मंगलवार, 2 नवंबर 2021

निबंध पर बात

 

अन्धकार से जूझना है !

(हजारीप्रसाद द्विवेदी)

डॉ. हसमुख परमार

किसी से भी न डरना,

गुरु से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं,

लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।

- हजारीप्रसाद द्विवेदी

एक विराट और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी (1907-1979) की साहित्यिक साधना का क्षेत्र प्रमुखतः सर्जन, समीक्षा व शोध तक फैला है। हिन्दी उपन्यास तथा निबंध को एक विशेष पहचान देने वाले, समीक्षा व शोध को एक नई ऊँचाई प्रदान करने वाले हिन्दी के इस उद्भट विद्वान का योगदान हिन्दी साहित्य संसार में चिर-स्मरणीय रहेगा। भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत मूर्धन्य सर्जक और विलक्षण प्रतिभा व पांडित्य से संपन्न आलोचक और शोधकर्ता पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी की लेखनी हम पाठकों को हमारी संस्कृति और परंपरा का बखूबी बोध कराती है।

हिन्दी निबंध के प्रमुख हस्ताक्षर हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंधों में भारतीय संस्कृति, धर्म, प्रकृति, दर्शन, लोक प्रभृति विषयों की विशद व्याख्या, विवेचन व विश्लेषण है। विषय-वैविध्य तो वैसे भी द्विवेदी जी के निबंधों की प्रधान विशेषता रही है। विषय के वितान व वैविध्य से समृद्ध इनके निबंधों में संस्कृति, प्रकृति, साहित्य, कला, धर्म, ऋतु-उत्सव, मनोविनोद, पर्व-त्यौहार, ज्योतिष आदि बराबर निरूपित है। द्विवेदी जी के निबंधों के वैशिष्ट्‌य पर विचार करते हुए डॉ. द्वारिकाप्रसाद सक्सेना लिखते हैं – “आपके निबंध चिंतन एवं मनन से परिपूर्ण भारतीय संस्कृति एवं भारतीय सभ्यता पर आधारित है तथा जीवन एवं जगत की गहन अनुभूतियों के भंडार हैं। उनमें प्राचीनता एवं नवीनता का विलक्षण सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है।” द्विवेदी जी के विचारात्मक एवं ललित दोनों कोटी के निबंध हमें इनकी सर्जनात्मक प्रतिभा, विस्तृत-व्यापक अध्ययन तथा गंभीर चिंतन-मनन से परिचित कराते हैं।  

हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध संग्रह –

·         विचार और वितर्क

·         अशोक के फूल

·         कल्पलता

·         विचार प्रवाह

·         कुटज

·         आलोक पर्व

साहित्य अकादमी से पुरस्कृत ‘आलोक पर्व’ (1972) निबंध संग्रह में कुल सत्ताईस निबंध है। “आलोक पर्व के निबंध द्विवेदी जी के प्रगाढ़ अध्ययन और प्रखर चिन्तन से प्रसूत हैं। इन निबंधों में उन्होंने एक ओर संस्कृत काव्य की भाव-गरिमा की एक झलक पाठकों के सामने प्रस्तुत की है तो दूसरी ओर अपभ्रंश तथा प्राकृत के साथ हिन्दी के सम्बन्ध का निरूपण करते हुए लोकभाषा में हमारे सांस्कृतिक इतिहास की भूली कड़ियाँ खोजने का प्रयास किया है।....... निबंधों में आचार्य द्विवेदीजी ने भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति के प्रति अपनी सम्मान- भावना को संकोचहीन अभिव्यक्ति दी है, किन्तु उनकी यह सम्मान भावना विवेकजन्य है और इसीलिए नयी अनुसन्धित्सा का भी इनमें निरादर नहीं है।”  (आलोक पर्व, फ्लैप से)

प्रस्तुत संग्रह का प्रथम निबंध है – ‘अन्धकार से जूझना है !’ महज दो पृष्ठ का यह निबंध द्विवेदी जी के विशद अध्ययन, प्रखर चिंतन तथा भारतीय संस्कृति संबंधी इनके ज्ञान का परिचायक है। लेखक ने अपने इस निबंध में मनुष्य की जिज्ञासा वृत्ति, इसकी चेतना का विकास व विवेक की चर्चा करते हुए प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के केन्द्र में रहे ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय' सूत्र के परिप्रेक्ष्य में हमारे प्रमुख त्यौहार दिवाली के महत्त्व व संदेश को स्पष्ट करते हुए ज्ञान रूपी प्रकाश की प्राप्ति हेतु अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने, इससे लड़ने, जूझने की बात बताई है।

