मंगेशकर एक मराठी संगीतकार, शास्त्रीय गायक और थिएटर एक्टर
थे जबकि माँ गुजराती थीं। पण्डित दीनानाथजी का सरनेम हार्डीकर था जिसे बदल कर
उन्होंने मंगेशकर कर दिया। वे गोवा के मंगेशी के रहने वाले थे और इसके आधार पर
उन्होंने अपना नया सरनेम चुना। लता के जन्म के समय उनका नाम हेमा रखा गया था जिसे
बदल कर लता कर दिया गया। यह नाम दीनानाथ को अपने नाटक 'भावबंधन'
के एक महिला किरदार लतिका के नाम से सूझा। लता के बाद मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ का जन्म हुआ। बचपन से ही लता को
घर में गीत-संगीत और कला का माहौल मिला और वे उसी ओर आकर्षित हुईं। पाँच वर्ष की
उम्र से ही लता को उनके पिता संगीत का पाठ पढ़ाने लगे। उनके पिता के नाटकों में
लता अभिनय भी करने लगीं। लता को स्कूल भी भेजा गया, लेकिन
पहले ही दिन उनकी टीचर से अनबन हो गई। लता अपने साथ अपनी छोटी बहन आशा को भी स्कूल
ले गईं। टीचर ने आशा को कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी इससे लता को गुस्सा आ
गया और वे फिर कभी स्कूल नहीं गईं ।उनके पिता की जब मृत्यु हुई तब लता मात्र
तेरह वर्ष की थीं। लता पर परिवार का बोझ आ गया। नवयुग चित्रपट मूवी कंपनी के मालिक
मास्टर विनायक और मंगेशकर परिवार के नजदीकी लोगों ने लता का कैरियर गायिका और
अभिनेत्री के रूप में सँवारने के लिए मदद की।
लता
को अभिनय पसंद नहीं था, लेकिन पैसों की तंगी
के कारण उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। मंगला गौर (1942),
माझे बाल (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946) जैसी फिल्मों में लता ने छोटी-मोटी भूमिकाएँ अदा की।
मराठी
फिल्मों में पार्श्वगायन से मिला हिन्दी फ़िल्मों में पार्श्वगायन का अवसर
लता
को सदाशिवराव नेवरेकर ने एक मराठी फिल्म में गाने का अवसर वर्ष 1942
में दिया। लता ने गाना रिकॉर्ड भी किया, लेकिन फिल्म के
फाइनल कट से वो गाना हटा दिया गया। लेकिन वर्ष 1942 में ही
रिलीज हुई मंगला गौर में लता की आवाज सुनने को मिली। इस गाने की धुन दादा चांदेकर
ने बनाई थी। वर्ष 1943 में प्रदर्शित मराठी फिल्म 'गजाभाऊ' में लता ने हिंदी गाना “ 'माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू “ गाया। फिर वर्ष 1945 में लता मंगेशकर मुंबई आ गईं और उसके
बाद उनका कैरियर आकार लेने लगा। वहाँ पर उन्होंने भिंडीबाजार घराना के उस्ताद अमन
अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। फिल्म बड़ी माँ(1945) में गाए भजन 'माता तेरे चरणों में' और 1946 में रिलीज हुई “आपकी सेवा में” लता द्वारा
गाए गीत “पा लागूं कर जोरी” ने लोगों का
ध्यान लता की ओर खींचा। वसन्त देसाई और
गुलाम हैदर जैसे संगीतकारों के सम्पर्क में लता आईं और उनका कैरियर निखरने लगा।
गुलाम हैदर लता के मेंटर ( मार्गदर्शक )
बन गए। वे लता को दिग्गज फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी के पास ले गए जो उस
समय “ शहीद “ (1948) नामक फिल्म बना रहे थे। हैदर ने लता को लेने की सिफारिश मुखर्जी से की।
लता को सुनने के बाद मुखर्जी ने यह कहते हुए लता को लेने से इंकार कर दिया कि लता
की आवाज बहुत पतली है। इससे हैदर भड़क गए। वे लता की प्रतिभा को पहचान चुके थे।
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में लता छा जाएगी और ये सारे निर्माता-निर्देशक
लता के चरणों में गिर कर लता से अपनी फिल्मों में गाने की मिन्नत करेंगे। गुलाम हैदर ने लता से 'मजबूर'
(1948) में एक गीत “ दिल मेरा तोड़ा, मुझे
कहीं का ना छोड़ा “: गवाया। यह गीत लता का पहला हिट गाना माना जा सकता है। गुलाम
