रविवार, 1 नवंबर 2020

कविता

                                                                                           

(चित्र – गार्गी शर्मा, कक्षा -9)


स्त्री शक्ति

मैं स्नेह और ममत्व की बहती नदियाँ हूँ,

भले ही तुम मुझे कोई जाह्नवी ना कहो।

मैं भी तो एक अदना सी मानवी हूँ ,

तुम मुझे यूँ देवी या दानवी ना कहो 

मेरे सीने में भी तो धड़कता है दिल,

तुम मुझे सिर्फ कोई खिलौना ना कहो ।

मेरा भी अपना अस्तित्व है इस ज़मीन पर ,

तुम इसके होने को ना होना ना कहो ।

मैंने सिर पर ओढ़ी है चुनरिया लाज की,

तुम मुझे कोई गुड़िया बेजान ना कहो ।

मेरी इन आँखों  से बरसते हैं अंगारे भी ,

तुम मेरी आग को श्मशान ना कहो ।

मेरे भी कुछ अपने ख्व़ाब हैं जिंदगी में ,

तुम मेरे इन ख्व़ाबों को बेकार ना कहो ।

मुझ में भी चाहत है कुछ कर गुजरने की,

मेरी ख्व़ाहिशों को निराधार ना कहो ।

मैंने बिठाया है तुम्हें अपने सिर माथे पर,

मगर मैं इन चरणों की धूल हूँ, ना कहो ।

आ जाऊँ ज़िद पर अपनी तो ख़ाक कर दूँ,

मैं एक महज़ एक नाजुक फूल हूँ, ना कहो ।


                                                                                डॉ.अनु मेहता

प्रभारी प्राचार्या एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष (एम. ए.)

आनंद इंस्टिट्यूट ऑफ़ पी. जी. स्टडीज़ इन आर्ट्स,

आणंद (गुजरात)

 

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