मंगलवार, 30 मई 2023

व्याकरण विमर्श

 


डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

1

विस्मयादिबोधक तथा संबोधन

प्रश्न - विस्मयादिबोधक तथा संबोधन में अंतर क्या है?

उत्तर - पहली बात तो यह कि विस्मयादिबोध शब्द होते हैं, कुछ शब्दों का एक वर्ग होता है, जिसे विस्मयादिबोधक शब्द कहा जाता है।

परंतु संबोधन कोई शब्द या शब्दों का वर्ग नहीं है। बल्कि जातिवाचक तथा व्यक्तिवाचक शब्दों का प्रयोग संबोधन के रूप में होता है। संबोधन एक प्रयोग है। संबोधन कोई शब्द नहीं है।

अरे (अरे रे), अहा (आहा), आह, ओह, ओहो, वाह, शाबाश, छि (छि-छि), हाय (हाय-हाय), उफ्, धिक् जैसे शब्द विस्मयादिबोधक शब्द कहे जाते हैं।

इन शब्दों के द्वारा विस्मय, हर्ष, अतिशय खुशी, शोक, आश्चर्य, तिरस्कार, घृणा, क्रोध, अतिशय दुख अनायास व्यक्त होते हैं। इन भावों को व्यक्त करने के लिए किसी सायास प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती। तभी तो वे विस्मयादिबोधक कहे जाते हैं। ये सभी भाव उद्गार के रूप में यानी अनायास व्यक्त होते हैं। ऐसे में इन शब्दों को उद्गारवाचक या उद्गारबोधक कहना अधिक सही है।

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परंतु हिन्दी के व्याकरण लेखकों ने एक कमाल किया है।

उन्होंने धन्य, जय, जयति, बाप (बाप रे), राम (राम-राम, हा राम, हे राम), अच्छा, बहुत अच्छा, हाँ (हाँ-हाँ), ठीक, अजी, लो, क्यों, दूर, चुप, त्राहि (त्राहि-त्राहि), क्या, हट जैसे शब्दों की भी गणना विस्मयादिबोधक शब्दों के अंतर्गत की है।

ये शब्द मूलतः संज्ञा (बाप, राम, जय), विशेषण (अच्छा, बहुत, ठीक, धन्य), क्रिया (जयति, त्राहि (बचाओ), लो, हट) तथा विविध प्रकार के अव्यय (हाँ, क्यों, क्या, दूर) हैं।

हाँ, विविध संदर्भों में इनका प्रयोग विस्मय आदि (ऊपर गिनाए गए) भावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

परंतु ये विस्मयादिबोधक अव्यय शब्द नहीं हैं।

संबोधन –

किसी से कुछ कहने के पहले उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसके व्यक्तिवाचक नाम या जातिवाचक नाम से उसे पुकारा जाता है। उसी को संबोधन कहा जाता है।

संबोधन शब्द का वाक्य से कोई सीधा संबंध नहीं होता।

लिखित भाषा में विस्मयादिबोधक शब्द तथा संबोधन के रूप में प्रयुक्त शब्द के साथ विस्मयादिबोधक चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है।

जिस व्यक्ति का नाम लेकर संबोधन करते हैं, और आगे वाक्य में तुम स्रर्वनाम का प्रयोग नहीं होता, तो वह संबोधन विस्मयादिबोधक होता है।

जिस व्यक्ति का नाम लेकर संबोधन करते हैं, और आगे वाक्य में तुम स्रर्वनाम का प्रयोग होता है, तो वह संबोधन होता है। विस्मयादिबोधक नहीं होता।

इसे दो वाक्यों से सरलता से समझा जा सकता है –

हे राम! (तुम) मेरा कहना मानो / हे राम! (तुम) मेरा कहना मानोगे या नहीं? (इन वाक्यों में ‘हे राम’ संबोधन है।)

हे राम! यह क्या हो गया! (इस वाक्य में ‘हे राम’ विस्मयादिबोधक (आश्चर्य) शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है।)

2

नकारात्मक वाक्य

विधानवाचक वाक्यों के कथनों को अस्वीकार करने वाले वाक्यों को नकारात्मक वाक्य कहे जाते हैं।

नकारात्मक वाक्य में विधानवाचक वाक्य के कथन का विपरीत कथन होता है -

सूरज पूरब में उगता है। (विधानवाचक)

सूरज पूरब में नहीं उगता। (नकारात्मक)

प्रत्येक नकारात्मक वाक्य किसी विधानवाचक वाक्य का रूपांतरण होता है। यानी प्रत्येक नकारात्मक वाक्य के मूल में कोई विधानवाचक वाक्य होता है।

नकारात्मक वाक्य बनते कैसे हैं?

‘न’ तथा ‘नहीं’ दो ऐसे अव्यय हैं, जो किसी विधानवाचक (सकारात्मक) वाक्य को नकारात्मक वाक्य में रूपांतरित कर देते हैं।

अस्तित्वबोधक वर्तमान काल के क्रियारूपों - है, हैं, हो तथा हूँ से बने विधानवाचक वाक्यों से नकारात्मक वाक्य बनाने के लिए सिर्फ ‘नहीं’ का प्रयोग होता है। ‘न’ का प्रयोग नहीं होता।

मोहन मेरा पड़ोसी है। (विधानवाचक)

मोहन मेरा पड़ोसी नहीं है। (नकारात्मक)

‘मोहन मेरा पड़ोसी न है’ - ऐसा वाक्य नहीं बनता।

मैं सरकारी स्कूल में हिन्दी का अध्यापक हूँ। (विधानवाचक)

मैं सरकारी स्कूल में हिन्दी का अध्यापक नहीं हूँ। (नकारात्मक)