हैदर ने लता में जो प्रतिभा देखी थी इसका जिक्र अक्सर लता करती रही हैं। लता के
अनुसार गुलाम हैदर उनके सही मायनों में गॉडफादर थे और उन्हें लता की प्रतिभा में
पूरा विश्वास था।
पार्श्वगायन
में पैर जमाने के लिए लता जी ने विकसित की अपनी विशिष्ट शैली
लता
जब पार्श्वगायन के क्षेत्र में अपना कैरियर बना रही थीं तब नूरजहाँ,
शमशाद बेगम जैसी गायिकाओं का बोलबाला था। लता पर भी इन गायिकाओं का
प्रभाव था और वे उसी शैली में गाती थीं। लता समझ गईं कि यदि उन्हें आगे बढ़ना है
तो अपनी शैली विकसित करनी होगी और तब उन्होंने यही किया। उन्होंने हिंदी और उर्दू
के उच्चारण सीखे। वर्ष 1949 में एक फिल्म रिलीज हुई “महल” इसमें खेमचंद प्रकाश ने लता से “आएगा आने वाला...” गीत गवाया जिसे मधुबाला पर
फिल्माया गया था। यह गीत सुपरहिट रहा। इस गीत ने एक तरह से ऐलान कर दिया कि आएगा
आने वाला आ चुका है। यह गीत लता के बेहतरीन गीतों में से एक माना जाता है और आज भी
सुना जाता है। इस गीत की कामयाबी के बाद लता ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
पचास
से सत्तर के दौर में आए लता के एक से बढ़कर एक गीत
वर्ष
1950 से 1970 का दौर भारतीय फिल्म संगीत के लिए बेहतरीन
समय माना जाता है। जब एक से बढ़कर एक गायक, संगीतकार,
गीतकार और फिल्मकार थे। सबने मिल कर बेहतरीन फिल्में और संगीत रचा
और लता मंगेशकर के स्वरों में ढल कर एक से बढ़कर एक गीत सुनने को मिले। अनिल
बिस्वास, शंकर जयकिशन, सचिनदेव बर्मन,
नौशाद, हुस्नलाल भगतराम, सी. रामचंद्र, सलिल चौधरी, सज्जाद-हुसैन,
वसन्त देसाई, मदन मोहन, खय्याम,
कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल,
राहुल देव बर्मन जैसे नामी संगीतकार मधुर धुनों का निर्माण कर रहे
थे और लता मंगेशकर सभी की पहली पसंद थी ।
इन संगीतकारों के साथ लता ने अनेक यादगार गीत गाए जिनकी लोकप्रियता की कोई सीमा
नहीं रही। लता की आवाज का माधुर्य आम जन के सिर चढ़ कर बोला और लता मंगेशकर देखते
ही देखते शीर्षस्थ गायिका बन गईं। गायिकाओं में उनके इर्दगिर्द कोई भी नजर नहीं
आता था।
गायन
की विशिष्ट शैली ने ही लता मंगेशकर को विशेष बनाया
हर
गाने को लता अपनी विशिष्ट गायन शैली से
विशेष बना देती थीं। चाहे वो रोमांटिक गाना हो,
राग आधारित हो, भजन हो या देशभक्ति से ओतप्रोत
गाना हो। उनके द्वारा गाए गीत “ 'ऐ मेरे वतन के लोगों' ' को सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री
जवाहर लाल नेहरू की भी आँख भर आई थी। दीदार, बैजू बावरा,
उड़न खटोला, मदर इंडिया, बरसात, आह, श्री 420, चोरी चोरी, सज़ा, हाउस नं 44,
देवदास, मधुमती, आज़ाद,
आशा, अमरदीप, बागी,
रेलवे प्लेटफॉर्म, देख कबीरा रोया, चाचा जिंदाबाद, मुगल-ए-आजम, दिल
अपना और प्रीत पराई, बीस साल बाद, अनपढ़,
मेरा साया, वो कौन थी, आए
दिन बहार के, मिलन, अनिता, शागिर्द, मेरे हमदम मेरे दोस्त, दो रास्ते, जीने की राह जैसी सैकड़ों फिल्मों में
लता ने मधुर नगमे गाए। संगीतकार लता के पास कठिन से कठिन गीत लाते थे और लता बड़ी
आसानी से उन्हें गा देती थी। राज कपूर, बिमल रॉय, गुरुदत्त, मेहबूब खान, कमाल
अमरोही जैसे दिग्गज फिल्मकार की पहली पसंद लता ही रहीं। लगभग सात दशकों तक भारतीय
फिल्में लता के गीतों से आपूरित रहीं। मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित तक तमाम अभिनेत्रियों को
उन्होंने अपनी आवाज दी। लता की आवाज कभी भी किसी भी अभिनेत्री पर मिसफिट नहीं लगी।
शाहरुख खान ने तो एक बार लता के सामने कहा भी था कि काश उन पर भी कोई लता की आवाज
में गीत फिल्माया जाता। लता मंगेशकर हमेशा
अपने सौम्य स्वभाव के लिए जानी गईं। तमाम फिल्म निर्माता, निर्देशक,
