हिन्दी के अन्य नाम
जिस
तरह भारत देश की पहचान और भी कुछ नामों से होती रही है,
ठीक इसी तरह इस देश की भाषा हिन्दी के लिए भी समय-समय पर अलग-अलग
नाम प्रयुक्त होते रहे हैं। यथा – ‘भाखा’, ‘हिन्दवी’, ‘हिन्दुई’, ‘दक्खिनी’,
‘दक्कनी’, ‘हिन्दुस्तानी’, ‘देहलवी’,
‘रेख्ता’, ‘उर्दू’, ‘आर्यभाषा’, ‘भारती’, ‘खड़ीबोली’ आदि।
हिन्दी के ये अन्य नाम जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखंडों में विभिन्न सन्दर्भों में
प्रयुक्त हुए हैं। अत: हिन्दी भाषा के उद्भव-विकास व स्वरूप संबंधी चर्चा के क्रम
में इन नामों पर भी विद्वानों ने विचार किया है। वैसे देखें तो जिस भाषा को आज हम
हिन्दी नाम से जानते-पहचानते हैं, वह एक बहुत ही व्यापक-विस्तृत
क्षेत्र व बड़े जन-समूह की भाषा रही है और इसके प्रयोग क्षेत्र में काफी वैविध्य
है। इसी वजह से इस भाषा के लिए सिर्फ हिन्दी नाम के सिवा अन्य कोई ऐसा नाम आज नहीं
है जो इसकी व्यापकता का बोध करा सके। ‘हिन्दी’ शब्द ही इस भाषा के लिए अब पूर्ण प्रचलित और रूढ़ हो चुका है।
‘भाखा’ से तात्पर्य है भाषा,
विशेषत: जनसामान्य के व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा यानी
जनभाषा। साहित्य के क्षेत्र में मध्ययुगीन भारतीय परंपरा के कतिपय कवियों ने
प्राचीन भाषाओं की तुलना में अपनी कविता की भाषा को भाखा नाम से पुकारा। कुछ लोगों
का मानना है कि ‘भाखा’ शब्द कभी ‘हिन्दी’ के लिए प्रयुक्त होता था, मध्ययुग में हिन्दी के लिए
यह संज्ञा प्रयुक्त होती थी। दरअसल ‘भाखा’ शब्द मूलतः भाषा का वाचक है, इसे किसी
भाषा-विशेष के लिए या हिन्दी भाषा के लिए प्रयुक्त मानना ठीक नहीं है।
‘हिन्दवी’
अथवा ‘हिन्दुई’ –
13वीं शती में भारत के फारसी कवि औफ़ी ने सर्वप्रथम ‘हिन्दवी’ शब्द का प्रयोग हिन्द की देशी भाषा के लिए
किया था। इसी प्रकार अन्य मुस्लिम कवियों- मसऊद, अबुल हसन,
अमीर खुसरो आदि ने भी देशी भाषा को ‘हिन्दवी’ या ‘हिन्दुई’ नाम दिया।
भोलानाथ तिवारी के मतानुसार “तेरहवीं सदी में औफ़ी और अमीर खुसरो ने इसका प्रयोग
किया है। ‘खालीक बारी’ में ‘हिन्दी’ और ‘हिन्दवी’ दोनों का
प्रयोग एक ही भाषा के लिए हुआ है किन्तु हिन्दी का प्रयोग केवल पाँच बार जबकि
हिन्दवी का तीस बार। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले ‘हिन्दी’ की
तुलना में ‘हिन्दवी’ नाम ज्यादा प्रचलित था।” असल में हिन्दवी मूलत: शौरसेनी
अपभ्रंश तथा अल्प मात्रा में अन्य अपभ्रंशों से विकसित हुई परंतु मुसलमानों के
शासन काल में इस भाषा में अरबी-फारसी व तुर्की के शब्दों के आ जाने से इसका रूप
काफी बदल गया। दिल्ली और उसके आसपास की यह भाषा हिन्दुओं के द्वारा बोली जाने के
कारण ‘हिन्दुई’ नाम से भी पहचानी जाने
लगी। ‘हिन्दी में इंशा अल्ला खाँ की ‘रानी केतकी की कहानी’ इस भाषा की परिष्कृत
रचना मानी जाती है।’
‘दखनी’,
‘दक्खिनी’ या ‘दक्कनी’
– ये नाम देशपरक हैं। दक्षिण भारत में प्रयुक्त व
विकसित होने के कारण हिन्दी के इस भाषारूप को ये संज्ञाएँ प्राप्त हुई। दक्षिण के वैदर्भी
आदि अपभ्रंशों से संपर्क रखती हुई, भारत
के दक्षिण भाग में पालित हुई और उसका पोषण मुसलमान शासनकाल में दक्षिण में
परिव्याप्त मुसलमानों के हाथों हुआ। जब मुसलमान दक्षिण भारत गए तो व्यवहार के लिए
इसको भी ले गए। डॉ. बाबूराम सक्सेना के विचार से खड़ी बोली के विकास और समृद्धि में
दक्षिणी रियासतों ने अत्यन्त महत्वपूर्ण योग देकर उसे मुगल साम्राज्यकालीन
राष्ट्रभाषा का रूप देने की कोशिश की थी। यह चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी की हिन्दी
की खड़ीबोली है। इसका विकास दक्षिण में हुआ। इस तरह इसे ‘दक्खिनी’,
‘दखनी’ या ‘दक्कनी’ हिन्दी कहा गया।
‘हिन्दुस्तानी’ – यह भी हिन्दी का
एक महत्वपूर्ण नाम है। हिन्दुस्तानी से एक आशय है हिन्दुस्तान का निवासी और दूसरा
आशय है हिन्दुस्तान की ज़ुबान, हिन्द निवासियों
की भाषा। सामान्यतः हिन्दुस्तान से संबद्ध हिन्दुस्तानी है। हिन्दुस्तानी भाषा को
