डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
दिवाली तथा दीवाली
ये दोनों शब्द एक ही शब्द के दो लिखित
रूप हैं।
मूल संस्कृत शब्द है दीपावली।
दीपावली का परिवर्तित रूप है दीवाली।
दीवाली शब्द में तीन दीर्घ स्वर हैं –
दो बार ई तथा एक बार आ।
एक साथ तीन दीर्घ स्वरों के उच्चारण
में अधिक प्रयत्न (बल) की आवश्यकता पड़ती है।
परंतु भाषा-प्रवाह में ऐसा हो नहीं
पाता।
ऐसे में हम दीवाली के प्रथम अक्षर दी
के ई को दीर्घ रूप में बोल नहीं पाते। परिणामतः वह ह्रस्व यानी इ के रूप में
उच्चरित होता है।
आप स्वयं बोल कर देखिए। पूरी सावधानी
के साथ बोलेंगे, तो ही दीवाली बोल पाएँगे।
परंतु भाषा-व्यवहार में ऐसा संभव नहीं
हो पाता।
और फिर, सामान्य व्यक्ति यह ह्रस्व-दीर्घ की बात तो जानता नहीं।
वह तो सिर्फ बोलना जानता है। ऐसा बहुत
सारे शब्दों में होता है।
बाद में किसी शब्द का उच्चरित रूप
लेखन में आ जाता है। फिर धीरे-धीरे वह स्थिर तथा मान्य हो जाता है। वह उस शब्द की
वर्तनी बन जाता है।
कभी-कभी कुछ शब्दों के दोनों रूप
प्रचलन में लंबे समय तक बने रहते हैं।
दीवाली तथा दिवाली एक ही शब्द के ऐसे
ही दो लिखित रूप हैं।
हम इनमें से किसी एक को सही तथा दूसरे
को गलत नहीं कह सकते। कारण कि सही-गलत कहने का हमारे पास कोई भाषिक आधार नहीं है।
यह आदत की बात होती है। कोई दीवाली
लिखता है,
तो दिवाली।
त्यौहार तथा त्योहार
ये भी एक ही शब्द के दो लिखित रूप
हैं।
यहाँ यह कहना कठिन है कि ये किस शब्द
से बने हैं।
परंतु यह अवश्य तय किया जा सकता है कि
इनमें पहले कौन-सा होगा तथा बाद में कौन-सा होगा।
पहले त्यौहार रूप होगा। कारण कि
ध्वनि-परिवर्तन की प्रवृत्ति पर ध्यान दें, तो
ओ औ में नहीं बदलता है। औ ओ में बदलता है। इसलिए पहले त्यौहार और फिर उसका सरलीकृत
रूप त्योहार।
इसमें भी वही उच्चारण की समस्या।
त्यौहार में पहले संयुक्ताक्षर है – त्य।
संयुक्ताक्षर के उच्चारण में सरल
व्यंजन की तुलना में अधिक बल लगता है।
फिर उसके साथ औ की मात्रा है। औ एक
ऐसा स्वर है, जिसके उच्चारण में अन्य स्वरों की
तुलना में अधिक बल लगता है।
त्यौहार शब्द में अधिक बल वाले दो
अक्षर एक साथ हैं – त्य तथा औ।
त्य तो बदल नहीं सकता। स्वर ही
आगे-पीछे हो सकते हैं – होते हैं।
शिथिल उच्चारण होने पर औ ओ के रूप में
उच्चरित होता है।
उच्चारण करके देख सकते हैं।
ध्वनि उच्चारण की प्रकृति के कारण ही
त्यौहार त्योहार के रूप में उच्चरित होता है।
और वही उच्चारण बाद में लेखन में भी आ
गया – त्योहार।
दीवाली तथा दिवाली की भाँति ही
त्यौहार तथा त्योहार दोनों रूप अभी चलते हैं।
अपनी-अपनी आदत के अनुसार कोई त्यौहार
लिखता है,
तो कोई त्योहार लिखता है।
इनमें से किसी को सही या किसी को गलत
नहीं कहा जा सकता।
मजे की बात है कि त्यौहार लिखने वाले
भी त्योहार ही बोलते हैं।
उच्चारण की सरलता के कारण।
योगेन्द्रनाथ
मिश्र
40,
साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल
– 388315
जिला
आणंद (गुजरात)
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