संगीतकार, गायक, हीरो,
हीरोइनों से उनके पारिवारिक रिश्ते रहे। दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, अमिताभ
बच्चन, यश चोपड़ा, राहुलदेव बर्मन,
मुकेश, किशोर कुमार से उनके घनिष्ठ संबंध रहे।
पीढ़ी दर पीढ़ी उनके संबंध मधुर रहे। लता को हर किसी ने अपने परिवार का ही हिस्सा
माना।
अपने
गायन की गुणवत्ता को लताजी ने हमेशा बनाये रखा
वर्ष
1970 से फिल्म संगीत के स्तर में गिरावट आना शुरू हो गई थी लेकिन लता ने अपने आपको इससे बचाए रखा। उनके
गाने क्वालिटी लिए होते थे और वे सफलता के शीर्ष पर बनी रहीं। इस दौर में भी
उन्होंने पाकीज़ा, प्रेम पुजारी, अभिमान,
हँसते जख्म, हीर राँझा, अमर
प्रेम, कटी पतंग, आँधी, मौसम, लैला मजनूँ, दिल की
राहें, सत्यम् शिवम् सुंदरम् जैसी कई फिल्मों में यादगार गीत
गाए। अस्सी के दशक में कई नए संगीतकार उभर कर आये । अनु मलिक, शिव हरि , आनन्द-मिलिन्द, राम-लक्ष्मण
ने भी लता से गीत गवाना पसंद किया। सिलसिला, फासले, विजय, चाँदनी, कर्ज, एक दूजे के लिए, आसपास, अर्पण,
नसीब, क्रांति, संजोग,
मेरी जंग, राम लखन, रॉकी,
फिर वही रात, अगर तुम न होते, बड़े दिल वाला, मासूम, सागर,
मैंने प्यार किया, बेताब, लव स्टोरी, राम तेरी गंगा मैली जैसी सैकड़ों फिल्म
में लता के गाए गीत गली-गली गूँजते रहे। यद्यपि 90 के दशक
में लता ने गाना कम कर दिया। इस दौर में भी डर, लम्हें,
दिल वाले दुल्हनिया ले जाएँगे, दिल तो पागल है,
मोहब्बतें, दिल से, पुकार,
ज़ुबैदा, रँग दे बसंती, 1942 ए लव स्टोरी जैसी फिल्मों में लता को सुनने को मिला। हालाँकि वे समय-समय
पर कहती भी रहीं कि आज के दौर के संगीतकार उनके पास अच्छे गीत का प्रस्ताव लाते
हैं तो उन्हें गीत गाने में कोई समस्या नहीं है।
लता
मंगेशकर के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार उनका श्रोतावर्ग था
लता
मंगेशकर को ढेरों पुरस्कार और सम्मान मिले। जितने मिले उससे ज्यादा के लिए
उन्होंने मना भी किया ।वर्ष1970 के बाद
उन्होंने फिल्मफेअर को कह दिया कि वे सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार नहीं लेंगी
और उनकी बजाय नए गायकों को अब यह दिया जाना चाहिए। लता को मिले प्रमुख सम्मान और
पुरस्कार में भारत रत्न तो सर्वोपरि है ही क्योंकि यह देश का सर्वोच्च नागरिक
सम्मान है ।लता मंगेशकर को सर्वश्रेष्ठ गायिका के छः फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994 में दिये गये । उनको श्रेष्ठ पार्श्वगायन
के लिए तीन राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 1972,
1975 और 1990 में प्रदान किए गये। उनको
महाराष्ट्र सरकार का राज्पुय पुरस्कार वर्ष 1966 और 1967 में दिया गया ।वर्ष 1974 में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड ,
वर्ष 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार,वर्ष1993
में फिल्मफेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष1996 में स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार ,वर्ष 1997 में राजीव गांधी
पुरस्कार ,वर्ष 1999 में एन.टी.आर. पुरस्कार और वर्ष 2001 में नूरजहाँ पुरस्कार सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए थे।
राजा
दुबे
सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक, जनसंपर्क मध्यप्रदेश
एफ
- 310 राजहर्ष कालोनी ,
अकबरपुर
कोलार
रोड
भोपाल
462042
वाह दुबे जी,आभार, लता दीदी पर समग्र सामग्री एक लेख में प्रस्तुत करने पर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख, हार्दिक बधाई आपको!
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