रविवार, 1 नवंबर 2020

कविता

 



परफेक्ट….

बंद कर एलार्म किसी सुबह

थोड़ी देर और सोना चाहती हूँ मैं,

हाँS.. कह ही देती आज सबसे

मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


गीले तौलिये को किसी दिन

पलंग पर ही छोड़ देना चाहती हूँ मैं

हाँS..परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ मैं,


अस्त-व्यस्त पड़ा रहने दो घर को

आज कुछ समेटना नहीं चाहती हूँ मैं

मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


रोज़ सबकी पसंद का खाना बनाती हूँ

कभी तो रसोई में हड़ताल चाहती हूँ

सच में, मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


समय पर लंच, होम वर्क आदि करवाती हूँ

कभी अपनी फरमाइश का चैनल भी चाहती हूँ

हर पल परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


मुसीबत में सबकी हरदम दौड़ी चली जाती हूँ

आज किसी के हाथ से एक प्याली चाय चाहती हूँ

अब मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


थक गई हूँ सबकी आकांक्षाओं को पूरी करते-करते

कभी तो मैं अकेली लॉन्ग ड्राइव पर जाना चाहती हूँ

हाँS.. मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ,


इतना सब करके भी सबको खुश नहीं रख पाती हूँ

किसी दिन बस खुद भी खुश रहना चाहती हूँ

सच कहूँ - मैं परफेक्ट नहीं बनना चाहती हूँ ।


डॉ. पूर्वा शर्मा

201 एरीज़-3, 42 यूनाइटेड कॉलोनी

नवरचना स्कूल के पास, समा

वड़ोदरा (गुजरात)- 390008

 

 


13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता प्रस्तुत की मेम। घर पर बैठी हर औरत की जैसे सच्ची वास्तविकता को ही प्रस्तुत कर दिया आपने तो।

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  2. किसी दिन क्या आप रोज खुश रहिए क्योंकि यही परफेक्ट होगा ।
    अच्छी कविता - बधाई ।

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  3. स्त्री विमर्श की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. परफेक्ट बनने की कोशिश तो दूर की बात रही, मुझे तो यह विचार ही अस्वीकार है। सबको खुश रखने की कोशिश में हम किसी को खुश नहीं रख सकते। परफेक्ट न होने की तुम्हारी घोषणा में मैं भी शरीक हूँ।

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  5. बहुत सुंदर
    पुष्पा मेहरा

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  6. सहज , सुन्दर अभिव्यक्ति!
    हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  7. Kalpana ke bina bhi itani sundar kavita ho sakti he .. ... Iska sundar example. . Bahut bahut badhai. .
    Pro. Shweta vakil
    Shee saraswati MSW college, moriyana
    Ta - netrang, dost bharuch

    जवाब देंहटाएं

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