जड़ और चेतन, इन दो तत्त्वों से बने इस जगत में हम देखते हैं कि चेतन तत्त्व से जुड़े प्राणीलोक में हजारों- हजारों प्रकार के प्राणियों में मनुष्य सबसे अलग है, विशेष है क्योंकि इसने अपनी चेतना का निरंतर विकास किया है, यही इसकी खास बात है, यही जगत-जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है। और मनुष्य के अंदर रही जिज्ञासा ने इसकी इस चेतना को उर्ध्वगामी बनाया है। प्रस्तुत निबंध में इस बात को स्पष्टत: हम देख सकते हैं ।

एक तरफ ज्ञान है यानी प्रकाश और दूसरी तरफ अज्ञान यानी अंधकार। अंधकार एक ऐसा आवरण है जो सारी चीजों को ढँक देता है और प्रकाश आते ही सारी चीजें स्पष्ट दिखाई देती है। यही काम अज्ञान और ज्ञान का है। मनुष्य अनादि काल से ही जानने के लिए उत्सुक है और इसी कोशिश में वह लगा रहता है। यही उसका विकास है।

हजारों वर्षों से मनुष्य के मन की गहराई से ये करुण-पुकार उठती रही है – तमसो मा ज्योतिर्गमय! दुःख इस बात का है कि अंधकार कुछ जानने नहीं देता अतः ज्ञान की रोशनी के लिए परमात्मा से, परमतत्त्व से या कहें कि किसी परमशक्ति से दिनरात यह प्रार्थना की जा रही है पर न जाने कितना समय बीत गया आज, फिर भी यह सुनी नहीं गई। हमें उस परमतत्त्व से मदद मिल नहीं रही है – “परन्तु यह पुकार शायद सुनी नहीं गई – ‘होत न श्याम सहाय! प्रकाश और अंधकार की आँखमिचौनी चलती ही रही, चलती ही रहेगी। यह तो विधि-विधान है। कौन टाल सकता है इसे!” (आलोक पर्व, पृ.09)

दरअसल अंधकार और प्रकाश दोनों का अस्तित्व है अत: अंधकार भी रहेगा और प्रकाश भी। अंधकार पूरी तरह से मिट नहीं सकता, हाँ इसे कम अवश्य किया जा सकता है, छोटा जरूर किया जा सकता है। हम यह भी न भूले कि अंधकार तो है ही, वो आता नहीं, इसे लाया नहीं जा सकता, हम लाते हैं प्रकाश को और इस प्रकाश को लाने हेतु मनुष्य तरह-तरह के उद्यम करता है, अतः प्रकाश और अंधकार का संघर्ष निरंतर चलता रहता है।

मनुष्य युगों-युगों से प्रकाश लाने हेतु अंधकार से लड़ता रहा है और यह भी सत्य है कि उसने अंधकार से हार नहीं मानी। “मनुष्य के अन्तर्यामी निष्क्रिय नहीं है। वे थकते नहीं, रूकते नहीं, झुकते नहीं। वे अधीर भी नहीं होते। वैज्ञानिक का विश्वास है कि अनंत रूपों में विकसित होते-होते वे मनुष्य के विवेक रूप में प्रत्यक्ष हुए हैं।” (पृ.09) अन्तर्यामी से आशय है – चेतना। मनुष्य की यही चेतना हार नहीं मानती। अंधकार और प्रकाश को लेकर होते रहे संघर्ष से मनुष्य को प्राप्त हुआ है – विवेक। इसी चेतना और इससे प्राप्त विवेक के लिए कई वर्ष लगे हैं। इस अवस्था तक पहुँचते हुए मनुष्य ने अपनी ज्ञानेन्द्रियों को क्रमशः विकसित किया। अपने विवेक से इसने इंद्रिय बोध को ज्यादा प्रबल, सूक्ष्म व बारीक किया। “स्पर्शेन्द्रिय से स्वादेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय की ओर और फिर चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रियेन्द्रिय की ओर अपने आप को अभिव्यक्त करते हुए मन और बुद्धि के रूप में आविर्भूत हुए हैं।” (पृ.09)

