स्त्री शक्ति
मैं स्नेह और ममत्व की बहती नदियाँ हूँ,
भले ही तुम मुझे कोई जाह्नवी ना कहो।
मैं भी तो एक अदना सी मानवी हूँ ,
तुम मुझे यूँ देवी या दानवी ना कहो ।
मेरे सीने में भी तो धड़कता है दिल,
तुम मुझे सिर्फ कोई खिलौना ना कहो ।
मेरा भी अपना अस्तित्व है इस ज़मीन पर ,
तुम इसके होने को ना होना ना कहो ।
मैंने सिर पर ओढ़ी है चुनरिया लाज की,
तुम मुझे कोई गुड़िया बेजान ना कहो ।
मेरी इन आँखों से बरसते हैं
अंगारे भी ,
तुम मेरी आग को श्मशान ना कहो ।
मेरे भी कुछ अपने ख्व़ाब हैं जिंदगी में ,
तुम मेरे इन ख्व़ाबों को बेकार ना कहो ।
मुझ में भी चाहत है कुछ कर गुजरने की,
मेरी ख्व़ाहिशों को निराधार ना कहो ।
मैंने बिठाया है तुम्हें अपने सिर माथे पर,
मगर मैं इन चरणों की धूल हूँ, ना कहो ।
आ जाऊँ ज़िद पर अपनी तो ख़ाक कर दूँ,
मैं एक महज़ एक नाजुक फूल हूँ, ना कहो ।

प्रभारी
प्राचार्या एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष (एम. ए.)
आनंद
इंस्टिट्यूट ऑफ़ पी. जी. स्टडीज़ इन आर्ट्स,
आणंद (गुजरात)
स्त्री शक्ति पर बहुत ही अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंस्त्री शक्ति पर बहुत ही अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
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