उठ, आसमान छू लें
वह तेरा भी है
पंख फैला और
उड़ान भरने की हिम्मत रख
बंद दरवाजे के पीछे आहें भरने
और
आँसू बहाने से कुछ नहीं होगा।
किवाड़ खोल और खुली हवा में
साँस लेकर देख
तुम्हारी सुप्त भावनाएँ जग जाएँगी
जिन्हें तुमने पोटली में बाँधकर
मन की तहों में छिपाकर रखा है।
उठ, स्वयं को जान
अपनी शक्ति को पहचान
इच्छाओं को हवा दो
चिंगारी को शोलों में में बदलने दो
आँखें खोलो और
अपने सपनों को जगने दो।
उठ, पहाड़ को लाँघ ले, जहाँ
तुम्हारे सपनों के इन्द्रधनुषी
रंग बिखरे हैं।
जाग रूढ़ियों की दीवारें तोड़ दे
बढ़ा कदम और
चाँद पर जाने की तैयारी कर
लाँघ जाओ सारी सीमाएँ
जो तुम्हारा रास्ता रोकती हैं।
कमतर मत आँक स्वयं को,
उठ
फैला बाहें और उड़ने की तैयारी कर
नहीं तो जीवन यूँ ही
तिल-तिल जीकर निकल जाएगा।
ई- 29, नेहरू ग्राउंड
फरीदाबाद -121001
नारी पर लिखी बहुत बढ़िया रचना आदरणीया दीदी। हार्दिक बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंप्रेरणा भरी सुन्दर रचना 👌🙏
जवाब देंहटाएं