निबंधकार आगे बताते हैं कि मनुष्य ने अपनी चेतना व विवेक के बल पर बहुत कुछ जान लिया यहाँ तक कि प्रकृतिकृत संसार - प्राकृतिक सृष्टि को देखकर, अनुभव करके अपनी प्रतिभा, कल्पना तथा दृढ़ संकल्प से एक और संसार – मनुष्यकृत संसार निर्मित-विकसित किया। बावजूद इसके मनुष्य की यह यात्रा यहाँ पूरी नहीं होती, इसकी जिज्ञासा अभी भी बनी रही है, अभी भी वह अंधकार के आवरण में ढँकी चीजों का, रहस्यों का उद् घाटन करना चाहता है, अत: अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की पुकार अब भी जारी है।

मनुष्य की उन्नति की यात्रा के संबंध में लेखक का विचार है कि प्रारंभ में अंधकार को दूर करने का, अंधकार से जीतने का मनुष्य ने जो विचार किया, उस विचार को, मनुष्य के उस प्रयास को, मनुष्य के उस संकल्प को भुलाया नहीं जा सकता। “किस दिन एक शुभ मुहूर्त में मनुष्य ने मिट्टी के दीये, रुई की बाती, चकमक की चिनगारी और बीजों से निकलने वाले स्रोत का संयोग देखा। अन्धकार को जीता जा सकता है। दीया जलाया जा सकता है। घने अंधकार में डूबी धरती को आंशिक रूप में आलोकित किया जा सकता है। अंधकार से जुझने के संकल्प की जीत हुई। तब से मनुष्य ने इस दिशा में बड़ी प्रगति की है, पर वह आदिम प्रयास क्या भूलने की चीज है ? वह मनुष्य की दीर्घकालीन कातर प्रार्थना का उज्ज्वल फल था।” (पृ.10)

निबंध में कहा गया है कि हर वर्ष मनाया जाने वाला दीवाली का त्यौहार यानी दीयों का, प्रकाश का यह पर्व आज भी हमें उस क्षण का, उस समय का स्मरण कराता है जिसमें हमारे पूर्वजों के मन-मस्तिष्क में अंधकार को दूर करने का विचार आया था, अंधकार से जूझने का दृढ़ संकल्प उनके मन में जगा था। “दीवाली याद दिला जाती है उस ज्ञान लोक के अभिनव अंकुर की, जिसने मनुष्य की कातर प्रार्थना को दृढ़ संकल्प का रूप दिया था – अंधकार से जूझना है, विघ्न-बाधाओं की उपेक्षा करके, संकटों का सामना करके! (पृ.10)

दीवाली की महत्ता व इसके संदेश से संबंधी निबंध के आखिर के कथन भी देखिए – “दीवाली आकर कह जाती है, कि अन्धकार से जूझने का संकल्प ही सही यथार्थ है। मृगमरीचिका में मत भटको। अंधकार के सैकड़ों परत हैं। उससे जूझना ही मनुष्य का मनुष्यत्व है। जूझने का संकल्प ही महादेवता है। उसी को प्रत्यक्ष करने की क्रिया को लक्ष्मी की पूजा कहते हैं।” (पृ.10)  


 

  डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. शुरू में ही हजारीप्रसाद द्विवेदी का कथन बहुत ही अच्छा लिया हैं और निबंध की भाषाशैली बहुत ही अच्छी हैं।

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  2. निबंध पर बहुत सहज , सरल भाषा में सारगर्भित प्रस्तुति ।
    हार्दिक बधाई,सादर नमन 🙏

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  3. નિબંધની ખુબ ઝીણવપૂર્વક માહિતી આપી ભાષા પર મજબૂત પકડ સરળ સમજૂતી આપવા બદલ આપનો ખૂબ ખૂબ આભાર સર...🙏

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  4. हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंधों का परिचय एवं उन निबंधों में उनकी विद्वता का दर्शन आपके विचारों में प्रस्फुटित हैं। हजारीप्रसादजी के निबंधों में भारतीय संस्कृति की छाया स्वतः विध्यमान हैं। 'अन्धकार से जूझना है !' निबंध पर आपके विचार सरल एवं अर्थसूचक हैं। वर्तमान समय में हर मनुष्य अपने भीतरी अंधकार से जूझ रहा है उसे अपने इस अंधकार से बाहर आने के लिए साहित्य ही सहायता दे सकता हैं।

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