बुधवार, 31 जुलाई 2024

पत्र

 


प्रेमचंद के पत्र विष्णु प्रभाकर के नाम

1

विष्णु प्रभाकर

सरस्वती, प्रेस काशी

१७ दिसंबर, १६३२

प्रियवर,

'अछूतोद्धार' नामक गल्प मिल गई थी। स्वरक्षित है। मैं चेष्टा करूँगा कि उसे जल्द प्रकाशित करूँ । कार्यालय में गल्पें बहुत आती हैं, इससे कितने ही मित्रों की रचनाएँ पड़ी रह जाती हैं।

भवदीय

प्रेमचंद

 

***

2

 

सरस्वती प्रेस, काशी

१३ जनवरी, १६३३

 

प्रियवर,

आप के लेख और पत्र मिले । कविताओं में तो छंद भंग है और कहानी वर्णनात्मक हो गई है। यह तो गल्प न होकर गल्प का सुंदर प्लाट है। आप इसे गल्प के रूप में लिख भेजें। गल्प में संभाषण का भाग (अधिक), वर्णन कम होना चाहिए । खेद है इसे न छाप सकूंगा ।

हिस्सार में जागरण का प्रचार किसी मोतबर एजेंट द्वारा करने की चेष्टा कीजिए ।

 

भवदीय

प्रेमचंद

***

3

काशी

२१ अप्रैल, १९३३

प्रियवर,

धन्यवाद । आपके लेख छापना तो चाहता हूँ पर जिस रूप में वह हैं उस रूप में नहीं। चाहता हूँ कि कुछ बना कर छापूँ लेकिन बनाना समय चाहता है और समय का यहाँ बड़ा टोटा है। बहुत खोजता हूँ, वही नहीं मिलता। ईश्वर की भाँति अदृश्य हो गया है। इतना ही समझ लीजिए कि अच्छी चीज पाकर सम्पादक तुरंत छापता है। विलम्ब नहीं करता। जब कोई चीज उसे नहीं जँचती तभी वह देर करता है। अच्छी चीजें इतनी ज्यादा नहीं आतीं कि उनको प्रतीक्षा करनी पड़े । और कहानी तो बड़ी मुश्किल से अच्छी मिलती है। बस, और क्या लिखूँ ।

सप्रेम

प्रेमचंद

(साभार – प्रेमचंद : चिट्ठी-पत्री, सं. अमृतराय /मदनगोपाल)

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