बुधवार, 11 नवंबर 2020

कविता




 

दिवाली राम की

- डॉ. पारूकांत देसाई

वर्ष यह नव हर्ष उत्कर्ष लावे तो है दिवाली राम की

उर राधिका यदि नाचे तो है दिवाली श्याम की

इस कोरोना काल में जो बढ़ गई है दूरियाँ

जन-मन में जीवन-रस बढ़े तो है दिवाली काम की ।

लो जी फिर दिवाली आई  ! 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा      

लो जी फिर दिवाली आई

कर लेना मन साफ-सफाई !

 

झाड़ो-पोंछो कोना-कोना

कपट-द्वेष के रहें न जाले

नेह डालकर दीप जलाओ

दमके आँगन, भित्ति-आले

 

एक-एक पल मुस्काता बैठे

ओढ़ आस की नर्म रजाई !

 

कुछ खट्टे, कुछ मीठे रिश्ते

भरे-भरे कुछ रीते होंगे

समय-समय पर जुड़कर टूटे

हार-हार कर जीते होंगे

 

उन उधड़े संबंधों को फिर-

सी लेना, करना तुरपाई !

 

घर कोई अँधियारा देखो

बेचारा, दुखियारा देखो

जिन आँखों में नीर हो केवल

गहन विवशता, पीर हो केवल

 

पुण्य कमाना उनमें थोड़ा

मुस्कानों की बाँट मिठाई !

 


                डॉ. पारूकांत देसाई  

"शब्दांचल", बी -130 /131

योगीनगर टाउनशिप,

अम्बिका नगर के पास, गोत्री 

         वड़ोदरा (गुजरात) -390021   

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

एच - 604 , प्रमुख हिल्स

छरवाडा रोड,

वापी - 396191

जिला- वलसाड (गुजरात)



 




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