(वक्ता की विवक्षा के अनुसार इस नकारात्मक वाक्य के दो अर्थ निकल सकते हैं। 1. मैं हिन्दी का अध्यापक तो हूँ। परंतु सरकारी स्कूल में नहीं हूँ। 2. मैं सरकारी स्कूल में अध्यापक तो हूँ। परंतु हिन्दी का अध्यापक नहीं हूँ।)

अस्तित्वबोधक भूतकाल के क्रियारूपों - था, थे, थी तथा थीं से बने विधानवाचक वाक्यों से नकारात्मक वाक्य बनाने के लिए ‘न’ तथा ‘नहीं’ दोनों का प्रयोग होता है।

मेज पर दूध से भरा गिलास था। (विधानवाचक)

मेज पर दूध से भरा गिलास न था। (सामान्य नकार)

मेज पर दूध से भरा गिलास नहीं था। (बल युक्त नकार)

(इन दोनों वाक्यों द्वारा गिलास में दूध का अभाव तो सूचित होता ही है। साथ ही, एक अर्थ यह भी निकलता है कि मेज पर दूध से भरा गिलास न था या नहीं था। दूसरा कुछ था।)

व्यापारबोधक क्रियाओं के साथ प्रयुक्त अस्तित्वबोधक वर्तमान काल के क्रियारूप - है, हैं, हो तथा हूँ सहायक क्रिया की भूमिका में होते हैं। व्यापारबोधक क्रियाएँ मुख्य क्रिया की भूमिका में होती हैं।

व्यापारबोधक क्रियाओं के ‘नित्य अपूर्ण पक्ष’ (ता ते ती वाले रूप) के रूपों तथा अस्तित्वबोधक वर्तमान काल के क्रियारूपों - है, हैं, हो तथा हूँ - के योग से बने विधानवाचक वाक्य जब नकारात्मक वाक्य में रूपांतरित होते हैं, तब है, हैं, हो, हूँ का सामान्यतः लोप हो जाता है।

ऐसी क्रियाओं वाले विधानवाचक वाक्यों से नकारात्मक वाक्य बनाने में केवल ‘नहीं’ का प्रयोग होता है। ‘न’ का प्रयोग नहीं होता।

मोहन सुबह में मैदान के चार चक्कर लगाता है।

मोहन सुबह में मैदान के चार चक्कर नहीं लगाता।

(मोहन सुबह में मैदान के चार चक्कर न लगाता - ऐसा वाक्य नहीं बनता।)

मैं रात को आठ बजे भोजन के बाद टहलने जाता हूँ।

मैं रात को आठ बजे भोजन के बाद टहलने नहीं जाता। (यहाँ भी ‘न’ का प्रयोग नहीं हो सकता।)

मैं रात को आठ बजे भोजन के बाद टहलने नहीं जाता हूँ। (बल देकर)

परंतु -

व्यापारबोधक क्रियाओं के ‘सातत्य अपूर्ण पक्ष’ (रहा वाले रूप) के रूपों तथा अस्तित्वबोधक वर्तमान काल के क्रियारूपों - है, हैं, हो तथा हूँ - के योग से बने विधानवाचक वाक्य जब नकारात्मक वाक्य में रूपांतरित होते हैं, तब है, हैं, हो, हूँ का लोप होता भी है और लोप नहीं होता।

सुरेन्द्र साइकिल से स्कूल जा रहा है।

सुरेन्द्र साइकिल से स्कूल नहीं जा रहा। (सामान्य कथन)

सुरेन्द्र साइकिल से स्कूल नहीं जा रहा है। (बल देकर)

व्यापारबोधक क्रियाओं के ‘पूर्ण पक्ष’ के रूपों तथा अस्तित्वबोधक वर्तमान काल के क्रियारूपों - है, हैं, हो तथा हूँ - के योग से बने विधानवाचक वाक्य जब नकारात्मक वाक्य में रूपांतरित होते हैं, तब है, हैं, हो, हूँ का लोप होता भी है और नहीं भी होता।

वह गाँव से आज चार बजे आया है।

वह गाँव से आज चार बजे नहीं आया है। (यहाँ भी ‘न’ का प्रयोग नहीं हो सकता।)

(चार बजे नहीं आया है, बल्कि पाँच बजे आया है।)

वह गाँव से आज चार बजे नहीं आया।

‘नहीं’ का प्रयोग मुख्य क्रिया के पहले तथा बाद में दोनों स्थानों पर होता है। मुख्य क्रिया के पहले ‘नहीं’ का प्रयोग होने पर कालबोधक सहायक क्रिया के लोप होने की संभावना रहती है। परंतु यदि ‘नहीं’ का प्रयोग मुख्य क्रिया के बाद में होता है, तो कालबोधक सहायक क्रिया का लोप नहीं होता।

मोहन मुझसे चार दिनों से बोलता नहीं है।

वह छुट्टियों के दिनों में कहीं जाता नहीं था।

वह छुट्टियों के दिनों में कहीं जाता न था।

भविष्यत् काल के विधानवाचक वाक्य में एक ही क्रिया होती है। क्रिया के पहले ‘नहीं’ का प्रयोग करके उसका नकारात्मक रूप बनाया जाता है -

गाड़ी चार बजे शाम को पहुँचेगी - गाड़ी चार बजे शाम को नहीं पहुँचेगी।

परंतु यदि ‘नहीं’ भविष्यत् काल की क्रिया के बाद आता है, तो वाक्य प्रश्नवाचक भी बन जाता है।

तुम टहलने जाओगे नहीं?

 



डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315, आणंद (गुजरात)

 

1 टिप्पणी:

  1. ज्ञानवर्धक। सुंदर प्रस्तुति। सुदर्शन रत्नाकर

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