लेकर कहा जाता है कि 20 वीं शताब्दी में हिन्दी-उर्दू के
संघर्ष को समाप्त करने के लिए हिन्दुस्तानी शब्द आया। इस तरह यह भाषा-नाम
हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में चलाया गया। महात्मा गाँधी की इसमें
महत्वपूर्ण भूमिका रही। डॉ. सीताराम झा के मतानुसार “हिन्दुस्तानी भारत की बहुप्रचलित
अर्थात् जनभाषा थी। आरम्भ में यह भी ‘हिन्दवी’ के ही समकक्ष
थी और बाबर के समय में भी इसका प्रयोग बहुत होता था। पर, आगे
चलकर इसमें अरबी-फारसी शब्दों की बहुलता हो गई। जब हिन्दी में संस्कृत के तत्सम
शब्दों का अधिक प्रयोग होने लगा तब उसमें अरबी-फारसी के शब्दों को भी मिलाने का
आन्दोलन चला। इस प्रकार ‘हिन्दुस्तानी’ को नया संस्कार देकर हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनाया गया।”
फ्रेंच
विद्वान गार्सां द तॉसी द्वारा लिखे गए इतिहास ‘इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी’ में
ऐन्दुस्तानी (हिन्दुस्तानी) नाम का प्रयोग देख सकते हैं। आगे चलकर ‘हिन्दुस्तानी हिन्दी-उर्दू के बीच की एक ऐसी भाषा को कहा गया जिसमें
संस्कृत और अरबी-फारसी के कठिन शब्दों की जगह दोनों के सरल व बहुप्रचलित शब्दों का
प्रयोग हुआ ।
‘देहलवी’
– “देहलवी नाम का एक ही आधार है कि ‘दिल्ली’ ‘हिन्दी’
नाम की जनभाषा का मुख्य केन्द्र रही है।”
‘रेख्ता’ या’ रेखता’ – हिन्दी तथा अरबी-फारसी के
मिश्रण से मुसलमानों द्वारा एक और मिश्रित भाषा-रूप निर्मित हुआ जिसे रेख्ता नाम
से जाना जाता है। रेखता शब्द वैसे तो छंद तथा संगीत के क्षेत्र में प्रयुक्त होता
था और बाद में यह शब्द भाषा के लिए भी प्रयुक्त होने लगा। यह व्यावहारिक हिन्दी की
ही एक शैली थी जिसमें अरबी-फारसी को शब्दों की बहुलता थी। रेखता के बाद ‘रेख्ती’
भाषा जो एक कामचलाऊ भाषा भी। जिसका प्रयोग मुसलमान औरतें करती थी, विशेषतः दिल्ली
तथा लखनऊ की मुसलमान स्त्रियों द्वारा इसका प्रयोग होता था।
‘उर्दू’
– विद्वानों का एक वर्ग उर्दू को हिन्दी की ही एक शैली मानता है। हिन्दी ढाँचे के
आधार पर इसमें अरबी-फारसी-तुर्की शब्दों का प्रयोग किया जाता है। “भाषा विशेष के
अर्थ में ‘उर्दू’ शब्द ‘
ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला’ (श्रेष्ठ शाही पड़ाव
की भाषा) का संक्षेप है। भाषा के अर्थ में ‘उर्दू’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले कब
हुआ यह कहना कठिन है, किन्तु मोटे रूप में अठारहवीं सदी के
मध्य में यह चल पड़ा था यद्यपि इसे ज्यादातर ‘हिन्दी’ या ‘रेख्ता’
(मिश्रित भाषा) कहते थे। इसके साथ ही इसे ‘हिन्दुस्तानी’ नाम से भी अभिहित किया गया है। 1850 ई. तक आते-आते
इस भाषा के लिए अन्य नामों का प्रचलन बन्द हो गया और केवल ‘उर्दू’
नाम चलने लगा।”
‘खड़ी बोली’ – एक बोली के रूप
में खड़ी बोली पश्चिमी हिन्दी भाषा-समूह की बोलियों में प्रमुख है। इसे ‘कौरवी’ नाम
भी दिया गया। जिन क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है, वे हैं
– दिल्ली, मेरठ, मुजफ्फ़रनगर, बुलंदशहर, देहरादून, सहरानपुर,
बिजनौर आदि । स्वतंत्रता पूर्व इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार
करने में सक्षम पाया और देश के कई नेताओं ने इसका समर्थन किया। इसी खड़ीबोली का
परिनिष्ठित रूप आज राष्ट्रभाषा और राजभाषा हिन्दी है। खड़ीबोली का यही परिनिष्ठित
रूप अपने साहित्यिक रूप में हिन्दी नाम से प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर पढ़ने-पढ़ाने, बोलने-समझने की हिन्दी, संचार माध्यमों में प्रयुक्त हिन्दी यही है जिसे परिनिष्ठित हिन्दी,
मानक हिन्दी जैसे नाम से पहचाना जाता है।
आधार और सहायक ग्रंथ
● भाषाविज्ञान तथा
हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक विश्लेषण - डॉ. सीताराम झा ‘श्याम’
● हिन्दी साहित्य
का इतिहास – सं. डॉ. नगेन्द्र
● https://youtu.be/ezHrOT6fGnU
ज्ञानवर्धक आलेख
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