सोमवार, 30 सितंबर 2024

शब्द संज्ञान

 


अति आवश्यकतथा ‘अत्यावश्यक

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

अति आवश्यकतथा अत्यावश्यक के प्रयोग के संबंध में एक प्रश्न उपस्थित हुआ है कि दोनों में कौन-सा प्रयोग सही है।

उत्तर -

अत्यावश्यक अति आवश्यक का संधिज रूप है।

अर्थ की दृष्टि से दोनों का एक ही अर्थ है।

संस्कृत व्याकरण के अनुसार संधियाँ दो प्रकार की होती हैं -

आंतरिक संधि और बाह्य संधि।

हम हिन्दी में जो संधि पढ़ते-पढ़ाते हैं, वह आतरिक संधि है।

बाह्य संधि वाक्य के अंदर होती है।

आंतरिक संधि वैकल्पिक होती है। अर्थात् लेखक संधि करे या न करे, यह उसकी मर्जी पर निर्भर होता है।

संस्कृत योगात्मक भाषा है।

इसलिए संस्कृत में आंतरिक तथा बाह्य दोनों संधियों का महत्व है।

परंतु हिन्दी वियोगात्मक भाषा है।

उसमें बाह्य संधि का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता।

बल्कि बाह्य संधि न करना ही हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल है।

अति आवश्यक तथा अत्यावश्यक दोनों सही हैं। परंतु अति आवश्यकहिन्दी की प्रकृति के अनुकूल है।

 


डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315,

आणंद (गुजरात)

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सितंबर 2024, अंक 51

शब्द-सृष्टि सितंबर 202 4, अंक 51 संपादकीय – डॉ. पूर्वा शर्मा भाषा  शब्द संज्ञान – ‘अति आवश्यक’ तथा ‘अत्यावश्यक’ – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र ...