शनिवार, 31 अगस्त 2024

विशेष

 


बरसे बदली सावन की

अनिता मंडा

भारत का प्राकृतिक परिवेश जितना सुंदर और विविधतापूर्ण है उतना ही यहाँ का सांस्कृतिक परिवेश भी अनूठा है। प्रकृति अपने विविध रंगों-ऋतुओं में यहाँ विचरती है। शीत, वसन्त, गर्मी, वर्षा सारे मौसम एक के पीछे दूसरा चले आता है। हर ऋतु की अपनी प्राकृतिक विशेषता है। इन्हीं विशेषताओं के अनुसार ही यहाँ महीनों के त्योहार-उत्सव निर्धारित होते हैं।

वैसे तो हर ऋतु अपने आप में अनूठी है। शीत के बाद खिलते वसंत की सुंदरता तो स्वर्ग को भी लजा दे। लेकिन ग्रीष्म से बेहाल धरा पर जब वर्षा सुंदरी  छम-छम नृत्य करती है तब प्रकृति का आह्लाद अपने चरम पर होता है। यहीं से हिन्दी के पाँचवें महीने सावन का प्रारंभ होता है। सावन में बादल घुमड़-घुमड़ कर धरती की प्यास बुझाते हैं तो मोर सुंदर नृत्य करते हैं। धरा को ताप के संताप से मुक्ति मिलती है। धरा के अंक में बीज कसमसाकर  अंकुरित होते हैं। हर तरफ वनस्पति अंगड़ाई भरने लगती है। हरे रंग से आँखों को शीतलता मिलती है। और ऐसे में जन-मन में उत्साह का संचार करने वाले तीज- त्यौहार का प्रारंभ होता है। सावन की तीज पर धरती माँ का आँचल हरा-भरा होकर लहराता है। लोग भी सुहावने परिवेश में भावनाओं की अभिव्यक्ति झूला झूलकर करते हैं।

बरसात से हवा की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। मोर, मेंढक आदि की ध्वनियाँ वातावरण में संगीत भरती हैं। ताल- तलैया भर जाते हैं जिससे आस-पास पशु-पक्षियों का जमघट लग जाता है। नदियों की कृशकाय काया में पुनः वेग का संचार होता है। नदियों के धार्मिक महत्व से तो सभी भिज्ञ ही हैं। गंगा के जल से शिवजी को अभिषेक करने कांवड़िए भी सावन में पैदल चलकर यात्राएँ करते हैं। हर तरफ़ बम-भोले के उच्चारण से दिशाएँ गूँजती हैं। शिव-पार्वती के मर्यादित दाम्पत्य से प्रेरणा लेने हेतु जगह-जगह कथाओं का वाचन होता है। दान-पुण्य, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास सात्विक वातावरण का निर्माण करते हैं। जैसे ही सावन अपनी पूर्णता पर पहुँचता है पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन  मनाया जाता है।

इन त्योहारों से परिवारों में, समाज में आपस में मेलजोल बना रहता है। एक प्रकार से त्योहार समाज के लिए, रिश्तों के लिए प्राणवायु का काम करते हैं।

साहित्य में भी प्रत्येक काल में सावन का महत्व रहा है। बादलों के माध्यम से संस्कृत साहित्य में  कालिदास ने मेघदूत में कितने ही सन्देश पहुँचवाये हैं। बारहमासा परम्परा में भी सावन का विशेष महत्व रहा है। गीत-गोविंद में भी सावन वर्षा को लेकर बहुत मधुर पद लिखे गए हैं। भक्ति काल में सूर, तुलसी, जायसी, मीरा आदि ने सावन पर सुंदर गीत लिखे हैं। रीतिकाल में  तो बारहमासा लिखने की परम्परा-सी ही हो गई। आधुनिक काल में प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी जी ने बहुत से गीत व कविताएँ लिखी हैं।

महादेवी वर्मा बोलती हैं-

“नव मेघों को रोता था

जब चातक का बालक मन,

इन आँखों में करुणा के

घिर घिर आते थे सावन”

इन सबमें मेरा मन मोहती है मीरा की ये धुन “बरसे बदली सावन की; सावन की मनभावन की।”

 



अनिता मंडा

दिल्ली 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर आलेख
    सावन महीने का अद्भुत वर्णन। बरसात आने पर होने वाले परिवर्तनों का सुंदर चित्र प्रस्तुत करती रचना।
    बहुत पसंद।

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  2. सावन मास का मनोहारी चित्रण करता बहुत सुंदर आलेख ।सुदर्शन रत्नाकर

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  3. डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा5 सितंबर 2024 को 5:16 pm बजे

    बहुत सुन्दर, रुचिकर लेखन

    जवाब देंहटाएं

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