डॉ. जगदीशचंद्र बोस
(30
नवम्बर, 1858- 23 नवम्बर, 1937)
वनस्पति
विज्ञान के एक शीर्षस्थ वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र बोस के वैज्ञानिक
शोध की महत्ता को बताते हुए महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा था- “बोस महोदय ने वनस्पति
विज्ञान के जो अमूल्य तथ्य संसार को दिये हैं, उनमें से एक एक के लिए भी विजय स्तम्भ
स्थापित करना उचित होगा ।
इस
वनस्पति वैज्ञानिक की खोजों में एक महत्वपूर्ण खोज है कि उन्होंने जीव सृष्टि- प्राणीजगत
की तरह ही वनस्पति जगत को भी प्रभावित होने की बात रखी । उन्होंने अपने रिसर्च से यह
सिद्ध किया कि पौधों में भी जीवन है, संवेदना है, अनुभव-अनुभूति की क्षमता है । उसे
भी प्राणी की तरह, मनुष्य की तरह पीड़ा का, कष्ट का, सुख का, आनंद का अनुभव होता है
। ‘ रेजोनेन्ट रिकार्डर’ यंत्र का निर्माण बोस जी
ने वनस्पतियों में होने वाले आंतरिक सूक्ष्म परिवर्तनों को बताने के लिए किया
। इसी तरह उन्होंने ‘क्रेस्कोग्राफ’ यंत्र के निर्माण कर इसके
द्वारा पौधों में होने वाली वृद्धि के नाम का पता लगाया ।
इस
तरह जगदीशचंद्र बोस को विशेषतः पेड-पौधों के जीवन के बारे में शोध कार्य हेतु सर्वाधिक
ख्याति वनस्पति वैज्ञानिक के रूप में प्राप्त हुई । इंग्लैंड की रोयल सोसायटी में जब
बोस ने विद्युत चुंबकीय तरंगों संबंधी अपनी खोज का सफल प्रयोग किया जिससे वहाँ के एकत्रित
वैज्ञानिक काफी प्रभावित हुए । इस तरह बोस एवं अन्य भारतीय वैज्ञानिकों ने विज्ञान
के क्षेत्र में भी भारतीय प्रतिभा से विश्व को बराबर परिचित करवाया ।
“बेतार-का-तार
( wireless) सिद्धांत की खोज से घर-घर में रेडियो का प्रचलन संभव हुआ । इसका श्रेय
इटली के वैज्ञानिक मारकोनी को दिया जाता है । इसी क्षेत्र में जगदीशचंद्र बोस ने स्वतंत्र
रूप से अनुसंधान कार्य किया था । परंतु मारकोनी ने अपनी खोज की सफलता पहले घोषित कर
दी । उसने बोस से पहले बेतार की कार्यविधि प्रदर्शित कर दी । ”
संदर्भ ग्रंथ-
महान भारतीय वैज्ञानिक (प्रेरक जीवन प्रसंग)
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